स्क्रीन की लत ने बच्चे को बना दिया है बदतमीज? इन 4 तरीकों से सुधारें आदत

Parenting Tips: क्या आपका बच्चा बदतमीज़ी करने लगा है? अगर हां, तो इसके पीछे स्क्रीन टाइम का बढ़ता असर हो सकता है। आजकल बच्चे अक्सर स्मार्टफोन, टैबलेट और अन्य गैजेट्स के प्रति आकर्षित होते हैं, जो उनके व्यवहार पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं।

भावना चौबे
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Parenting Tips: आज के दौर में स्क्रीन टाइम का बढ़ता उपयोग बच्चों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गंभीर असर डाल रहा है। स्क्रीन पर ज्यादा वक्त बिताने से बच्चों में चिड़चिड़ापन धैर्य की कमी और गुस्सा जैसे बदलाव देखे जा रहे हैं।

कई माता-पिता को ऐसा भी लगता है कि उनके बच्चे स्मार्टफोन और टैबलेट की लत के कारण धीरे-धीरे बदतमीज होते जा रहे हैं। यह बदलाव बच्चों के मस्तिष्क के विकास और उनके सामाजिक व्यवहार पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। ऐसे में जरूरी है, की माता-पिता स्क्रीन टाइम को संतुलित रखें और बच्चों के साथ समय बिताते हुए उनकी गतिविधियों पर ध्यान अवश्य दें।

स्क्रीन की लत का बुरा असर (Screen Addiction Making Child Disobedient)

सेंसरी ओवरलोड का शिकार

स्मार्टफोन पर हद से ज्यादा समय बिताने से बच्चे सेंसरी ओवरलोड का शिकार हो जाते हैं, जिससे उनके मस्तिष्क पर लगातार सूचनाओं का दबाव बढ़ता है। इसके कारण वह किसी भी चीज पर ध्यान केंद्रित करने से कठिनाई महसूस करने लगते हैं और मानसिक ऊर्जा में कमी का अनुभव होता है। जिसके चलते उनमें चिड़चिड़ापन और गुस्सा बढ़ने लगता है, जो उनके सामान्य व्यवहार पर भी नकारात्मक असर डाल सकता है।

बातचीत में कमी

स्मार्टफोन पर अधिक समय बिताने के कारण बच्चों और उनके माता-पिता के बीच बातचीत में कमी आने लगती है। घर के सदस्यों के साथ कम वक्त बिताने की वजह से बच्चे सामाजिक और भावनात्मक रूप से अलग अलग महसूस करने लगते हैं। जिससे उनके भीतर घुसा और चिड़चिड़ापन दिन पर दिन बढ़ने लगता है। माता-पिता के साथ सीमित बातचीत का असर उनके व्यावहारिक विकास पर पड़ता है। जिससे उनका सामाजिक कौशल भी प्रभावित होते हैं।

वर्चुअल दुनिया में जीना

छोटे बच्चे वर्चुअल दुनिया और वास्तविकता के बीच का अंतर समझने में अक्सर सक्षम नहीं होते हैं जैसे स्मार्टफोन पर देखी गई चीज उनके व्यवहार को प्रभावित करती है। वे जो कुछ भी स्क्रीन पर देखते हैं उसे वास्तविक मानते हैं और उसी के अनुसार घर में व्यवहार करते हैं। ऐसे में माता-पिता के लिए यह जरूरी है कि वह बच्चों को वर्चुअल और वास्तविक दुनिया के बीच का फर्क समझाएं और स्क्रीन टाइम को सीमित रखें।

अगर आपको अपने बच्चों के व्यवहार में इस तरह के बदलाव दिखाई दे रहे हैं, तो सतर्क होने की जरूरत है। स्क्रीन टाइम के बढ़ते प्रभाव से पहले ही बच्चों के व्यवहार पर स्थायी असर पड़ने से रोकने के लिए आपको उसकी स्क्रीन टाइम को कम करने की दिशा में ठोस कदम उठाने चाहिए।

कैसे करें बच्चों में सुधार (Parenting Tips)

टाइम फिक्स करें

बच्चों के लिए यह जरूरी है कि आप उन्हें बताएं कि वह कब, कितनी देर और क्या देखेंगे। इसके लिए शुरुआत से ही सख्त रहना चाहिए। माता-पिता को अपने बच्चों के लिए कुछ नियम बनाने चाहिए। जैसे कि स्क्रीन का समय कितना होगा, क्या देखना सही होगा और कितनी देर तक देखना सही होगा। इससे बच्चों को समझ में आएगा कि स्मार्टफोन और अन्य डिवाइस का सही से इस्तेमाल कैसे करना है। इससे न केवल उनका मानसिक स्वास्थ्य अच्छा रहेगा, बल्कि वह जिम्मेदार तरीके से डिजिटल चीजों का इस्तेमाल करना भी सीख जाएंगे।

आप खुद भी कम चलाएं फोन

बच्चे देख कर ही सीखते हैं, इसलिए आपको भी अपने स्मार्टफोन का इस्तेमाल कम करना चाहिए। जब बच्चे आपको कम स्क्रीन पर देखेंगे, तो वह भी कम समय बिताने की कोशिश करेंगे। यह एक अच्छा उदाहरण है, जो उन्हें प्रेरित करेगा। साथ ही आप उन्हें खेल,पढ़ाई या परिवार के साथ समय बिताने के लिए भी कह सकते हैं, जिससे उनका विकास सही तरीके से हो सके।

कारण समझें

बच्चों के व्यवहार पर ध्यान देना बहुत जरूरी है। यदि आप देखते हैं कि बच्चों के व्यवहार में अचानक कोई बदलाव आ रहा है, तो उसके प्रति सतर्क रहें। यह बदलाव कई कारणों से हो सकता है जैसे स्क्रीन टाइम का बढ़ना, सामाजिक तनाव या किसी और समस्या ऐसे में आपको उन कारणों को पहचानने और उन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए।

टेक-फ्री जोन बनाएं

घर में एक टेक-फ्री जोन बनाना बहुत फायदेमंद हो सकता है। इस जोन में बच्चों की खेलने मनोरंजन की लिए किसी भी तरह का इलेक्ट्रॉनिक गैजेट नहीं होना चाहिए। यह जगह बच्चों को बिना डिवाइस के रचनात्मक गतिविधियों में शामिल होने का मौका देती है। जैसे कि खेल, पढ़ाई, आर्ट एंड क्राफ्ट और कला आप भी बच्चों के साथ इस जोन में समय बिताए। जिससे उनके साथ बातचीत हो सके और उनका सामाजिक और भावनात्मक विकास हो सके।

 


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भावना चौबे

इस रंगीन दुनिया में खबरों का अपना अलग ही रंग होता है। यह रंग इतना चमकदार होता है कि सभी की आंखें खोल देता है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि कलम में बहुत ताकत होती है। इसी ताकत को बरकरार रखने के लिए मैं हर रोज पत्रकारिता के नए-नए पहलुओं को समझती और सीखती हूं। मैंने श्री वैष्णव इंस्टिट्यूट ऑफ़ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन इंदौर से बीए स्नातक किया है। अपनी रुचि को आगे बढ़ाते हुए, मैं अब DAVV यूनिवर्सिटी में इसी विषय में स्नातकोत्तर कर रही हूं। पत्रकारिता का यह सफर अभी शुरू हुआ है, लेकिन मैं इसमें आगे बढ़ने के लिए उत्सुक हूं।मुझे कंटेंट राइटिंग, कॉपी राइटिंग और वॉइस ओवर का अच्छा ज्ञान है। मुझे मनोरंजन, जीवनशैली और धर्म जैसे विषयों पर लिखना अच्छा लगता है। मेरा मानना है कि पत्रकारिता समाज का दर्पण है। यह समाज को सच दिखाने और लोगों को जागरूक करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। मैं अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करूंगी।

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