रिलेशनशिप में स्पेस दे रहे हो या बेवकूफ बन रहे हो? 90% लोग नहीं समझ पाते ये फर्क

Relationship: रिश्तों में स्पेस देना जरूरी है, लेकिन कई बार इसे बेवकूफ बनने के साथ भी गलत समझा जाता है। जानिए कैसे पहचानें सही स्पेस और कब हो जाता है सब्र का इंतिहा।

रिश्तों में स्पेस देना बहुत जरूरी होता है, लेकिन कई बार लोग इसे गलत तरीके से समझ लेते हैं और अपने पार्टनर को ज्यादा जगह देकर खुद को कमजोर बना देते हैं। क्या आपको पता है कि स्पेस देना और बेवकूफ बनना में कितना बड़ा फर्क होता है? आज हम इस मुद्दे पर गहराई से बात करेंगे ताकि आप अपने रिश्ते को मजबूत बना सकें।

स्पेस देना मतलब होता है पार्टनर को अपनी जिंदगी में थोड़ा आज़ाद छोड़ना ताकि वह खुद को बेहतर समझ सके और रिश्ता भी स्वस्थ बना रहे। लेकिन जब ये स्पेस देना ज्यादा हो जाए, तब लोग इसे गलत समझकर खुद की इज्जत या भावनाओं की अनदेखी करने लगते हैं। एक्सपर्ट्स कहते हैं कि रिश्ते में स्पेस तभी काम करता है जब दोनों की इज्जत बनी रहे। अगर आप बिना सोच समझे हर बात पर चुप रह जाते हैं, तो ये बेवकूफ बनने जैसा है, जो रिश्ते के लिए नुकसानदायक हो सकता है।

रिलेशनशिप में स्पेस देने का सही मतलब

रिश्तों में स्पेस का मतलब केवल दूरी बनाना नहीं होता, बल्कि पार्टनर को उसकी ज़रूरत के अनुसार जगह देना होता है। यह स्पेस दोनों को अपने इमोशंस, करियर और पर्सनल गोल्स पर ध्यान देने का मौका देता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, बिना स्पेस के रिश्ते में क्लेश बढ़ने लगता है और टेंशन बढ़ती है। जब पार्टनर को थोड़ा स्पेस मिलता है, तो वो अपने आपको बेहतर समझ पाते हैं और आपसी संबंध मजबूत बनते हैं।

रिलेशनशिप स्पेस का सही इस्तेमाल करने वाले कपल्स अक्सर लंबे समय तक खुश रहते हैं। लेकिन अगर स्पेस देते हुए भावनात्मक दूरी बढ़ाई जाए या पार्टनर की जरूरतों को नजरअंदाज किया जाए, तो ये रिश्ता कमजोर पड़ने लगता है।

स्पेस देना और बेवकूफ बनना

स्पेस देने का मतलब है समझदारी से अपने रिश्ते को संभालना, लेकिन बेवकूफ बनना मतलब अपनी इज्जत या जरूरतों को अनदेखा कर देना। कई बार लोग सोचते हैं कि जितना ज्यादा स्पेस देंगे, उतना ही पार्टनर खुश रहेगा, लेकिन ये हमेशा सही नहीं होता। अगर आप खुद को बहुत नीचे रखकर, बिना अपनी आवाज़ उठाए या बिना अपनी जरूरतों के कहे दूर रहते हैं, तो यह आपके लिए खतरे की घंटी है।

किसी भी रिश्ते में स्वस्थ स्पेस तभी होता है जब दोनों की बात सुनी जाए, भावनाओं का आदान-प्रदान हो, और जरूरत पड़ने पर एक-दूसरे का सहारा भी बना जाएं। अगर आप लगातार चुप रहकर या हर बात पर हां में हां मिलाकर अपनी गरिमा खो देते हैं, तो वो स्पेस नहीं, बेवकूफ बनना कहलाएगा।

 


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Bhawna Choubey

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इस रंगीन दुनिया में खबरों का अपना अलग ही रंग होता है। यह रंग इतना चमकदार होता है कि सभी की आंखें खोल देता है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि कलम में बहुत ताकत होती है। इसी ताकत को बरकरार रखने के लिए मैं हर रोज पत्रकारिता के नए-नए पहलुओं को समझती और सीखती हूं। मैंने श्री वैष्णव इंस्टिट्यूट ऑफ़ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन इंदौर से बीए स्नातक किया है। अपनी रुचि को आगे बढ़ाते हुए, मैं अब DAVV यूनिवर्सिटी में इसी विषय में स्नातकोत्तर कर रही हूं। पत्रकारिता का यह सफर अभी शुरू हुआ है, लेकिन मैं इसमें आगे बढ़ने के लिए उत्सुक हूं।मुझे कंटेंट राइटिंग, कॉपी राइटिंग और वॉइस ओवर का अच्छा ज्ञान है। मुझे मनोरंजन, जीवनशैली और धर्म जैसे विषयों पर लिखना अच्छा लगता है। मेरा मानना है कि पत्रकारिता समाज का दर्पण है। यह समाज को सच दिखाने और लोगों को जागरूक करने का एक महत्वपूर्ण माध्यम है। मैं अपनी लेखनी के माध्यम से समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का प्रयास करूंगी।

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