Fri, Dec 26, 2025

वैज्ञानिकों को मिला दुनिया का सबसे दुर्लभ ब्लड, जो सिर्फ एक इंसान के शरीर में पाया गया, यहां जानिए नाम

Written by:Ronak Namdev
Published:
ब्लड ग्रुप्स को लेकर दुनिया में एक चौंकाने वाली खोज हुई है। फ्रांस की ग्वाडेलूप की 68 वर्षीय महिला के खून में पाया गया ‘Gwada Negative’ नाम का ब्लड ग्रुप दुनिया का सबसे दुर्लभ है। यह ब्लड टाइप अब तक सिर्फ एक ही इंसान में पाया गया है। 
वैज्ञानिकों को मिला दुनिया का सबसे दुर्लभ ब्लड, जो सिर्फ एक इंसान के शरीर में पाया गया, यहां जानिए नाम

ब्लड ग्रुप A, B, AB और O तो आपने सुना होगा, लेकिन अब ‘Gwada Negative’ नाम का एक ऐसा ब्लड ग्रुप सामने आया है जो आज तक दुनिया में किसी और में नहीं पाया गया। फ्रांस के ग्वाडेलूप की एक महिला में यह ब्लड ग्रुप मिला है और यह अब तक का सबसे दुर्लभ रक्त समूह माना जा रहा है। वैज्ञानिकों ने इसे इंटरनेशनल सोसाइटी ऑफ ब्लड ट्रांसफ्यूजन (ISBT) द्वारा मान्यता दिलवाकर 48वें ब्लड ग्रुप सिस्टम के रूप में दर्ज किया है।

बता दें कि ‘Gwada Negative’ एक ऐसा ब्लड ग्रुप है जिसमें EMM एंटीजन पूरी तरह से मौजूद नहीं है। आमतौर पर यह एंटीजन हर इंसान के रेड ब्लड सेल्स में पाया जाता है, लेकिन इस महिला के खून में इसकी पूरी तरह से गैर-मौजूदगी है। वैज्ञानिकों ने इसे EMM-negative system नाम दिया है।

इस महिला को किसी और का ब्लड नहीं चढ़ाया जा सकता

वहीं EFS के मुताबिक, यह स्थिति इस महिला को मेडिकल साइंस में अनोखा बनाती है। इस महिला को न ही किसी और का ब्लड चढ़ाया जा सकता है और न ही उसका खून किसी और के लिए काम आएगा। यानी वो सिर्फ खुद से मैच होती हैं। EFS के प्रमुख बायोलॉजिस्ट थियरी पेयरार्ड का कहना है कि इस महिला को यह खून दोनों माता-पिता से म्यूटेटेड जीन मिलने के कारण मिला है। इस वजह से उसका खून दुनिया में सबसे अलग और एकदम अनोखा बन गया है। इस खोज की खास बात यह भी है कि इसे ISBT ने जून 2025 में मिलान में हुए ब्लड साइंस सम्मेलन में आधिकारिक रूप से मान्यता दी है।

कैसे हुई थी खोज?

बता दे कि इस रहस्यमयी ब्लड ग्रुप की शुरुआत 2011 में हुई थी, जब ग्वाडेलूप मूल की महिला, जो उस वक्त पेरिस में रह रही थी, की एक सामान्य सर्जरी से पहले ब्लड टेस्ट किया गया। उस दौरान डॉक्टरों को उसके खून में एक ऐसा एंटीबॉडी मिला, जो किसी भी पहचान किए गए ब्लड ग्रुप से मेल नहीं खा रहा था। तकनीक सीमित थी, इसलिए पहचान नहीं हो सकी। 2019 में ‘नेक्स्ट जनरेशन सीक्वेंसिंग’ (NGS) टेक्नोलॉजी के ज़रिए वैज्ञानिकों ने उसी महिला के पुराने सैंपल की दोबारा जांच की और तब जाकर इस रहस्य से पर्दा उठा। इस खोज ने मेडिकल साइंस में एक नया अध्याय जोड़ दिया और वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद की कि इंसानी शरीर में ब्लड ग्रुप्स कितने अधिक विविध हो सकते हैं।

इस खोज का क्या है मेडिकल महत्व?

दरअसल ‘Gwada Negative’ सिर्फ एक वैज्ञानिक उपलब्धि नहीं, बल्कि दुर्लभ ब्लड डिसऑर्डर्स से जूझ रहे लोगों के लिए भी एक उम्मीद बन सकता है। मेडिकल साइंस में हर नए ब्लड ग्रुप सिस्टम की पहचान ब्लड ट्रांसफ्यूजन के जोखिम को कम करने और जटिल केसों में इलाज को सुरक्षित बनाने में मदद करती है।