लौट आया गुज़रा ज़माना: खानपान, हाइजीन, स्वास्थ्य, फैशन और लाइफस्टाइल में फिर से जगह बनाते पुराने ट्रेंड्स

समय चक्र घूमता है और अतीत की परछाइयां नए रंग-रूप में संवरकर फिर से हमारे जीवन में दस्तक दे देती हैं। स्वास्थ्य के पारंपरिक नुस्खों से लेकर देसी खानपान तक, फैशन की रेट्रो झलक से लेकर सौंदर्य के सदियों पुराने राज़ तक..बीते दौर की परंपराएं आज के आधुनिक समाज में नए अंदाज़ में लौट रही हैं। क्या आपने गौर किया कि कब हमारी थाली में ज्वार और बाजरे की रोटी फिर से आ गई..हम शक्कर से गुड़ पर लौट आए या फिर घरेलू नुस्खों पर दुबारा भरोसा करने लगे। यही बात हमें हमारी परंपरा की विशेषताएं भी बताती हैं।

Shruty Kushwaha
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The Bygone Era Returns : कहते हैं बीता हुए वक्त कभी लौटकर नहीं आता। लेकिन हम कहते हैं कि लौटकर आता है और हम खुद इस बात के साक्षी हैं। ये वक्त बीते समय के भोजन, फैशन, सेहत और लाइफस्टाइल के रूप में लौट आता है..जिसे पिछले कुछ समय में हम सबने देखा है। आज के आधुनिक जमाने में फिर पुराने समय की चीज़ें ट्रेंड में आ रही हैं। इस तरह बीता हुआ समय एक बार फिर से हमारे सामने है।

इन दिनों हम देख रहे हैं कि कैसे लोगों का रूझान स्वास्थ्य और अच्छे जीवन के लिए पुरानी चिकित्सा पद्धति और जीवनशैली को अपनाने की तरफ़ बढ़ रहा है। खाने-पीने की बात करें तो जिसे पहले मोटा अनाज कहा जाता था, वही मिलेट्स अब सबसे ज्यादा पोषक बताए जा रहे हैं और लोगों के किचन में फिर उनकी जगह बन गई है। और फैशन की बात करें तो पुराने फैशन ट्रेंड्स कुछ सालों में फिर रिपीट होने लगते हैं। इस तरह हम एक बार फिर बीते हुए समय को जीने लगते हैं।

पुराने समय का यूँ लौट आना..

समय एक चक्र की तरह चलता है और कई बार लगता है कि चक्कर काटकर कहीं हम पुराने समय में तो नहीं पहुँच गए हैं। खासकर तब, जब कईं पुराने चलन नए रंग-रूप में लौटकर आधुनिक दुनिया में जगह बना रहे हैं। चाहे वह स्वास्थ्य से जुड़े नुस्खे हों, पारंपरिक खान-पान हो या फिर फैशन और सौंदर्य के उत्पाद..समय के साथ पुरानी परंपराएं और जीवनशैली फिर से आधुनिक समाज में अपनी जगह बना रही हैं।

सौंदर्य और हाइजीन में पारंपरिक नुस्खों की वापसी

हम देख रहे हैं कि कभी दादी-नानी के घरेलू नुस्खे कहे जाने वाले उपाय अब आधुनिक कॉस्मेटिक्स इंडस्ट्री का हिस्सा बन चुके हैं। उदाहरण के लिए, पहले कोयले से दाँत साफ करने की परंपरा थी, जिसे अब आधुनिक टूथपेस्ट ब्रांड चारकोल युक्त उत्पादों के रूप में दोबारा पेश कर रहे हैं। इसके अलावा उबटन, हल्दी, मुल्तानी मिट्टी और गुलाबजल जैसे पारंपरिक सौंदर्य प्रसाधन अब स्किनकेयर ब्रांड्स में खास जगह पा रहे हैं।

मिलेट्स और देसी खानपान की लोकप्रियता

पुराने समय था जब गेहूँ और चावल के मुकाबले बाजरा, ज्वार, रागी, कोदो जैसे अनाज ज्यादा इस्तेमाल होते थे। फिर समय से साथ हमारी रसोई से ये मोटा अनाज कम होने लगा। लेकिन पिछले कुछ समय में मिलेट्स की पौष्टिकता को लेकर जागरूकता बढ़ी है और अब इन्हें सुपरफूड के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। यहां तक कि सरकार भी मिलेट्स को बढ़ावा देने के लिए कदम उठा रही है। इसके अलावा देसी घी, मक्खन और सरसों के तेल जैसे पारंपरिक खाद्य पदार्थ फिर से हेल्दी विकल्प के रूप में लोकप्रिय हो रहे हैं।

फैशन में रेट्रो स्टाइल का ट्रेंड में आना

फैशन की दुनिया में पुराने दौर के स्टाइल्स लौटना कोई नई बात नहीं है। आजकल 70s और 90s के स्टाइल्स फिर से ट्रेंड कर रहे हैं। बेल-बॉटम जींस, पोल्का डॉट्स, हैंडब्लॉक प्रिंट्स और ट्रेडिशनल टेक्सटाइल्स फिर से चलन में आ चुके हैं। इसके अलावा हाथ से बुने हुए खादी और लिनेन के कपड़े भी अब युवा पीढ़ी के बीच ट्रेंड कर रहे हैं। युवा पीढ़ी अब फास्ट फैशन से हटकर टिकाऊ (sustainable) फैशन की ओर बढ़ रही है, और इसी कारण हैंडलूम, प्राकृतिक रंगों और हैंडमेड कपड़ों की मांग में बढ़ोत्तरी हो रही है।

पारंपरिक चिकित्सा और जीवनशैली

आयुर्वेद और योग जो कभी सिर्फ भारत तक सीमित थे..अब पूरी दुनिया में हेल्थ और वेलनेस का अहम हिस्सा बन चुके हैं। पंचकर्म, त्रिफला, अश्वगंधा और हल्दी-दूध जैसे आयुर्वेदिक उपचार फिर से चर्चा में हैं। इसी के साथ, तांबे के बर्तनों में पानी पीना, मिट्टी के बर्तनों में खाना पकाना और पीतल-कांसे के थालियों में भोजन करना भी लोकप्रिय होता जा रहा है।

पर्यावरण के अनुकूल लाइफस्टाइल 

आज सारी दुनिया पर्यावरण संरक्षण को लेकर चिंता जता रही है। जलवायु परिवर्तन, प्लास्टिक प्रदूषण और संसाधनों के बहुत ज्यादा दोहन ने हमें मजबूर कर दिया है कि हम अपनी जीवनशैली में बदलाव लाएं। प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग के कारण पर्यावरण को हुए नुकसान को देखते हुए पुराने जमाने की चीज़ें फिर से अपनाई जा रही हैं जैसे कि स्टील और तांबे की बोतलें, कपड़े के थैले, बांस के टूथब्रश और लकड़ी की कंघी अब ट्रेंड में हैं। लोग अब सिर्फ पर्यावरण संरक्षण के लिए ही नहीं, बल्कि अच्छी सेहत और मानसिक सुकून के लिए भी पुरानी जीवनशैली को फिर से अपनाने लगे हैं।


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Shruty Kushwaha

Shruty Kushwaha

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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