आजकल युवा पीढ़ी के बीच टैटू बनवाना एक आम चलन बन गया है। लोग शरीर पर अपनी पसंद, भावनाओं या पहचान को दर्शाने के लिए अलग-अलग डिज़ाइन्स गुदवाते हैं। लेकिन जब ये टैटू देवी-देवताओं के रूप में बनाए जाते हैं, तो यह केवल एक स्टाइल स्टेटमेंट नहीं रहता, बल्कि श्रद्धा और आस्था का सवाल बन जाता है।
हाल ही में प्रसिद्ध कथावाचक प्रेमानंद जी महाराज ने इस मुद्दे पर नाराज़गी जताते हुए कहा कि भगवान की मूर्ति या नाम को फैशन की तरह शरीर पर गुदवाना सही नहीं है। उनका मानना है कि धार्मिक चिन्हों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाना चाहिए, न कि उन्हें कपड़ों से ढका जाए या गलत जगह पर गुदवाया जाए।

देवी-देवताओं के टैटू बनवाने को क्यों बताया गलत?
प्रेमानंद जी महाराज ने हाल ही में दिए एक प्रवचन में कहा कि कई लोग शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर भगवान श्रीराम, शिव, हनुमान या अन्य देवी-देवताओं के टैटू बनवा लेते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि उस अंग के साथ बाद में क्या होगा? उन्होंने उदाहरण देते हुए कहा कि जब शरीर की मृत्यु होती है और उसे जलाया या दफनाया जाता है, तब इन चित्रों के साथ भी वैसा ही होता है। यह श्रद्धा का अपमान माना जा सकता है।
महाराज जी का मानना है कि देवी-देवताओं को सिर्फ दिल और पूजा में स्थान देना चाहिए, न कि शरीर के हिस्सों पर सजावट के तौर पर। उनका यह भी कहना है कि कई बार लोग इन टैटू को बिना सोच-समझ के बनवा लेते हैं और फिर बाद में पछताते हैं।
क्या कहती है धार्मिक आस्था और सामाजिक सोच?
भारत में देवी-देवताओं का विशेष स्थान है और उनके प्रति भावनाएं गहराई से जुड़ी होती हैं। ऐसे में टैटू बनवाना, भले ही व्यक्ति की अपनी श्रद्धा का प्रतीक हो, कई बार समाज में विवाद की वजह बन सकता है।
कुछ धार्मिक संगठनों और आचार्यों का मानना है कि भगवान के चित्रों को शरीर पर बनवाना उनके सम्मान के खिलाफ है। वहीं कुछ लोग इसे अपनी आस्था का इज़हार मानते हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या श्रद्धा का इज़हार इस तरह से किया जाना चाहिए, जो बाद में किसी भी रूप में अपमानजनक हो सकता है?
आज के युवाओं को चाहिए कि वे ट्रेंड और फैशन के साथ-साथ धार्मिक भावनाओं और मान्यताओं का भी सम्मान करें। टैटू बनवाने से पहले यह सोचना ज़रूरी है कि कहीं वह श्रद्धा का अपमान तो नहीं कर रहा।