अक्सर हमारे मन में ये सवाल आता है, अगर अच्छे-बुरे कर्मों का फल हमें स्वर्ग या नरक में मिलता है, तो इस धरती पर इतनी तकलीफें क्यों झेलनी पड़ती हैं? क्या यही जीवन का न्याय है?
इसी सवाल पर हाल ही में प्रेमानंद जी महाराज का एक प्रवचन सोशल मीडिया पर वायरल हुआ, जिसमें उन्होंने बेहद सरल शब्दों में इसका जवाब दिया। उन्होंने बताया कि धरती सिर्फ कर्म करने की जगह नहीं, बल्कि कर्मों का फल भोगने की भी ज़मीन है।
जैसा बीज बोओगे, वैसा ही फल पाओगे
प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, स्वर्ग और नरक केवल आत्मा की अवस्था के अनुभव हैं, लेकिन धरती एक ऐसी जगह है जहाँ आत्मा और शरीर दोनों साथ होते हैं। इसलिए, यहाँ किया गया हर कर्म, चाहे अच्छा हो या बुरा, अपने प्रभाव के साथ वापस आता है। उदाहरण के तौर पर, अगर किसी ने पहले जन्म में किसी को दुःख दिया हो, तो इस जन्म में उसे बिना कारण ही दुखों का सामना करना पड़ सकता है। महाराज कहते हैं कि “जैसा बीज बोओगे, वैसा फल मिलेगा”, ये सिर्फ कहावत नहीं, बल्कि प्रकृति का नियम है। और प्रकृति कभी गलती नहीं करती।
धरती पर ही क्यों होता है पाप-पुण्य का असर?
प्रेमानंद जी का मानना है कि आत्मा जब शरीर में होती है, तभी वह कर्म करती है और उन्हीं कर्मों का फल धरती पर ही भुगतना होता है। स्वर्ग या नरक, आत्मा की चेतना की स्थिति है, वहाँ आप सिर्फ अनुभव करते हैं, कोई नया कर्म नहीं कर सकते।
धरती पर इंसान को दोबारा शरीर मिलता है ताकि अधूरे कर्मों का हिसाब-किताब पूरा किया जा सके। यही कारण है कि कई बार अच्छे इंसानों को भी दुखों से गुजरना पड़ता है, क्योंकि यह उनके पिछले कर्मों का नतीजा होता है। और यही प्रक्रिया आगे चलकर मोक्ष की दिशा तय करती है।
क्या धरती ही असली कर्मभूमि है?
जी हां, प्रेमानंद जी महाराज के मुताबिक धरती ही वह जगह है जहां आत्मा को अपने कर्म सुधारने का मौका मिलता है। उन्होंने कहा, “ईश्वर हमें सिर्फ इंसान बनाकर नहीं छोड़ता, बल्कि बार-बार जन्म देकर सुधारने का अवसर देता है।”
स्वर्ग-नरक में केवल फल का अनुभव होता है, लेकिन धरती पर हमें सीखने, बदलने और सुधारने का अवसर मिलता है। यही कारण है कि धर्मग्रंथों में धरती को ‘कर्मभूमि’ कहा गया है। महाराज का यह तर्क इस धारणा को चुनौती देता है कि इंसान का जीवन केवल परीक्षा है, बल्कि ये जीवन एक मौका है खुद को बेहतर बनाने का।





