Placebo Effect : आपने कई बार सुना होगा कि किसी डॉक्टर से सिर्फ मिलने या बात करने के बाद बिना दवा लिए ही मरीज़ को बेहतर महसूस होने लगता है..या फिर किसी व्यक्ति की बातें ही उपचार का काम कर जाती है। कई बार ये भी होता है कि किसी विशेष धार्मिक स्थल का प्रसाद खाने, कोई अन्य साधारण वस्तु खाने के बाद भी तबियत में सुधार महसूस होता है। लेकिन ऐसा क्यों होता है ? बिना कोई दवा या उपचार लिए किसी व्यक्ति को बेहतर कैसे महसूस हो सकता है। इसके पीछे एक गहरा मनोविज्ञान काम करता है जिसे प्लेसीबो प्रभाव कहा जाता है। प्लेसीबो प्रभाव एक रोचक मनोवैज्ञानिक घटना है, जहां व्यक्ति एक प्लेसीबो या ‘डमी’ उपचार लेने के बाद अपनी स्थिति में सुधार महसूस करता है भले ही इस उपचार का कोई वास्तविक चिकित्सा लाभ न हो।
प्लेसीबो प्रभाव एक ऐसी घटना है जिसमें लोग बिना किसी वास्तविक उपचार के, सिर्फ अपने विश्वास के आधार पर ठीक होने का अनुभव करते हैं। यह प्रभाव तब होता है जब व्यक्ति को कोई ऐसा उपचार दिया जाता है, जिसमें कोई चिकित्सीय तत्व नहीं होता लेकिन उसका अटूट विश्वास और अपेक्षाएं इसे प्रभावी बना देती हैं। इसे लेकर कई तरह के अध्ययन हो चुके हैं और अब भी रिसर्च की जा रही है। ये विषय मनोविज्ञान और चिकित्सा के बीच की सीमा को दर्शाता है और ये भी बताता है कि हमारी मानसिकता और सोच कैसे हमारे शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकती है।
क्या है Placebo Effect
‘प्लेसीबो’ शब्द लैटिन के ‘मैं प्रसन्न करूंगा’ से निकला है। प्लेसीबो प्रभाव को आप सामान्य उदाहरण के रूप में इस तरह देख सकते हैं कि कोई व्यक्ति पूरे विश्वास के साथ कुछ खाए और उसे अपनी बीमारी में राहत महसूस हो। ये प्रभाव किसी भी रूप में हो सकता है, जैसे कि अगर कोई पूरे विश्वास के साथ चीनी की गोली खा लें या फिर पानी, नमक के पानी का इंजेक्शन या यहां तक कि एक नकली शल्य प्रक्रिया भी लें तो उसका सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है। इसे लेकर कई अध्ययन बताते हैं जो बताते है कि प्लेसीबो प्रभाव केवल विश्वास या अपेक्षा से संबंधित नहीं है बल्कि यह मस्तिष्क के कार्यों और शरीर की प्रतिक्रियाओं पर भी प्रभाव डालता है। इस प्रभाव को लेकर कई तरह की रिसर्च जारी है जिसके माध्यम से व्यक्तियों की मानसिक स्थिति और उनके स्वास्थ्य के बीच की जटिलता को समझा जा रहा है। चिकित्सा अनुसंधान में इस प्रभाव का उपयोग अक्सर दवा परीक्षणों में किया जाता है, ताकि यह समझा जा सके कि वास्तविक उपचार का प्रभाव क्या है।
प्लेसीबो प्रभाव – एक गहरा मनोविज्ञान
प्लेसीबो प्रभाव में मस्तिष्क विभिन्न न्यूरोट्रांसमीटरों, जैसे डोपामाइन और ऑक्सीटोसिन का उत्पादन करता है जो दर्द और अन्य बीमारियों के लक्षणों को कम करने में मदद कर सकता है। एक हालिया अध्ययन में पाया गया कि प्लेसीबो उपचार प्राप्त करने वाले लोगों के मस्तिष्क में दर्द की पहचान करने वाले क्षेत्रों में गतिविधि कम हो गई थी, जिससे वे सचमुच कम दर्द महसूस कर रहे थे।
इस प्रभाव का इस्तेमाल कई चिकित्सा परीक्षणों में किया जाता है, जहां शोधकर्ता दो समूहों की तुलना करते हैं। एक को वास्तविक उपचार और दूसरे को प्लेसीबो दिया जाता है। इस प्रकार, यह निर्धारित किया जा सकता है कि वास्तविक उपचार का क्या प्रभाव है, जबकि प्लेसीबो का परिणाम केवल व्यक्ति की मानसिकता पर निर्भर करता है। प्लेसीबो प्रभाव का उपयोग कई स्वास्थ्य स्थितियों में किया जा रहा है जैसे कि दर्द प्रबंधन, अवसाद और चिंता के विकार। शोधकर्ताओं का मानना है कि जब मरीज प्लेसीबो के सकारात्मक प्रभावों की अपेक्षा करते हैं तो यह उनके स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। प्लेसीबो प्रभाव हमारे स्वास्थ्य को प्रभावित करने के लिए मानसिकता और विश्वास के शक्ति को दर्शाता है।
(डिस्क्लेमर : ये लेख विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारियों पर आधारित है। हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।)