भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। आपने भी देखा होगा नवजात शिशु सोते हुए अक्सर मुस्कुराते हैं। उनके अबोध चेहरे पर ये मुस्कान बहुत प्यारी लगती है। इसे लेकर अक्सर हमारे यहां कई तरह की बातें कही जाती है। कोई कहता है कि बच्चे अपने पूर्वजन्म की स्मृति में मुस्कुराते हैं, कोई कहता है वो ईश्वर को देखते हैं और उनसे संवाद करते हैं तो कहीं ये कहा जाता है कि वो सपने देखते हैं। लेकिन आखिर इसके पीछे वैज्ञानिक कारण क्या है।
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पहले ये माना जाता था कि 4 माह की उम्र के बाद ही शिशु मुस्कुरा सकता है। लेकिन जापान की क्योटो यूनिवर्सिटी के रिसर्च इंस्टिट्यूट और सैकर्ड हार्ट यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने 4 दिन से लेकर 87 दिन तक के बच्चों पर एक शोध किया। इसमें पाया गया कि 17 दिन का बच्चा भी मुस्कुरा सकता है। इसे लेकर वैज्ञानिकों का कहना है कि इस समय बच्चों में मानसिक और भावनात्मक विकास काफी तेजी से होता है। इसी कारण सोते हुए वे मुस्कुराते हैं। ये मुस्कुराहट ही हंसी की शुरुआत है। धीरे धीरे उनकी ये मुस्कान खिलखिलाती हुई हंसी में बदल जाती है।
वैज्ञानिकों का कहना है कि नवजात शिशु किसी बाहरी प्रभाव स्टिमुलेशन के कारण नहीं मुस्कुराते हैं। इसके पीछे उनके मस्तिष्क में होने वाले मूवमेंट हैं। रैपिड आई मूवमेंट (आरईएम) की वजह से वो सपने देखते हैं और अपने सपने की प्रतिक्रिया में मुस्कुराते हैं। ये भी माना गया कि जागते समय बच्चे अलग अलग तरह की कई आवाजें सुनते हैं और नई चीजों को देखते हैं। ये उनके लिए एकदम नया अनुभव है। बच्चे का विकासशील दिमाग इन अनुभवों को दिमाग में रिकॉर्ड कर लेता है और जब वो सोता है तो ये थॉट प्रोसेस करने लगता है। बच्चा नींद में सुखद भावनाएं महसूस करता है तो मुस्कुराने लगता है। इस तरह देखा जाए तो सोते समय मुस्कुराना इमोशंस डेवेलप होने की प्रक्रिया का एक हिस्सा है।