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Sun, Dec 7, 2025

अगर आप ये 4 गलतियां करेंगे, तो बच्चों का भविष्य लड़खड़ा सकता है, जानें एक्सपर्ट की चेतावनी

Written by:Bhawna Choubey
मां की छोटी-सी गलती भी बच्चे के आत्मविश्वास, भावनाओं और व्यवहार पर गहरा असर डालती है। रिलेशनशिप एक्सपर्ट्स के अनुसार कई मांएं अनजाने में ऐसी गलतियां कर जाती हैं, जो बच्चे के स्वभाव, सोच और रिश्तों को हमेशा के लिए बदल देती हैं।
अगर आप ये 4 गलतियां करेंगे, तो बच्चों का भविष्य लड़खड़ा सकता है, जानें एक्सपर्ट की चेतावनी

मां और बच्चे का रिश्ता दुनिया का सबसे पवित्र और सबसे गहरा रिश्ता माना जाता है। हर मां अपने बच्चे के लिए अपनी खुशियों तक को दांव पर लगा देती है, बस इतना चाहती है कि बच्चा अच्छे संस्कारों के साथ बड़ा हो, तरक्की करे और जीवन में खुश रहे। लेकिन अक्सर इसी चाहत में कई माताएं अनजाने में ऐसी गलतियां (Parenting Mistakes) कर डालती हैं, जिनके असर को वे समझ नहीं पातीं। घर की भाग-दौड़, ज़िम्मेदारियां, मानसिक तनाव और रिश्तों की उलझनों के बीच मां का व्यवहार कभी-कभी बच्चों के सामने बदल जाता है और बच्चे उन छोटी-छोटी बातों को अपनी पूरी ज़िंदगी की सच्चाई बना लेते हैं।

बच्चों का मन बेहद नाजुक होता है। वे सोचते नहीं, सिर्फ महसूस करते हैं। मां की आवाज़, उसके शब्द, उसका व्यवहार, यहां तक कि उसका गुस्सा तक बच्चे के विकास को गहराई से प्रभावित करता है। कई बार मां अपने बच्चे की भलाई के लिए कुछ बात कहती है लेकिन वही बातें बच्चे के आत्मविश्वास को चोट पहुंचा देती हैं। यह रिपोर्ट बताती है कि आखिर वो कौन सी 4 गलतियां हैं जो अधिकतर मांएं बच्चों के सामने कर जाती हैं और कैसे ये गलतियां बच्चे के भविष्य, रिश्तों और मानसिक स्वास्थ्य को कमजोर कर सकती हैं।

बच्चों की बुराई बच्चों के सामने सबसे बड़ी पैरेंटिंग गलती

बच्चों के सामने उनकी बुराइयों का ज़िक्र करना, उनकी कमियों को रिश्तेदारों या पड़ोसियों के सामने बताना, या उनकी खराब आदतों की चर्चा करना यह एक ऐसी गलती है, जो उनके आत्मसम्मान पर सीधा वार करती है। एक्सपर्ट का कहना है की बच्चों को अपने बारे में हर वह बात याद रहती है, जिसे मां ने दूसरों के सामने कहा हो। वे उस बात को अपनी पहचान मान लेते हैं, जिससे उनका आत्मविश्वास धीरे-धीरे कम होने लगता है।

कई घरों में यह आम बात है कि मां कहती सुनाई देती है, ये तो कुछ सीखता ही नहीं, इसके बस की बात नहीं है, पढ़ाई में नालायक है, बहुत जिद्दी है, लेकिन मां शायद नहीं समझती कि बच्चा ये बातें सुनकर भीतर ही भीतर टूट रहा होता है। इससे उसका मानसिक विकास प्रभावित होता है और वह शर्म, डर या हीनभावना का शिकार हो सकता है। इसके अलावा, बच्चे यह भी सोचते हैं कि मेरी मां ही मुझे नहीं समझती यह दूरी धीरे-धीरे रिश्ते को कमज़ोर करती जाती है। इसलिए एक्सपर्ट सलाह देते हैं कि यदि बच्चे में कोई कमी है तो उसे दूसरों के सामने नहीं, बल्कि अकेले में प्यार से समझाया जाए।

अपने बच्चे की तुलना दूसरे बच्चों से करना

भारत में तुलना करना एक आम पैरेंटिंग पैटर्न है, जहां मां अक्सर कह देती हैं, देखो शर्मा जी का बेटा कितना तेज है, तुम्हारी बहन तुमसे बेहतर करती है, पड़ोस का बच्चा तुमसे ज्यादा समझदार है, लेकिन यह तुलना बच्चों के दिल में गहरे घाव छोड़ देती है।

रिलेशनशिप एक्सपर्ट्स का कहना है कि बच्चा तुलना को ‘मैं अच्छा नहीं हूं’ जैसे भाव में बदल लेता है। इससे उसकी खुद की पहचान धुंधली हो जाती है और वह हमेशा दूसरों जैसा बनने की कोशिश में अपनी खूबियों को भूलने लगता है। यह गलत आदत उनकी आत्मछवि को कमजोर करती है और उनमें असुरक्षा पैदा करती है। कई बार यह तुलना बच्चों को मां से दूरी की ओर भी धकेल देती है क्योंकि उन्हें लगता है कि मां उन्हें स्वीकार नहीं करती।

इसके अलावा, तुलना बच्चों को कॉम्पिटिशन में धकेलकर उनकी मासूमियत और रचनात्मकता को खत्म कर देती है। वे सीखने की खुशी के बजाय सिर्फ जीतने का दबाव महसूस करते हैं। इसलिए एक्सपर्ट कहते हैं, बच्चों को उनके अपने सफर में बढ़ावा दें, न कि दूसरे बच्चों की रेस में धकेलें।

जरूरत से ज्यादा लाड़-प्यार या ओवर-प्रोटेक्टिव होना भी बच्चों को कमजोर बनाता है

मां का प्यार दुनिया में सबसे मजबूत है, लेकिन जब यही प्यार ओवर-प्रोटेक्शन या जरूरत से ज्यादा लाड़-प्यार में बदल जाए, तो यह बच्चों के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। कई मांएं हर छोटी चीज़ में बच्चे का साथ देती हैं, उसकी हर गलती को छिपा लेती हैं, उसके हर गलत व्यवहार को सपोर्ट कर देती हैं। वे सोचती हैं कि बच्चा दुखी न हो, लेकिन यही तरीका उसे कमजोर बना देता है।

जब मां हर बार बच्चे का पक्ष लेती है या उसकी गलतियों को सही ठहराती है, तो बच्चा ‘जिम्मेदारी’ का अर्थ ही नहीं सीख पाता। आगे चलकर वह किसी भी नियम या मर्यादा को गंभीरता से नहीं लेता क्योंकि उसे पता होता है कि मां मुझे बचा लेगी। ओवर-प्रोटेक्शन बच्चे को वास्तविक दुनिया से दूर कर देता है। वह न चुनौतियों का सामना करना सीखता है, न ही अपने गलत निर्णयों की जिम्मेदारी लेना। ऐसे बच्चे बड़े होकर तनाव से टूट सकते हैं क्योंकि उन्होंने कभी समस्या से निपटना सीखा ही नहीं होता। इसलिए जरूरी है कि मां प्यार दे, लेकिन सीमित होकर, और बच्चे की हर गलती पर भी सही-गलत का फर्क स्पष्ट करे।

किसी और का गुस्सा बच्चों पर निकालना

आज की दिनचर्या में तनाव हर घर का हिस्सा बन चुका है काम का तनाव, रिश्तों की समस्याएं, आर्थिक दबाव, घर की जिम्मेदारियां लेकिन कई मांएं यही गुस्सा अनजाने में अपने बच्चों पर निकाल देती हैं। बच्चा किसी गलती के बिना भी डांट खा लेता है, या मामूली बात पर भी उस पर आवाज़ उठाई जाती है। यह व्यवहार बच्चे को भावनात्मक रूप से चोट पहुंचाता है। धीरे-धीरे बच्चा मां से डरने लगता है, अपनी बात शेयर करना बंद कर देता है, और अंदर ही अंदर तनावग्रस्त हो जाता है।

बच्चे गुस्से को मेरी गलती मान लेते हैं, अगर वे दोषी न हों। इससे उन्हें लगता है कि वे पर्याप्त अच्छे नहीं हैं। यह तकलीफ उनका आत्मविश्वास कम करती है और उनके व्यवहार में चिड़चिड़ापन, डर या चुप्पी जैसी समस्याएं दिखाई देने लगती हैं। मां के गुस्से का असर सिर्फ उस पल तक नहीं रहता, यह बच्चे की पूरी सोच को प्रभावित कर सकता है। इसलिए एक्सपर्ट कहते हैं, गुस्सा आ जाए तो बच्चों को दूरी पर रखें। शांत होने के बाद ही बात करें। यह रिश्ता मजबूत बनाता है, कमजोर नहीं।