आज की दुनिया में जब भी हम किसी धनवान को देखते हैं, तो उसके ऐशो-आराम से प्रभावित हो जाते हैं। बड़ी गाड़ियां, आलीशान बंगले और महंगी घड़ियां देखकर लगता है कि यही असली सुख है। लेकिन क्या वाकई ये सब असली खुशी दे सकते हैं?
संत प्रेमानंद जी महाराज (Premanand Maharaj) अपने प्रवचनों में बार-बार बताते हैं कि अगर किसी की कमाई पाप से हुई है, तो उसका सुख सिर्फ बाहर से दिखेगा, भीतर से नहीं मिलेगा। असली सुख वो है, जो अच्छे कर्मों से आता है शांति, संतोष और आत्म-संतुलन के रूप में।
पाप की कमाई बनाम सत्कर्मों का सुख
दिखावे में है दम, पर भीतर है खालीपन
आज के समय में सोशल मीडिया और समाज में दिखावे की दौड़ चल रही है। पाप की कमाई से बनी दौलत आपको सबकुछ दे सकती है, सिवाय अंदरूनी सुकून के। प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि ऐसे लोग बाहर से हंसते हैं लेकिन रात में चैन की नींद नहीं सो पाते।
सत्कर्मों से मिलता है आत्मिक सुख
सत्कर्मी व्यक्ति चाहे कम कमाए, लेकिन उसके पास आत्मिक संतोष होता है। वह दूसरों की सेवा, सच बोलने और अच्छे कर्मों के कारण भीतर से सुकून महसूस करता है। यही सच्ची खुशी होती है जो किसी बैंक बैलेंस से नहीं खरीदी जा सकती।
समाज में सत्कर्मी की पहचान होती है स्थायी
पैसे वाले लोग आज हैं, कल नहीं। लेकिन जिसने अच्छे कर्म किए, उसका नाम समाज में हमेशा याद किया जाता है। प्रेमानंद जी महाराज के अनुसार, सत्कर्मी लोग भले ही सुर्खियों में न हों, पर उनके जीवन की शांति और संतुलन अमीरों की चमक से कहीं ज्यादा मूल्यवान होता है।





