इतिहास कभी-कभी लोगों को हैरान कर देता है। जब लोगों के सामने छिपे हुए रहस्यों के दरवाज़े खुलते हैं, तो उन पर यक़ीन कर पाना बेहद मुश्किल होता है। ऐसा ही एक किस्सा जर्मनी के बावरिया राज्य से सामने आया था, जब 2023 में सरकारी दस्तावेज़ों के डिजिटलीकरण की प्रक्रिया चल रही थी। इस प्रक्रिया के दौरान लगभग 75 साल पुराना एक पत्र मिला था। पत्र 1950 का था। इस पत्र में एक जूते के डब्बे का ज़िक्र किया गया था। इस पत्र में लिखे गए डब्बे में पीले रंग के चमकदार टुकड़े रखे हुए थे, लेकिन ये टुकड़े आम नहीं थे। इन टुकड़ों ने वैज्ञानिकों को भी हैरान कर दिया था।
दरअसल, इस चिट्ठी ने वैज्ञानिकों को “हम्बॉलटाइन” नामक एक बेहद दुर्लभ खनिज तक पहुँचा दिया था। यह खनिज इतना दुर्लभ है कि यह दुनिया में सिर्फ़ 30 जगहों पर ही पाया जाता है। अब आप समझ सकते हैं कि इस डब्बे की अहमियत क्यों इतनी ज़्यादा हो गई।
जानिए क्या है हम्बॉलटाइन?
दरअसल, डब्बे में मिला हम्बॉलटाइन एक ऑर्गेनिक मिनरल है। इस खनिज में कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन जैसे तत्व धातु के साथ क्रिस्टल संरचना में बंधे होते हैं। अगर इस खनिज की रासायनिक संरचना देखें तो इसमें आयरन और ऑक्सलेट का मेल दिखाई देता है, जिसके चलते यह एक पीले रंग का, नरम रेज़िन जैसे चमक वाला खनिज बन जाता है। यह खनिज बेहद दुर्लभ स्थितियों में बनता है। दरअसल, जब आयरन युक्त चट्टान नम स्थितियों में एसिटिक वातावरण से संपर्क करती है, तो यह खनिज बनता है। इसलिए इसे चमत्कारिक खनिज भी कहा जाता है।
क्यों है वैज्ञानिक इतने हैरान?
दरअसल बावरिया स्टेट ऑफिस फॉर द एनवायरमेंट के वैज्ञानिकों ने इसकी खोज की। इस खोज में उन्होंने पाया कि एक डिब्बे में पीले रंग के टुकड़ों में कुछ रखा हुआ है। जब इनकी जाँच की गई, तो वैज्ञानिकों ने पाया कि यह हम्बॉलटाइन ही है। इस ख़त और इस डब्बे ने एक ही झटके में जर्मनी के दुर्लभ खनिजों के भंडार को कई गुना बढ़ा दिया। जो हम्बॉलटाइन के टुकड़े मिले, वे हेज़लनट जितने बड़े थे। हालाँकि अब तक यह रहस्य नहीं सुलझ पाया है कि यह खनिज भरे कोयले की परतों से कैसे बना। ये टुकड़े भूगोल नहीं, बल्कि तकनीक की दुनिया को भी अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं। इनकी इलेक्ट्रॉन शटलिंग क्षमता इतनी ज़्यादा होती है कि ये भविष्य के लिए ग्रीन टेक्नोलॉजी, हाई कैपेसिटी लिथियम आयन बैटरी कैथोड के लिए सबसे उपयुक्त बन सकते हैं।





