पाकिस्तान (Pakistan) में बलूचिस्तान क्षेत्र में एक ख़ास प्रकार की रोटी बनायी जाती है, जिस पत्थर की रोटी या सांग रोटी कहा जाता है। यह रोटी अपने पकाने के अनोखे तरीक़े के लिए मशहूर हैं, जिसमें एक चिकने पत्थर पर रोटी पकाई जाती है। इस प्रक्रिया से रोटी क्रिस्पी और स्वादिष्ट बनती है तो स्थानीय लोगों को बहुत पसंद आती है।
पत्थर की रोटी के लिए सबसे पहले गेहूं का आटा लिया जाता है, जिसमें पानी और थोड़ा नमक मिलाकर आटा गूंथ लिया जाता है। फिर इस आटे को छोटे हिस्सों में बांटकर बेलन से रोटी का आकार दिया जाता है। इसके बाद इस रोटी को पहले से गर्म किये गए चिकने पत्थर पर रखा जाता है।

क्यों खाते हैं पत्थर की रोटी?
बलूचिस्तान के कुछ लोग बहुत ग़रीबी और मुश्किलों का सामना कर रहे हैं, उनके पास खाने-पीने के उचित साधन नहीं होते हैं और बहुत बार तो वे लोग तिल-तिल करके खाना जुटाते हैं। ऐसे हालात में उनके पास मॉडर्न किचन की सुविधा भी नहीं होती है और यही कारण है कि उन्हें पत्थर की रोटियां खानी पड़ती है। इस रोटी को तैयार करने के लिए तेल और घी किसी भी चीज़ों का इस्तेमाल नहीं किया जाता।
कैसे पकाई जाती है पत्थर की रोटी?
पत्थर की तपन रोटी एक ख़ास तरह की रोटी है जिसे धीरे-धीरे पकाया जाता है। इसका पकाने का तरीक़ा देना अनोखा होता है की रोटी बाहर से क्रिस्पी यानी कुरकुरी लगती है और अंदर से बहुत नरम होती है। इस रोटी को आमतौर पर दही, चटनी या फिर मौसम के हिसाब से स्थानीय सब्ज़ियों के साथ खाया जाता है। यह रोटी बहुत स्वादिष्ट होती है और इसमें अलग ही मज़ा आता है। बलूचिस्तान में यह रोटी को शांत करने के लिए एक प्रमुख खाद्य पदार्थ है, यहाँ के लोग इसे बड़ी ही सादगी से तैयार करते हैं।
सिर्फ रोटी नहीं, परंपरा की पहचान
बलूचिस्तान के लोग पत्थर की रोटी को सिर्फ़ खाना नहीं बल्कि अपनी परंपरा संस्कृति का हिस्सा भी मानते हैं। उन लोगों के लिए यह रोटी साथ जो प्रकृति के साथ जीने का एक ख़ास तरीक़ा है। अक्सर इंटरनेट पर इसके वीडियो वायरल होते रहते हैं जिससे पता चलता है कि लोग इनके रसोई में दिलचस्पी दिखाते हैं। इस रोटी को बनाने के लिए किसी बढ़िया ख़ास किचन सामान की आवश्यकता नहीं होती है बस घर में पत्थर और थोड़ा आटा ही काफ़ी होता है।