Sahityiki : साहित्यिकी में आज पढ़िए कथा सम्राट प्रेमचंद की कहानी ‘दो बैलों की कथा’

Premchand

Sahityiki : आज शनिवार है और हर सप्ताहांत हम अपने पढ़ने की आदत को बेहतर बनाने की कोशिश करते हैं। आज की आपाधापी वाले समय में हर व्यक्ति व्यस्त है और इसी कारण पढ़ने की ओर रुचि घटने लगी है। लेकिन किताबें हमें जीवन के ऐसे सबक सिखाती हैं, जो अन्यत्र दुर्लभ है। इसीलिए हम हर शनिवार को कोई एक कहानी या कविता पढ़ते हैं। आज पढ़ेंगे कथा सम्राट प्रेमचंद की कहानी ”दो बैलों की कथा।’

दो बैलों की कथा

एक बार एक गांव में झूरी नाम का एक किसान रहता था। उसके दो बैल थे, हीरा और मोती। दोनों ही बैल हट्टे-कट्टे व बलशाली थे। झूरी को उन दोनों से बहुत लगाव था। दोनों बैल भी झूरी को बहुत पसंद करते थे।

हीरा और मोती का आपस में इतना लगाव था कि यदि कभी एक खाना न खाए तो दूसरा भी घास को मुंह तक नहीं लगाता था। एक दिन की बात है झूरी की पत्नी का भाई ‘गया’ दोनों बैलों को अपने साथ ले गया। दोनों बैल इस बात से हैरान थे कि उन्हें गया के हवाले क्यों किया गया है।

शाम होने तक दोनों नए घर व नए लोगों के बीच में थे, लेकिन उन्हें वहां सब बेगाना लग रहा था। रात को जब सभी सो रहे थे तो दोनों रस्सी तोड़कर झूरी के यहां भाग खड़े हुए। सुबह सवेरे ही जब झूरी ने उन्हें अपने यहां देखा तो दौड़कर गले से लगा लिया।

ये सब देखकर झूरी की पत्नी बिल्कुल खुश नहीं थी। उसने दोनों को खूब खरी खोटी सुनाई और यह निश्चय किया कि दोनों को खाने में केवल सूखा भूसा ही मिलेगा। अगले दिन ‘गया’ फिर आकर दोनों बैलों को अपने साथ ले गया।

गया पिछले कल की घटना से बेहद क्रोधित था, इसलिए उसने वहां भी दोनों को खाने के लिए सूखा भूसा ही दिया। किसी तरह रात कटी और सुबह दोनों को हल जोतने के लिए खेतों में ले जाया गया। हालांकि, दोनों ने जैसे एक कदम भी न उठाने की कसम खा रखी थी। दोनों की खूब पिटाई हुई, रात को खाने में फिर भूसा मिला।

दोनों निराश खड़े थे कि तभी वहां एक छोटी सी लड़की आई और दोनों को एक-एक रोटी खिलाकर चली गयी। एक-एक रोटी से दोनों का पेट तो नहीं भरा, लेकिन उनके दिल को सुकून जरूर मिल गया था। पता चला कि उस लड़की की सगी मां के मरने के बाद वह सौतेली मां के पास रहती थी। उसकी सौतेली मां उसे मारती रहती थी। शायद यही वजह थी कि उसे बैलों के लिए अपनापन था।

दोनों उस छोटी लड़की के बारे में सोचकर चुपचाप अपना समय बिताने लगे। एक रात दोनों ने सलाह करी कि वे दोनों गले में बंधी रस्सी को चबा-चबा कर तोड़ देंगे और वहां से भाग जाएंगे।

उसी रात जब वे रस्सी को तोड़ने की कोशिश कर रहे थे तो वही छोटी लड़की वहां आयी और उसने दोनों को रस्सी से आजाद कर दिया। दोनों ने छोटी लड़की से विदा ली और दौड़ने लगे। इतने में गया को इसकी खबर लगी और वह अपने आदमियों के साथ उन दोनों के पीछे दौड़ पड़ा।

हीरा और मोती इतना तेज भागे कि उन्हें अपने घर का रास्ता भी याद न रहा। वे रास्ता भटक गए थे। दोनों को भागते-भागते भूख भी लग पड़ी थी। रास्ते में मटर का एक खेत था, दोनों ने वहां जाकर जमकर मटर खाएं।

अभी दोनों खेत में चर ही रहे थे कि वहां एक सांड आ धमका। दोनों ने हिम्मत दिखाकर उसे वहां से खदेड़ दिया। इतने में मटर के खेत के सेवक हाथों में डंडा लिए आ पहुंचे। हीरा के पास भागने का मौका था, लेकिन जब उसने देखा की सेवकों ने मोती को पकड़ लिया है तो वह लौट गया।

दोनों बैलों को पकड़कर मवेशीखाने में बंद कर दिया गया।

उस मवेशीखाने में बहुत से जानवर कैद थे। वहां कई बकरियां, घोड़े, भैंसे, गधे बंधे थे, लेकिन किसी को भी खाने को कुछ नहीं दिया जाता था। इस वजह से सभी जानवर कमजोरी के कारण जमीन पर बेजान पड़े हुए थे।

जब पूरा दिन बीत जाने पर भी खाने को कुछ न मिला तो हीरा के सब्र का बांध टूट गया। उसने बाड़े की कच्ची दीवार पर जोर से अपने सींग गड़ा दिए। इससे मिट्टी का एक टुकड़ा निकल आया। यह देखकर हीरा को हिम्मत मिली और वह दौड़-दौड़कर अपने सींगों से दीवार की मिट्टी गिराने लगा।

तभी मवेशीखाने का चौकीदार हाथ में लालटेन लिए जानवरों की हाजिरी लगाने आ पहुंचा। हीरा की करतूत देखकर उसने उसकी डंडे से पिटाई शुरू कर दी और उसे मोटी रस्सी से बांध कर वहां से चला गया।

हीरा ने मोती से कहा, “आज अगर यह दीवार गिर जाती तो यहां बंधे हुए कितने ही जानवर आजाद हो पाते। यदि ये थोड़े दिन और यहां रुके तो कमजोरी से इनका मरना निश्चित है।“
यह सुनकर मोती बोला, “अगर ऐसी बात है तो मैं भी जोर लगाता हूं।“

तभी मवेशीखाने का चौकीदार हाथ में लालटेन लिए जानवरों की हाजिरी लगाने आ पहुंचा। हीरा की करतूत देखकर उसने उसकी डंडे से पिटाई शुरू कर दी और उसे मोटी रस्सी से बांध कर वहां से चला गया।

हीरा ने मोती से कहा, “आज अगर यह दीवार गिर जाती तो यहां बंधे हुए कितने ही जानवर आजाद हो पाते। यदि ये थोड़े दिन और यहां रुके तो कमजोरी से इनका मरना निश्चित है।“
यह सुनकर मोती बोला, “अगर ऐसी बात है तो मैं भी जोर लगाता हूं।“

अब जब सुबह होने वाली थी तो हीरा ने मोती से कहा, “दोस्त, मुझे नहीं लगता कि आज यह रस्सी टूटेगी। तुम यहां से भाग जाओ, वरना सबको पता चल जाएगा कि यह सब तुमने ही किया है। मुझे यहीं छोड़ कर तुम चले जाओ।“

यह सुनकर मोती की आंखों में आंसू आ गए। वह हीरा से बोला, “मित्र! मैं इतना स्वार्थी नहीं हूं कि मुश्किल के इस समय में तुम्हें छोड़कर चला जाऊं। मैं मरते दम तक तुम्हारे साथ ही रहूंगा। मुझे हर अपराध की सजा स्वीकार है। कम से कम इन जानवरों की जान बचाने का आशीर्वाद तो मिलेगा।“

इतना कहकर मोती ने गधों को सींग मारकर बाड़े से भगा दिया और स्वयं हीरा के पास आकर सो गया।

सुबह होते ही चौकीदार, मुंशी व अन्य सेवकों को जब इसकी भनक लगी तो मोती की खूब मरम्मत हुई और उसे भी मोटी रस्सी से बांध दिया गया।

लगभग एक हफ्ते तक दोनों वहीं बंधे रहे, लेकिन उन्हें खाने को कुछ नसीब नहीं हुआ। उन्हें केवल पानी ही पिलाया जाता। दोनों की हड्डियां निकल आई थीं। एक दिन बाड़े के सामने उनकी नीलामी शुरू हुई, लेकिन वो दोनों इतने कमजोर थे कि उन्हें खरीदने के लिए कोई तैयार नहीं था।

तभी एक आदमी सामने आया और दोनों बैलों को टटोलने लगा। मुंशी से कुछ मोल भाव करने के बाद वह उन दोनों को लेकर चल पड़ा। दोनों बैलों की नीलामी हो चुकी थी। हीरा और मोती दोनों डरे हुए थे, उनसे चला भी नहीं जा रहा था, लेकिन डंडे के डर से बेचारे उस आदमी के साथ साथ चलने लगे।

सहसा दोनों को महसूस हुआ कि यह वही रास्ता है जहां से गया उन्हें ले गया था। वही खेत, वही रास्ता और वही कुआं तो है जहां पर वे हल जोतने आया करते थे। अब उनकी सारी थकान दूर होने लगी और वह दोनों तेज-तेज चलने लगे।

जैसे ही उन्हें अपना घर और अपने बांधे जाने के जगह दिखाई दी दोनों भागकर उस ओर चल दिए। द्वार पर झूरी बैठा हुआ था। जैसे ही उसने दोनों बैलों को देखा उसने उन्हें गले लगा लिया। दोनों बैलों की आंखों में आंसू आ गए।

तभी वह आदमी वहां बैलों के पीछे-पीछे पहुंच गया और उसने दोनों बैलों की रस्सियां पकड़ ली।

झूरी बोला, “ये मेरे बैल हैं।“

आदमी ने कहा, “मैंने इन्हें मवेशीखाने की नीलामी से खरीदा है।“

झूरी तपाक से बोला, “मेरे बैलों को बेचने का हक किसी को नहीं है। अगर मैं इन्हें बेचूंगा, तभी ये बिकेंगे।“

आदमी ने जवाब दिया, “मैं थाने में जाकर रपट दर्ज करवाता हूं।“

झूरी बोला, “ये मेरे बैल हैं, इसका सबसे बड़ा सबूत यह है कि यह मेरे द्वार में खड़े हैं।“

फिर उस आदमी ने आव देखा न ताव और बैलों को अपनी ओर खींचने लगा। तब दोनों बैलों ने भी उसे अपने सींगों से खदेड़ दिया और गांव से दूर भगा दिया।

इतनी देर में दोनों बैलों के लिए भूसा, दाना और चारा भर दिया गया। हीरा और मोती दोनों मिलकर चारा खाने लगे। झूरी साथ में खड़ा उन्हें सहला रहा था। तभी झूरी की पत्नी भी अंदर से आई और उसने दोनों बैलों के माथे चूम लिए और खूब प्यार दिया।

 


About Author
श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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