दुनिया में किसी भी देश की चर्चा होते ही दिमाग में बड़ी-बड़ी और ऊंची इमारतें, भीड़भाड़ और रोशनी से भरे रास्ते, एक से बढ़कर एक मार्केट, एमएनसीज कम्पनी आने लगती है। बता दें कि अमूमन देश छोटे-बड़े शहरों की जनसंख्या और क्षेत्रफल के हिसाब से यह तय किया जाता है कि वह कितना बड़ा है। विश्व का हर एक देश किसी-न-किसी खासियत के लिए प्रसिद्ध है। इनमें भारत भी शामिल है, जिसके कुछ शहर अनोखे हैं, जहां सालों भर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है। इससे देश की अर्थव्यवस्था को भी मजबूती मिलती है।
इससे पहले हम आपको दुनिया के सबसे बड़े शहर से रूबरू करवा चुके हैं, आज हम आपको दुनिया का सबसे छोटा देश के बारे में बताने जा रहे हैं, समुद्र के बीच सिर्फ दो खंभों पर खड़ा है। तकनीक, सफाई, ट्रांसपोर्ट और अनुशासन के मामले में भी यह काफी आगे है।

सीलैंड
दुनिया का सबसे छोटा देश माइक्रोनेशन है, जो कि एक सीलैंड है। ब्रिटेन के उत्तरी सागर में तट से 12 किलोमीटर दूर दो खंबों पर बना इस देश का आकार दो टेनिस कोर्ट जितना है। हालांकि, आधिकारिक तौर पर वेटिकन सिटी को सबसे छोटा देश माना जाता है, लेकिन सीलैंड का दावा है कि वह दुनिया का सबसे छोटा देश है।
इतिहास
साल 1942 में ब्रिटिश ने सीलैंड का निर्माण किया था, ताकि युद्ध के दौरान उनके सैनिक वहां छूप सके। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद इस टावर को सेनाओं द्वारा खाली छोड़ दिया गया। इसके बाद 1967 में मेजर राय बेट्स ने इस टावर को खरीद लिया, जहां वह अपना रेडियो स्टेशन चलाना चाहते थे, लेकिन ब्रिटेन में यह अवैध था। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय जलीय क्षेत्र में होने के कारण उन्होंने इसे स्वतंत्र देश घोषित कर दिया।
लेनी पड़ी है खास परमिट
सीलैंड को आधिकारिक तौर पर देश की मान्यता प्राप्त नहीं है। इसके बावजूद, यहां खुद की सरकार, खुद का झंडा, पासपोर्ट और खुद की मुद्रा है, जो किसी जगह को देश कहलाने के लिए काफी होता है। इसकी हकीकत और इतिहास बेहद हैरान करने वाला है। यहां पहुंचने के लिए लोगों को खास परमिट लेनी होती है। साथ ही नाव से 12 किलोमीटर का सफर तय करना पड़ता है। वहां आपको रस्सी के झूले से 60 फीट ऊंपर चढ़ना पड़ता है। यहां पहुंचने पर आपके पासपोर्ट पर सीलैंड की मोहर लगा दी जाती है।
खासियत
सीलैंड का यह टावर बहुत ही छोटा है, लेकिन इसमें लिविंग रूम, किचन, जिम और टॉयलेट है। यहां एक छोटी सी जेल भी है। इस खोखले खंबे में सात मंजिली बनी हुई है। यहां बिजली सप्लाई सोलर पैनल और विंड टरबाइन से होती है। समुद्र के बीच में होने के कारण यहां लोगों को बहुत ही ज्यादा समस्याओं का सामना करना पड़ता है। हालांकि, लोग बारिश के पानी को इकट्ठा कर लेते हैं और उसे पीने और दूसरी जरूरत के लिए इस्तेमाल किया जाता है।