क्या स्क्रीन की लत ने बच्चों को बना दिया है बदतमीज? जानें पेरेंट्स के लिए 5 जरूरी टिप्स

आजकल बच्चों की स्क्रीन की लत ने उनकी आदतों में काफी बदलाव ला दिया है। मोबाइल, टैबलेट, और टीवी पर ज्यादा समय बिताने से बच्चे अक्सर चिड़चिड़े और बदतमीज हो जाते हैं।

भावना चौबे
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Parenting Tips

Parenting Tips: स्क्रीन टाइम यानी स्मार्टफोन या टैबलेट पर बिताया जाने वाला समय बच्चों के लिए कई तरह की शारीरिक और मानसिक समस्याएं पैदा कर सकता है। लगातार स्क्रीन के सामने रहने से बच्चों की आंखों पर तनाव बढ़ता है और यह उनकी नींद में भी बाधा डाल सकता है।

इसके अलावा स्क्रीन टाइम के कारण बच्चों के व्यवहार में भी नकारात्मक बदलाव देखने को मिल रहे हैं। जैसे बदतमीजी करना, माता-पिता की बात ना सुनना और असामाजिक व्यवहार।

स्क्रीन टाइम सीमित करने के आसान तरीके

हर माता-पिता की इस वक्त चिंताएं बढ़ रही है, क्योंकि लाख बार मना करने के बाद भी बच्चे मोबाइल फोन, लैपटॉप या फिर टैबलेट से दूर नहीं रहते हैं। ज्यादा समय स्क्रीन टाइम पर बिताना न सिर्फ बच्चों के सामाजिक कौशल बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर असर डाल रहा है। इसलिए बच्चों के स्क्रीन टाइम को सीमित करना और स्वस्थ गतिविधियों को बढ़ावा देना जरूरी है, ताकि उनका विकास संकेत और सकारात्मक दिशा में हो सके।

स्क्रीन टाइम दिमाग पर कैसे डालता है असर?

अत्यधिक स्मार्टफोन का इस्तेमाल करने की वजह से बच्चे सेंसरी ओवरलोड का शिकार हो जाते हैं। यानी उनके दिमाग को एक साथ बहुत सारी जानकारियां मिलती है। जिससे वे सही से ध्यान केंद्रित करने में मुश्किलों का सामना करते हैं। इस कारण मानसिक थकावट महसूस होती है और उनका ध्यान कम हो जाता है। जिससे उनमें गुस्सा और चिड़चिड़ापन बढ़ सकता है। यह स्थिति उनके मानसिक और भावनात्मक विकास पर नकारात्मक असर डाल सकती है।

बच्चों और माता-पिता के बीच की दूरी

सबसे मुख्य नुकसान इस बात का होता है कि जब बच्चे अपना अत्यधिक समय मोबाइल पर बिताते हैं, तो वह माता-पिता के साथ समय बिताना कम कर देते हैं। जिससे धीरे-धीरे पारिवारिक जुड़ाव कम होने लगता है और बच्चे माता-पिता से ज्यादा बातचीत करने में हिचकिचाते हैं। यह दूरी उनके व्यवहार में गुस्सा और चिड़चिड़ापन पैदा कर सकती है जो उनके मानसिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक असर डाल सकती है।

हिंसक कंटेंट का प्रभाव

आजकल वीडियो, गेम, कार्टून सीरियल, शो फिल्मों में इंसान का अत्यधिक प्रदर्शन हो रहा है। जिसे लगातार देखने से बच्चों के मन में हिंसा के प्रति आकर्षण विकसित हो सकता है। यह प्रदर्शन उन्हें शारीरिक और शाब्दिक हिंसा की ओर प्रेरित करता है। जिससे उनका व्यवहार आक्रामक और अपशब्द भी हो सकता है। इस तरह की सामग्री का निरंतर संपर्क बच्चों की सोच और आदतों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

बच्चों के व्यवहार में बदलाव

अगर आपके बच्चे के व्यवहार में बदलाव दिखाई दे रहे हैं, तो समय रहते सतर्क हो जाना बेहद जरूरी है। इससे पहले कि उनके व्यवहार पर नकारत्मक प्रभाव पड़े उनके स्क्रीन टाइम को सीमित करने के लिए कुछ जरूरी कदम उठाना जरूरी है। इसके लिए आपको एक समय निर्धारित करना होगा जैसे दिन में कितने घंटे स्क्रीन का उपयोग हो सकता है और कौन सी सामग्री देखी जा सकती है। इसके साथ ही बच्चों को स्क्रीन से दूर रखने के लिए अन्य रचनात्मक गतिविधियों में उनकी रुचि बढ़ाने की कोशिश करें।

स्क्रीन टाइम के लिए सख्त नियम बनाएं

बच्चों के स्क्रीन टाइम को लेकर स्पष्ट और सख्त नियम बनाना बेहद जरूरी है। उन्हें कब कितनी देर और क्या देखना है उसके बारे में शुरुआत से ही अनुशासन रखें। यह न केवल उनके दिनचर्या को संतुलित करेगा बल्कि उनके मानसिक और शारीरिक विकास के लिए भी फायदेमंद होगा।

बच्चे अपने आसपास के लोगों को देखकर ही आदतें सीखते हैं। अगर आप खुद अपने स्क्रीन टाइम को सीमित रखेंगे, तो बच्चा भी आपकी इस आदत से प्रेरित होगा और स्मार्टफोन पर कम से कम समय बिताएगा। आपका अनुशासित व्यवहार उसके लिए एक सकारात्मक उदाहरण बनेगा।

 


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भावना चौबे

भावना चौबे

इस रंगीन दुनिया में खबरों का अपना अलग ही रंग होता है। यह रंग इतना चमकदार होता है कि सभी की आंखें खोल देता है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि कलम में बहुत ताकत होती है। इसी ताकत को बरकरार रखने के लिए मैं हर रोज पत्रकारिता के नए-नए पहलुओं को समझती और सीखती हूं। मैंने श्री वैष्णव इंस्टिट्यूट ऑफ़ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन इंदौर से बीए स्नातक किया है। अपनी रुचि को आगे बढ़ाते हुए, मैं अब DAVV यूनिवर्सिटी में इसी विषय में स्नातकोत्तर कर रही हूं। पत्रकारिता का यह सफर अभी शुरू हुआ है, लेकिन मैं इसमें आगे बढ़ने के लिए उत्सुक हूं।मुझे कंटेंट राइटिंग, कॉपी राइटिंग और वॉइस ओवर का अच्छा ज्ञान है। मुझे मनोरंजन, जीवनशैली और धर्म जैसे विषयों पर लिखना अच्छा लगता है। मेरा मानना है कि पत्रकारिता समाज का दर्पण है। यह समाज को सच दिखाने और लोगों को जागरूक करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। मैं अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करूंगी।

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