Quality Time : रिश्तों में मिठास घोलने वाला मंत्र, जानिए क्या है ‘क्वालिटी टाइम’ का सही अर्थ और कहां से शुरू हुई इसकी कहानी

क्वालिटी टाइम यानी रिश्तों का ऑक्सीजन। ये कोई बड़ा टास्क नहीं, बल्कि दिल से दिल तक का सफर है। ये वो जादुई पल हैं जो रिश्तों को मजबूत और जिंदगी को रंगीन बनाते हैं। तो अगली बार जब आप अपने किसी खास के साथ हों..अपना फोन साइड में रखें, उनकी बातें सुनें और उन पलों को जी लें। चाहे वो मम्मी के साथ किचन में हलवा बनाना हो या दोस्त के साथ ठहाके लगाना..क्वालिटी टाइम हर बार आपको और आपके अपनों को खुशी का खजाना देगा।

Quality Time : “क्वालिटी टाइम” ये शब्द आजकल हर जगह गूंज रहा है। सोशल मीडिया पोस्ट्स से लेकर पारिवारिक चर्चाओं और मनोवैज्ञानिक सलाह तक..हर कोई क्वालिटी टाइम बिताने की सलाह देता है। लेकिन क्या हम जानते हैं कि इसका असल अर्थ क्या है। आखिर है क्या ये क्वालिटी टाइम? कहां से आया ये शब्द और क्या ये हर रिश्ते में एक जैसा होता है? चलिए..आज इस अहम विषय पर बात करते हैं।

‘क्वालिटी टाइम’ केवल एक फैशनेबल शब्द नहीं, बल्कि संबंधों की अच्छी सेहत के लिए किसी आधार की तरह है। हालांकि इसकी परिभाषा और तरीका व्यक्ति और स्थितियों के अनुसार बदल सकता है..लेकिन इसके मूल में ध्यान, उपस्थिति और भावनात्मक जुड़ाव है। ये सिर्फ साथ रहना नहीं, ‘सार्थक रूप से साथ रहना’ है।

क्या है क्वालिटी टाइम  

क्वालिटी टाइम वो समय है, जब आप अपने खास लोगों के साथ पूरी तरह से ‘मौजूद’ होते हैं। न सिर्फ शरीर से बल्कि दिल और दिमाग से भी। आसान भाषा में परिवार, दोस्तों या पार्टनर के साथ बिताए वो खास पल जो दिल को सुकून और रिश्तों को ताजगी देते हैं। ये वो पल हैं जब फोन स्क्रीन पर नहीं, बल्कि एक-दूसरे की आंखों में देखकर बात होती है। मिसाल के तौर पर, अपने बच्चे के साथ घंटों टीवी देखना क्वालिटी टाइम नहीं है..लेकिन उसके साथ हंसी-मजाक करना, उसकी बातें सुनना या साथ में गेम खेलना जरूर क्वालिटी टाइम है।

कहां से आया ये शब्द

‘क्वालिटी टाइम’ शब्द और अवधारणा का जन्म 1970 के दशक में अमेरिका में माना जाता है। सबसे पहले 1973 में एक अखबार में इसका जिक्र हुआ, जहां बच्चों के साथ अच्छा और सच्चा समय बिताने की बात की गई थी। लेकिन असली धमाका हुआ 1992 में..जब अमेरिकी लेखक गैरी चैपमैन की किताब ‘द फाइव लव लैंग्वेजेस’ आई। उन्होंने कहा कि कुछ लोग प्यार को सबसे ज्यादा तब महसूस करते हैं, जब उनके साथ ध्यान से समय बिताया जाए। बस, यहीं से क्वालिटी टाइम का कॉन्सेप्ट दुनियाभर में छा गया।

भारत में ये शब्द 2000 के दशक में पॉपुलर हुआ..जब वेस्टर्न कल्चर और वर्क-लाइफ बैलेंस की बातें जोर पकड़ने लगीं। भारत में इस दशक की शुरुआत से ही शहरीकरण, वैश्वीकरण और मल्टीनेशनल कंपनियों की उपस्थिति ने वर्क कल्चर और पारिवारिक जीवन को प्रभावित करना शुरू किया। इसी समय ‘वर्क-लाइफ बैलेंस’ और ‘क्वालिटी टाइम’ जैसे शब्द कॉर्पोरेट ट्रेनिंग, एचआर नीतियों और लाइफस्टाइल मैगज़ीनों में आम होने लगे।

क्वालिटी टाइम को कैसे समझें

क्वालिटी टाइम कोई रॉकेट साइंस नहीं! ये वो छोटे-छोटे पल हैं, जो रिश्तों को खास बनाते हैं। इसमें आपका फुल फोकस अपने परिवार या खास लोगों पर होता है। इस दौरान फोन, टीवी या लैपटॉप को ‘बाय-बाय’ कहें। दिल की बातें शेयर करें और सुनें। आप बच्चों के साथ मस्ती भरी एक्टिविटी कर सकते हैं। साथ में खाना बनाना, गप्पें मारना या पार्क में टहलना जैसी आसान लेकिन एक दूसरे से जुड़ाव बढ़ाने वाली गतिविधियां अहम होती हैं। इन सारी बातों के दौरान सबसे जरूरी है एक-दूसरे की फीलिंग्स का खयाल रखना।

हर रिश्ते में अलग रंग

क्वालिटी टाइम हर जगह एक जैसा नहीं होता। हर रिश्ते और माहौल में इसका अंदाज बदल जाता है। हमारे देश में क्वालिटी टाइम का मतलब हो सकता है दीवाली पर परिवार के साथ मिठाई बनाना, तो कहीं दोस्तों के साथ गली क्रिकेट। हर जगह इसका अपना मजा है।

  • पार्टनर के साथ: कैंडल-लाइट डिनर, लॉन्ग वॉक या बस एक-दूसरे की मदद करना।
  • बच्चों के साथ: उनके साथ लूडो या कोई मनपसंद खेल खेलना, उनकी शरारतें सुनना या स्टोरी टाइम जैसी कई बातें।
  • दोस्तों के साथ: चाय की चुस्की, पुरानी यादें या मूवी नाइट।
  • ऑफिस में: टीम के साथ मजेदार ब्रेनस्टॉर्मिंग या एक-दूसरे की तारीफ।

आज की मुश्किलें और उनका आसान हल

आजकल फोन और सोशल मीडिया ने क्वालिटी टाइम को थोड़ा मुश्किल कर दिया है। एक स्टडी कहती है कि 70% भारतीय युवा अपने नजदीकी लोगों के साथ सच्चा समय नहीं बिता पाते हैं। लेकिन कुछ आसान टिप्स से आप इनमें सुधार सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले अपने फोन को रेस्ट दें। दिन में समय समय पर स्क्रीन से ब्रेक लें और रियल दुनिया में समय बिताएं। वीकेंड पर फैमिली या फ्रेंड्स के लिए टाइम फिक्स करें। अपने नजदीकी लोगों से जल्दी जल्दी मिलें। डिनर टेबल पर गप्पें मारें या साथ में चाय बनाएं। सबसे जरूरी है कि अपनी बात कहने के साथ सामने वाले की बात भी पूरे ध्यान से सुनें। इस तरह आप न सिर्फ खुद सच्ची खुशी महसूस करेंगे..बल्कि अपनों के चेहरे पर भी मुस्कान लाने में कामयाब रहेंगे।


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Shruty Kushwaha

Shruty Kushwaha

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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