जेन-बीटा बच्चों को पालने के 4 ज़बरदस्त टिप्स, हर माता-पिता को जानना चाहिए

जेन-बीटा बच्चों का पालन-पोषण अब पहले से कहीं ज़्यादा चुनौतीपूर्ण हो गया है, क्योंकि ये बच्चे तकनीकी दुनिया में बढ़ रहे हैं. ऐसे में, माता-पिता के लिए यह ज़रूरी है कि वे बच्चों को सही तरीके से गाइड करें.

Bhawna Choubey
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नई पीढ़ी जेन बीटा अब आ चुकी है, अगर आप माता-पिता बनने वाले हैं, या फिर अभी अभी माता-पिता बने हैं, तो आपको इस पीढ़ी के बारे में जानना बहुत ज़रूरी है. जो भी बच्चे 2025 या उसके बाद जन्म लेंगे वह जेन बीटा कहलाएंगे.

जैसे-जैसे समय बदल रहा है वैसे-वैसे परवरिश करने का तरीक़ा भी बदलता जाता है. ऐसे में जेन बीटा बच्चों की परवरिश करना माता-पिता के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती साबित हो सकती है.

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जेन-बीटा बच्चों को पालने के 4 ज़बरदस्त टिप्स (Parenting Tips)

इसी के चलते आज हम आपको इस आर्टिकल के ज़रिये माता-पिता के लिए कुछ ऐसे आसान और ज़रूरी टिप्स बताएंगे, जो इस पीढ़ी को एक अच्छे और समझदार इंसान बनाने में मदद करेंगी.

स्क्रीन टाइम को मैनेज करें

आजकल के माता-पिता के लिए सबसे बड़ी चिंता जो है वह है स्क्रीन टाइम को सही से मैनेज करना. जैसे-जैसे नई-नई जनरेशन आती जा रही है वैसे-वैसे मोबाइल और गैजेट्स ज़रूरी बनते जा रहे हैं, ऐसे में माता-पिता के लिए ज़रूरी है, कि वह अपने बच्चों का स्क्रीन टाइम कैसे मैनेज करें.

ऐसे में आजकल के माता-पिता को यह जानना ज़रूरी है कि वे अपने बच्चों के साथ जितना हो सके समय बिताएँ और किताबें पढ़ें या फिर खेलकूद जैसी गतिविधियों में हिस्सा ले जिससे की बच्चे अपने आप मोबाइल फ़ोन से दूरियां बना सकें.

प्रकृति का महत्व समझाएँ

जैसे-जैसे जनरेशन बदलती जा रही है वैसे वैसे बच्चे प्रकृति से दूर होते जा रहे हैं. मोबाइल फ़ोन एक ज़रूरत बन चुकी है जिसके कारण बच्चे बाहर की दुनिया को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, और घर में बैठकर मोबाइल या फिर कम्प्यूटर चलाना पसंद करते हैं.

ऐसे में माता-पिता की ज़िम्मेदारी है कि बच्चों को पर्यावरण के बारे में बताएँ, उन्हें वीकेंड्स में ऐसी ऐसी जगह घुमाने को लेकर जाएं जहाँ वे प्रकृति के साथ घुल मिल सके और प्रकृति का महत्व समझ सके. बच्चों को ईको फ्रेंडली सामान ख़रीदने में शामिल करना चाहिए.

इमोशनल इंटेलिजेंस

बच्चों को भावनात्मक रिश्तों के बारे में समझाए, जैसे जैसे जनरेशन बदलती जा रही है , वैसे वैसे लोगों का भावनात्मक व्यवहार कम होता जा रहा है. न तो वे अपनी भावना को अच्छे से दूसरों के सामने व्यक्त कर पाते हैं , न ही दूसरों की भावनाओं को ठीक से समझ पाते हैं. ऐसे में ज़रूरी है कि आप बच्चों को जनरल लिखने या कहानी सुनने जैसी गतिविधियों में शामिल करें.

माता-पिता को भी बदलना चाहिए

जैसे-जैसे जनरेशन बदल रही है वैसे वैसे माता पिता को भी बदलना चाहिए. जब आप एक ओपन माइंडेड पेरेंट्स बनेंगे, वो बच्चे आसानी से अपने मन की बातें आपसे कर पाएंगे.

यह बात माता-पिता के लिए बहुत ज़रूरी है, ज़माने के साथ अपने आपको भी बदलें. अगर आप अपने बच्चों को अपनी जनरेशन के हिसाब से चलने पर मजबूर करेंगे, तो ये कहीं न कहीं आपके और बच्चों के बीच में दरार पैदा कर सकता है.

 


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Bhawna Choubey

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इस रंगीन दुनिया में खबरों का अपना अलग ही रंग होता है। यह रंग इतना चमकदार होता है कि सभी की आंखें खोल देता है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि कलम में बहुत ताकत होती है। इसी ताकत को बरकरार रखने के लिए मैं हर रोज पत्रकारिता के नए-नए पहलुओं को समझती और सीखती हूं। मैंने श्री वैष्णव इंस्टिट्यूट ऑफ़ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन इंदौर से बीए स्नातक किया है। अपनी रुचि को आगे बढ़ाते हुए, मैं अब DAVV यूनिवर्सिटी में इसी विषय में स्नातकोत्तर कर रही हूं। पत्रकारिता का यह सफर अभी शुरू हुआ है, लेकिन मैं इसमें आगे बढ़ने के लिए उत्सुक हूं।मुझे कंटेंट राइटिंग, कॉपी राइटिंग और वॉइस ओवर का अच्छा ज्ञान है। मुझे मनोरंजन, जीवनशैली और धर्म जैसे विषयों पर लिखना अच्छा लगता है। मेरा मानना है कि पत्रकारिता समाज का दर्पण है। यह समाज को सच दिखाने और लोगों को जागरूक करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। मैं अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करूंगी।

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