क्या आपको याद है वो गर्मियों की दोपहर जब दादी की रसोई से घी वाली खिचड़ी की खुशबू आती थी? या वो बारिश का दिन जब माँ बाजरे के चटपटे पकौड़े तल रही थीं और आप खिड़की से झाँकते हुए बस प्लेट लगने का इंतज़ार कर रहे थे? आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में लोग उसी पुरानी थाली को फिर से खोज रहे हैं ‘नॉस्टैल्जिया डाइट’ के ज़रिए।
ये कोई साधारण डाइट नहीं बल्कि एक इमोशनल सफर है जो हमें हमारी जड़ों, यादों और उन छोटी-छोटी खुशियों से जोड़ता है, जो समय के साथ कहीं पीछे छूट गई थीं। नॉस्टैल्जिया डाइट इसी भावनात्मक जुड़ाव का प्रतीक है जहां हम उन पुराने स्वाद की ओर लौटते हैं..जो हमें सुकून और अपनापन देता है। इस तरह का भोजन सिर्फ स्वाद नहीं देता बल्कि एक भावनात्मक तृप्ति भी देता है। यह डाइट हमारे मानसिक स्वास्थ्य को सुकून पहुंचाने के साथ-साथ संवेदनाओं को मजबूत करती है, क्योंकि यह हमें उन लोगों, पलों और भावनाओं से जोड़ती है जो हमारे लिए बेहद खास रहे हैं।

क्या है नॉस्टैल्जिया डाइट
‘नॉस्टैल्जिया डाइट’ का अर्थ है उन खाद्य पदार्थों का सेवन करना है जो हमारे अतीत से जुड़े होते हैं। हमारे बचपन, परिवार, त्योहार या खास पलों की याद दिलाने वाले व्यंजन। ये भोजन न सिर्फ स्वाद का आनंद देते हैं, बल्कि मानसिक और भावनात्मक रूप से भी हमें संतुष्टि प्रदान करते हैं।
स्वाद और यादों का गहरा संबंध
हमारे मस्तिष्क में स्वाद और गंध से जुड़ी स्मृतियां गहराई से जुड़ी होती हैं। जब हम किसी परिचित स्वाद का अनुभव करते हैं तो वो हमें सीधे उन पलों में ले जाता है जहां हमने उस स्वाद को पहली बार चखा था। यह प्रक्रिया हमें भावनात्मक रूप से सुकून देती है और सामाजिक जुड़ाव की भावना को मजबूत करती है। एक अध्ययन में यह पाया गया कि भोजन से जुड़ी नॉस्टैल्जिया सकारात्मक भावनाओं को उत्पन्न करती है और सामाजिक संबंधों को मजबूत करने में मदद करती है।
क्यों लौट रहा है ये ट्रेंड
आज की तेज़ रफ़्तार ज़िंदगी में धीरे धीरे लोग थकने लगे हैं बर्गर, पिज़्ज़ा और प्रोसेस्ड फूड के पीछे भागते-भागते। तनाव, डिप्रेशन और डिजिटल स्क्रीन्स की दुनिया में नॉस्टैल्जिया डाइट एक तरह का मेंटल डिटॉक्स बन गई है। मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि बचपन के खाने की खुशबू और स्वाद दिमाग में सेरोटोनिन बढ़ाते हैं जो खुशी का हार्मोन है। इसीलिए शहरों में लोग अब नॉस्टैल्जिया डाइट को नए अंदाज़ में अपना रहे हैं। इंस्टाग्राम पर #DesiNostalgiaFood जैसे हैशटैग पॉपुलर हो रहे हैं जहां लोग अपनी दादी-नानी की रेसिपी शेयर कर रहे हैं। कई स्थानों पर ऐसे रेस्तरां शुरु हुए हैं जहाँ पुराने ज़माने के व्यंजन जैसे कुट्टू की पूरी या मकई का ढोकला, बाजरे का खिचड़ा, दाल बाफले आदि परोसे जाते हैं।
इमोशनल कनेक्शन के साथ सेहत का तड़का
नॉस्टैल्जिया डाइट सिर्फ भावनाओं का खेल नहीं। न्यूट्रिशनिस्ट्स का कहना है कि ये पुराने व्यंजन जैसे बाजरा, रागी, ज्वार या गुड़ सुपरफूड्स से कम नहीं। ये फाइबर, विटामिन्स और मिनरल्स से भरपूर होते हैं जो आज की लाइफस्टाइल से जुड़ी बीमारियों जैसे डायबिटीज़ या मोटापे से लड़ने में मदद करते हैं।