क्या आपको याद हैं बचपन के वो दिन जब परीक्षाएं सिर पर होती थी और पढ़ते समय आप नींद के झूले झूलने लगते थे। जबकि सामान्य दिनों में मम्मी के बार-बार सोने के लिए कहने के बावजूद नींद नहीं आती थी। ऐसे ही कोई बड़ा प्रोजेक्ट हाथ में हो कोई पारिवारिक उलझन..अकसर देखा गया है कि लोग अचानक उनींदे हो जाते हैं। लेकिन ऐसा क्यों होता है। तनाव या अनिवार्य कार्यों के समय तो दिमाग की सतर्कता बढ़ जानी चाहिए..फिर आँखें भारी क्यों होने लगती हैं। तनाव और नींद के बीच आखिर क्या रिश्ता है।
इसे लेकर न्यूरो-इम्यूनोलॉजी और स्लीप-साइंस के शोध बताते हैं कि यह कोई आलस नहीं, बल्कि शरीर का ‘सेफ्टी स्विच’ है जो दिमाग और शरीर को ओवरलोड से बचाता है। तनाव एक ऐसा बायोलॉजिकल अलार्म है जो शरीर को हाई अलर्ट पर ला देता है। लेकिन यह अलर्ट सिस्टम लंबे समय तक नहीं टिक सकता। जब दिमाग महसूस करता है कि ज़रूरत से ज़्यादा लोड आ रहा है, तो वो खुद को ‘सेफ मोड’ में डालने लगता है..यानी कि नींद।

तनाव और नींद: एक अनोखा रिश्ता
क्या आपने कभी गौर किया है कि जब तनाव के बादल आपके सिर पर मंडराते हैं तो अचानक आँखें भारी होने लगती हैं और नींद की लहरें आपको अपनी आगोश में लेने लगती हैं। यह कोई संयोग नहीं..बल्कि आपके शरीर और मस्तिष्क का एक गहरा और जटिल रक्षा तंत्र है। तनाव और नींद का यह रिश्ता विज्ञान की नजर में भी उतना ही रोचक है, जितना यह आपके रोजमर्रा के अनुभव में लगता है। आइए, इस रहस्य को खोलते हैं और समझते हैं कि तनाव के बीच नींद क्यों आती है।
तनाव: शरीर का अलार्म सिस्टम
जब आप तनाव में होते हैं तो आपका दिमाग एक अलार्म सिस्टम की तरह काम करता है। कोर्टिसोल और एड्रेनालिन जैसे तनाव हार्मोन्स आपके शरीर को “लड़ो या भागो” मोड में ले जाते हैं। यह हार्मोन्स आपको तुरंत ऊर्जा देते हैं, दिल की धड़कन बढ़ाते हैं और मस्तिष्क को सतर्क रखते हैं। लेकिन अगर तनाव लंबे समय तक बना रहे तो ये ऊर्जा धीरे-धीरे खत्म होने लगती है। HAPDAY (2024) के शोध के अनुसार..लंबे समय तक तनाव मस्तिष्क और शरीर को थका देता है जिससे थकान और नींद की इच्छा बढ़ जाती है। यह आपके मस्तिष्क का तरीका है यह कहने का कि अब एक ब्रेक की जरूरत है। हालांकि नींद की ये प्रतिक्रिया अलग अलग लोगों में अलग तरह से हो सकती है। ये भी देखा गया है कि अत्यधिक तनाव में कई लोग अनिद्रा की समस्या से भी जूझते हैं।
नींद: ब्रेन का रिकवरी बटन
ऐसे समय में नींद मस्तिष्क का रिकवरी मोड होता है। तनाव के दौरान नींद आना शरीर का एक प्राकृतिक रक्षा तंत्र है जो आपको भावनात्मक और मानसिक उथल-पुथल से बचाने की कोशिश करता है। स्लीप हेल्थ जर्नल (2019) के एक अध्ययन में पाया गया कि सिर्फ 16 मिनट की नींद की कमी भी तनाव से निपटने की क्षमता को कम कर सकती है। जब आप तनावग्रस्त होते हैं, तो मस्तिष्क नींद के माध्यम से कोर्टिसोल जैसे हार्मोन्स को संतुलित करने और भावनाओं को नियंत्रित करने की कोशिश करता है। यह एक तरह से मस्तिष्क का “रीसेट” बटन दबाने जैसा है।
न्यूरोकेमिकल खेल: क्यों आती है नींद
तनाव के दौरान मस्तिष्क में कई रासायनिक बदलाव होते हैं जो नींद को प्रेरित करते हैं। तनाव कभी-कभी मेलाटोनिन (नींद का हार्मोन) के उत्पादन को प्रभावित करता है। कुछ लोगों में तनाव के कारण मेलाटोनिन का स्तर बढ़ सकता है, जिससे नींद की लहरें आने लगती हैं। साइंस डेली के अनुसार, लंबे समय तक तनाव डोपामाइन के स्तर को कम करता है जो आपको सुस्त और थका हुआ महसूस कराता है। यह थकान नींद को बुलावा देती है। वहीं अमिग्डाला जो भावनाओं को नियंत्रित करता है, तनाव में हाइपरएक्टिव हो जाता है। नींद इस सक्रियता को शांत करने का एक तरीका है।
मनोवैज्ञानिक कारण: तनाव से भागने का रास्ता
कभी-कभी नींद तनाव से बचने का एक मनोवैज्ञानिक तरीका भी बन जाती है। आर्ट ऑफ लिविंग के अनुसार, जब तनावग्रस्त दिमाग समस्याओं से जूझ रहा होता है तो नींद एक अस्थायी पलायन का रास्ता देती है। यह उन लोगों में खासतौर पर देखा जाता है, जो ज्यादा इमोशनल होते हैं। नींद कई बार तनावपूर्ण विचारों को शांत करने में मदद करती है। लेकिन ये याद रखना जरूरी है कि शरीर और दिमाग की ये प्रतिक्रिया हर व्यक्ति में अलग तरह से होती है। जहां कई बार कई लोगों को नींद आने लगती है, वहीं कई लोगों की नींद भाग भी जाती है।
(डिस्क्लेमर: ये लेख विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारियों पर आधारित है। हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।)