दिवाली पर क्यों बनाई जाती है रंगोली, मोहन जोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता में मिले हैं रंगोली के चिन्ह, जानिए ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व

दिवाली का रंगोली से गहरा संबंध है। भारतीय संस्कृति में हर शुभ अवसर पर रंगोली बनाने की परंपरा है। ये सिर्फ सजावट का माध्यम नहीं है बल्कि शुभता, समृद्धि और सकारात्मक ऊर्जा का भी प्रतीक है। रंगोली की खूबसूरती हमें सिखाती है कि जीवन के हर रंग का महत्व है और हर रंग सुंदर है। यह न सिर्फ त्योहारों का सौंदर्य बढ़ाती है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर को भी संजोती है। 

Rangoli in Diwali Celebration

The Significance of Rangoli in Diwali Celebration : दिवाली पर रोशनी, आतिशबाजी और खानपान के साथ एक और ख़ास चीज का महत्व है..जो है रंगोली। रंगोली से देवी लक्ष्मी का स्वागत किया जाता है और मान्यता है कि इससे वे प्रसन्न होती हैं। यूं भी रंग-बिरंगी रंगोली की सुंदर छटा देख हर किसी का मन खिल उठता है। हमारे यहां पर्व-त्योहार और शुभ अवसर पर इसे बनाने की परंपरा भी है। फूलों की पंखुड़ियों, चावल के आटे, रंगोली पाउडर और दीयों से सजी रंगोली दिवाली की एक ख़ास पहचान बन गई है। 

द्वार पर सजी हुई रंगोली सबकी आवभगत करती हैं। लाल, पीले, नीले, हरे, केसरी, सफेद, गुलाबी रंगों का संयोजन मानों ज़मीन पर इंद्रधनुष उतार लाता है। दिवाली पर आपको घर-घर में रंगोली की कलात्मक डिज़ाइन देखने को मिल जाएगी। आंगन में बिखरे इसके रंगों से न सिर्फ घर, बल्कि मन का हर कोना भी रंगीन हो जाता है। जब दीवाली की रात रंगोली के चारों ओर दीप जलते हैं, तो यह सजीव हो उठती है।

दिवाली पर क्यों बनाई जाती है रंगोली 

दिवाली पर रंगोली बनाने की परंपरा है और माना जाता है कि इससे श्री गणेश और देवी लक्ष्मी का स्वागत किया जाता है। सबसे पहले रंगोली को घर के प्रवेश द्वार पर बनाया जाता है ताकि यह देवी लक्ष्मी का स्वागत कर सके और घर में समृद्धि का वास हो। देश के अलग-अलग हिस्सों में इसे अलग-अलग नामों और शैलियों से जाना जाता है, जैसे कि महाराष्ट्र में इसे रंगोली, तमिलनाडु में कोलम और उत्तर भारत में अल्पना कहते हैं।

रंगोली का ऐतिहासिक महत्व

भारतीय पुरातात्विक साक्ष्यों के अनुसार, सबसे पहले रंगोली जैसी कलाओं के चिह्न मोहन जोदड़ो और हड़प्पा सभ्यता में मिले हैं। इन प्राचीन सभ्यताओं में ‘अल्पना’ के निशान दर्शाते हैं कि रंगोली बनाने की परंपरा भारत में हजारों सालों से चली आ रही है। राष्ट्रीय पुस्तकालय और भारतीय कला अनुसंधान परिषद की रिपोर्ट्स और ऐतिहासिक ग्रंथों में रंगोली के सांस्कृतिक महत्व पर जानकारी मिलती है। “Indian Art and Culture” – नंदिता कृष्णा द्वारा, जिसमें भारतीय त्योहारों और उनकी सांस्कृतिक परंपराओं पर विस्तार से चर्चा की गई है। भारतीय धार्मिक ग्रंथों और पौराणिक कथाओं से भी रंगोली के पारंपरिक संदर्भ प्राप्त होते हैं, जैसे कि महाभारत और पुराण। इन स्रोतों में भारतीय परंपराओं और सांस्कृतिक महत्व पर गहन अध्ययन उपलब्ध है, जो रंगोली की गहरी परंपरा को समझने में मदद करता है।

दक्षिण भारत में रंगोली का विकास

दक्षिण भारत में रंगोली का सांस्कृतिक विकास चोल शासकों के युग में हुआ था। इस समय रंगोली ने एक विशिष्ट कला रूप ले लिया और इसे देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के माध्यम के रूप में अपनाया गया। आज दक्षिण भारत में इसे “कोलम” के नाम से जाना जाता है और हर सुबह महिलाएं आंगन में इसे बनाती हैं, जिससे घर की पवित्रता बनी रहे और सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह हो।

रंगोली का सांस्कृतिक महत्व

भारतीय संस्कृति में दिवाली और अन्य शुभ अवसरों पर रंगोली बनाने की परंपरा रही है। इसकी जड़ें पौराणिक कथाओं, धार्मिक मान्यताओं और प्राचीन सभ्यताओं में मिलती हैं। रंगोली को देवी-देवताओं को प्रसन्न करने और घर में सकारात्मक ऊर्जा लाने का माध्यम माना जाता है। रंगोली का इतिहास भारत में प्राचीनकाल से जुड़ा है। ऐसा माना जाता है कि वैदिक युग में भी रंगोली का प्रचलन था। इसके प्रारंभिक उदाहरण महाभारत और रामायण जैसे ग्रंथों में मिलते हैं। प्राचीन भारतीय ग्रंथों और कला के नमूनों से पता चलता है कि रंगोली का इस्तेमाल देवी-देवताओं की आराधना, मंगल कार्यों और सामाजिक समारोहों में किया जाता था। रंगोली का उल्लेख ‘चौक पुरण’ के रूप में भी आता है जो विशेष अवसरों पर आंगन में बनाया जाता था।

पौराणिक कहानियां

रंगोली से संबंधित कई पौराणिक कथाएं प्रसिद्ध हैं, जो इसकी उत्पत्ति के बारे में बताती हैं। एक मान्यता के अनुसार, ब्रह्माजी ने सृजन की प्रसन्नता में आम के पेड़ के रस से धरती पर एक सुंदर स्त्री की आकृति बनाई थी, जो रंगोली का पहला रूप माना जाता है। वहीं दूसरी कथा के मुताबिक, भगवान कृष्ण जब गुजरात के ध्वारिका में बस गए तो उनकी पत्नी रुक्मणी ने इस कला का आरंभ किया था। इस प्रकार रंगोली एक ओर देवताओं से जुड़ी है तो दूसरी ओर भारतीय समाज के ह्रदय की अभिव्यक्ति है।

रंगोली बनाने का उद्देश्य

रंगोली का मकसद नकारात्मक ऊर्जा को दूर करना और शुभ ऊर्जा को आमंत्रित करना है। यह माना जाता है कि रंगोली के सुंदर रंग और डिज़ाइन नकारात्मक शक्तियों को रोकते हैं और घर में खुशहाली का वातावरण बनाते हैं। इसके अलावा रंगोली में प्राकृतिक तत्वों जैसे चावल का आटा, फूल, हल्दी, और रंगों का प्रयोग भी शामिल होता है, जिससे पर्यावरण के अनुकूल एक अनोखा सौंदर्य उभरता है।

रंगोली भारत की अद्वितीय सांस्कृतिक धरोहर है जो सिर्फ सजावट का साधन भर नहीं, बल्कि धार्मिक श्रद्धा और सकारात्मकता का प्रतीक है। इसकी गहरी पौराणिक जड़ें और सामाजिक महत्व भारतीय संस्कृति को दर्शाते हैं। चाहे दीवाली हो, शादी-ब्याह या अन्य कोई उत्सव, रंगोली के बिना हर खुशी अधूरी लगती है। इसीलिए, हर अच्छे और शुभ अवसर पर घरों में रंगबिरंगी रंगोली बनाई जाती है।

(डिस्क्लेमर : ये लेख विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारियों पर आधारित है। हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।)


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श्रुति कुशवाहा

श्रुति कुशवाहा

2001 में माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय भोपाल से पत्रकारिता में स्नातकोत्तर (M.J, Masters of Journalism)। 2001 से 2013 तक ईटीवी हैदराबाद, सहारा न्यूज दिल्ली-भोपाल, लाइव इंडिया मुंबई में कार्य अनुभव। साहित्य पठन-पाठन में विशेष रूचि।

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