समय बदल रहा है और नई पीढ़ी रिश्तों को समझने और निभाने के तरीके भी बदल रही है। आज के युवाओं में प्रेम विवाह का चलन आम होता जा रहा है, लेकिन कई बार इस पर माता-पिता की सोच और बच्चों की इच्छा में टकराव देखने को मिलता है।
ऐसे में संत प्रेमानंद महाराज की बातों को समझना बेहद ज़रूरी हो जाता है। अपने प्रवचनों में उन्होंने यह साफ किया है कि प्रेम विवाह गलत नहीं, बल्कि उस पर माता-पिता की सोच और व्यवहार ही रिश्तों की सफलता या असफलता तय करते हैं। आइए जानते हैं उन्होंने क्या सलाह दी है।
लव मैरिज में गलत क्या है, अगर बच्चा सही है?
प्रेमानंद महाराज कहते हैं कि अगर बेटा या बेटी जिस व्यक्ति से विवाह करना चाहते हैं, वह संस्कारी, जिम्मेदार और सच्चा है, तो केवल प्रेम के आधार पर उसे ठुकराना उचित नहीं। माता-पिता को चाहिए कि वे अपने बच्चों की भावनाओं को समझें और उन्हें खुले दिल से स्वीकारें।
टकराव नहीं, संवाद ज़रूरी है
महाराज जी के अनुसार, जब बच्चे माता-पिता से अपने मन की बात कहें तो उन्हें डांटना या ताने देने की बजाय शांत चित्त से बात सुननी चाहिए। संवाद से हर समस्या का हल निकल सकता है। प्रेम विवाह के मामलों में अधिकतर रिश्ते संवाद की कमी के कारण बिगड़ते हैं।
रिश्तों में अपनापन हो, तो हर विवाह सफल होता है
प्रेमानंद जी कहते हैं कि विवाह चाहे प्रेम से हो या परंपरा से, उसमें सबसे ज़रूरी होता है ‘समर्पण’ और ‘सम्मान’। अगर माता-पिता अपनापन दिखाएं और बच्चे भी उनके विश्वास को टूटने न दें, तो प्रेम विवाह भी उतना ही सफल हो सकता है जितना कोई अन्य विवाह।
अगर माता-पिता लव मैरिज के लिए ना मानें, तो क्या करें?
प्रेमानंद जी महाराज कहते हैं कि यदि माता-पिता प्रेम विवाह के लिए सहमत नहीं होते, तो बच्चे उन्हें मजबूर करने की बजाय शांतिपूर्वक समझाएं। महाराज जी का मानना है कि माता-पिता की सहमति बेहद जरूरी है, क्योंकि उनका आशीर्वाद ही रिश्ते को मजबूत बनाता है। अगर कुछ समय के लिए विरोध हो भी रहा हो, तो बच्चों को धैर्य रखना चाहिए और प्रेम व विश्वास से उन्हें भरोसे में लेना चाहिए। प्रेम में जब विनम्रता और सब्र होता है, तो कठिन से कठिन मन भी बदल जाता है।





