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Mon, Dec 22, 2025

रिश्तेदारों के बच्चों की सैलरी जानकर अपने बेटे-बेटियों को ताना मारना क्यों है बुरा? पैरेंट्स जान लें ये 5 खतरनाक अंजाम

Written by:Bhawna Choubey
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अगर आप भी अपने बच्चों की तुलना रिश्तेदारों से करते हैं, तो ये आदत छोड़ दीजिए। इससे बच्चे की सेल्फ-वैल्यू खत्म हो सकती है और रिश्तों में दरार आ सकती है। जानिए ऐसा करना बच्चों की मेंटल हेल्थ पर कैसे डालता है सीधा असर।
रिश्तेदारों के बच्चों की सैलरी जानकर अपने बेटे-बेटियों को ताना मारना क्यों है बुरा? पैरेंट्स जान लें ये 5 खतरनाक अंजाम

भारतीय परिवारों में एक आम सीन है, “देखो शर्मा जी के बेटे को, कितनी अच्छी सैलरी है उसकी, और तुम?” ऐसा ताना हर दूसरे घर में सुनने को मिल जाता है। लेकिन ये छोटी लगने वाली बातें बच्चों के मन में गहरे ज़ख्म छोड़ सकती हैं। ऐसा करना न सिर्फ़ उनके आत्मविश्वास को तोड़ता है, बल्कि रिश्तों में दूरी भी ला सकता है।

जैसे ही रिश्तेदारों के बच्चे तरक्की करते हैं, कुछ पैरेंट्स अपने बच्चों से उम्मीदें बढ़ा देते हैं। लेकिन तुलना करने की ये आदत कहीं न कहीं बच्चों को अंदर से तोड़ देती है। अब वक्त है समझने का कि ये रवैया कितना नुक़सानदायक हो सकता है।

तुलना से बच्चों का आत्मविश्वास गिरता है

जब माता-पिता अपने बच्चों की तुलना बार-बार किसी और से करते हैं, खासकर सैलरी जैसे मामलों में, तो बच्चे खुद को कमतर समझने लगते हैं। एक स्टडी के मुताबिक, जिन बच्चों की बचपन में बार-बार दूसरों से तुलना की जाती है, वे बड़े होकर कम कॉन्फिडेंस वाले और ज़्यादा स्ट्रेस से जूझते हैं। ऐसे बच्चे हमेशा परफॉर्म करने के प्रेशर में रहते हैं और खुश रहना भूल जाते हैं।

कई बार बच्चे मेहनत भी कर रहे होते हैं, लेकिन सिर्फ़ इस वजह से कि उनके रिश्तेदार का बेटा ज़्यादा कमा रहा है, ये तुलना उनका आत्मसम्मान चूर-चूर कर देती है। इसकी जगह अगर पैरेंट्स बच्चों की प्रगति पर फोकस करें, तो वो और बेहतर कर सकते हैं।

माता-पिता और बच्चों के रिश्ते में आ जाती है दूरी

बच्चों को तब सबसे ज़्यादा तकलीफ होती है, जब उन्हें लगता है कि उनके अपने ही लोग उन्हें नहीं समझते। जब पैरेंट्स हर बात पर ये कहने लगते हैं कि “देखो, फला का बेटा इतना कमा रहा है”, तो बच्चा मन ही मन अपनी बात कहने से डरने लगता है। वो घर में कम बोलने लगता है और इमोशनली कट ऑफ हो जाता है।

ऐसा नहीं है कि पैरेंट्स का इरादा बुरा होता है, लेकिन तरीका गलत होता है। बच्चों को गाइड करने और मोटिवेट करने का सही तरीका यह है कि उन्हें उनकी योग्यता और मेहनत के आधार पर सराहा जाए, ना कि किसी और की सैलरी से मापा जाए।

मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ता है बुरा असर

तुलना से बच्चों को ‘परफेक्शनिज़्म’ का शिकार बनने का डर रहता है। वो हर समय खुद को साबित करने की होड़ में लगे रहते हैं। इससे डिप्रेशन, एंग्जायटी और यहां तक कि आत्महत्या जैसे गंभीर खतरे भी पैदा हो सकते हैं। बच्चों को इस दुनिया में पहले से ही ढेर सारी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, ऐसे में पैरेंट्स को उनकी ताकत बनना चाहिए, ना कि उनके अंदर हीनभावना भरने वाले।

बच्चे रिसेंटमेंट पालने लगते हैं

लगातार तुलना करने पर बच्चे माता-पिता के खिलाफ एक अंदरूनी गुस्सा पालने लगते हैं। कई बार ये गुस्सा समय के साथ रिश्तों को तोड़ देता है। बड़े होकर यही बच्चे पैरेंट्स से दूरियां बना लेते हैं, और आपसी बातचीत तक बंद हो जाती है।

बच्चों का फोकस भटक सकता है

हर बच्चा अलग होता है, किसी की रुचि कला में होती है तो किसी की टेक्नोलॉजी में। लेकिन अगर बार-बार ये सुनाया जाए कि “फला इंजीनियर है, तू क्यों नहीं?”, तो बच्चा अपनी पसंद छोड़कर कुछ ऐसा करने लगता है जो सिर्फ़ दूसरों को खुश करे। इसका नतीजा ये होता है कि ना तो वो खुद खुश रह पाता है, और ना ही सफलता मिलती है।