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Sun, Dec 21, 2025

सुबह नंगे पांव घास पर चलना: आँखों की रोशनी से माइंडफुलनेस तक, दादी के नुस्खे पर क्या कहता है विज्ञान

Written by:Shruty Kushwaha
Published:
सुबह के समय अपने घर के आंगन में, मोहल्ले के गार्डन में या आसपास के बगीचे में घास पर नंगे पांव टहलना..जैसे प्रकृति का मुफ्त स्पा ट्रीटमेंट। दादी-नानी का ये नुस्खा सिर्फ परंपरा नहीं बल्कि विज्ञान का भी साथी है। अब विज्ञान इसे अर्थिंग कहता हो..लेकिन धरती मां से गले मिलने की ये प्रथा शरीर को पृथ्वी की इलेक्ट्रिक एनर्जी से जोड़ती है जो तनाव, सूजन और नींद की दिक्कतों को चुटकियों में कम कर सकती है। ऐसे ही कई लाभ हैं जो हमें इस प्राकृतिक नुस्खे से मिल सकते हैं।
सुबह नंगे पांव घास पर चलना: आँखों की रोशनी से माइंडफुलनेस तक, दादी के नुस्खे पर क्या कहता है विज्ञान

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सुबह के समय ओस से भीगी हरी घास पर नंगे पांव चलना..ये दृश्य भारतीय घरों में बड़ा आम रहा है। हमारे बचपन की यादों में रचा-बसा है कि कैसे ये बात दादी-नानी के घरेलू नुस्खों में शामिल होती था। लेकिन क्या यह सिर्फ परंपरा है या इसके पीछे विज्ञान भी कुछ कहता है? यह ट्रेंड अब वैश्विक स्तर पर लोकप्रिय हो रहा है और लोग इसे मानसिक शांति, शारीरिक स्वास्थ्य, और प्रकृति से जुड़ाव का तरीका मान रहे हैं।

हमारे बुजुर्ग मानते आए हैं कि ओस से भीगी घास पर नंगे पांव चलने से आंखों की रोशनी बढ़ती है, मन शांत होता है और पाचन तंत्र सुधरता है। लेकिन क्या ये सिर्फ एक पारंपरिक मान्यता है, या इसके पीछे ठोस वैज्ञानिक आधार भी है। आइए, इसको विस्तार से समझते हैं।

क्या है अर्थिंग

“अर्थिंग” का मतलब है नंगे पांव धरती (घास, मिट्टी, या रेत) पर चलना ताकि शरीर सीधे पृथ्वी की सतह से जुड़े। सुबह का समय इसके लिए सबसे अच्छा माना जाता है क्योंकि ताजी हवा और ओस से भीगी घास इस अनुभव को और बेहतर बनाती है। भारतीय संस्कृति में इसे सुबह की सैर का हिस्सा माना जाता है, जो शरीर और मन को तरोताजा करता है। लेकिन अब यह सिर्फ दादी का नुस्खा नहीं रहा वैज्ञानिक शोध भी इसके फायदों की पुष्टि कर रहे हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से, अर्थिंग का आधार पृथ्वी की प्राकृतिक विद्युत ऊर्जा से जुड़ना है। पृथ्वी की सतह पर एक हल्का नकारात्मक चार्ज होता है और नंगे पांव चलने से शरीर इस चार्ज को अवशोषित करता है, जो स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। धरती पर नंगे पांव चलना शरीर में मौजूद फ्री रेडिकल्स और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस को कम करने में मदद कर सकता है। “Earthing” के कारण धरती से इलेक्ट्रॉनों का संपर्क तनाव, सूजन और नींद की समस्या को घटा सकता है।

एक्यूप्रेशर और नर्व एंडिंग्स को सक्रिय करना

पैर के तलवों पर हजारों नसों और एक्यूप्रेशर पॉइंट्स होते हैं, जो हमारे शरीर के विभिन्न अंगों से जुड़े होते हैं। जब हम नंगे पांव घास पर चलते हैं, तो ये बिंदु हल्के दबाव से उत्तेजित होते हैं जिससे नर्वस सिस्टम संतुलित होता है। पैरों के तलवों को एक्यूप्रेशर और रिफ्लेक्सोलॉजी में शरीर का “मिनी मैप” माना जाता है। प्रत्येक तलवे में लगभग 7,000 नर्व एंडिंग्स और दर्जनों एक्यूप्रेशर पॉइंट्स होते हैं, जो मस्तिष्क, हृदय, फेफड़े, पाचन तंत्र, और अन्य अंगों से जुड़े होते हैं। आयुर्वेद और चीनी चिकित्सा पद्धति में इन पॉइंट्स को उत्तेजित करने से शरीर की ऊर्जा (प्राण) संतुलित होती है।

नेत्र स्वास्थ्य पर असर

पैर के तलवे पर मौजूद कुछ बिंदु आंखों की नाड़ियों से जुड़े होते हैं। एक्यूप्रेशर थैरेपी के अनुसार, नियमित रूप से हरी घास पर चलने से आई-साइट में सुधार हो सकता है। रिफ्लेक्सोलॉजी और आयुर्वेदिक चिकित्सा में यह दावा किया जाता है कि नंगे पांव घास पर चलने से नेत्र स्वास्थ्य में सुधार हो सकता है। हालांकि, यह दावा सीमित वैज्ञानिक प्रमाणों पर आधारित है। Frontiers in Psychology (2021) में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार, नंगे पांव चलने से माइंडफुलनेस बढ़ती है, जो तनाव हार्मोन (कोर्टिसोल) को कम करता है। यह अप्रत्यक्ष रूप से आंखों के तनाव को कम कर सकता है।

मानसिक स्वास्थ्य और तनाव में राहत

घास पर चलना एक प्रकार की माइंडफुल वॉकिंग मेडिटेशन भी है। यह चिंता, तनाव और हल्के अवसाद को कम करने में सहायक हो सकता है। हरी घास, ओस की ठंडक और सुबह की ताजी हवा आपकी इंद्रियों को एक्टिव करती है, जिससे दिमाग की कई उलझनें कम होती हैं। आयुर्वेद में यह प्रैक्टिस “पृथ्वी तत्व” से जुड़ने का तरीका मानी जाती है जो मन को शांत करता है और वात दोष (जो चिंता और तनाव से जुड़ा है) को संतुलित करता है। योग में इसे “प्राण शक्ति” को जागृत करने का हिस्सा माना जाता है। एक शोध के अनुसार, अर्थिंग कोर्टिसोल (तनाव हार्मोन) के स्तर को सामान्य करता है। सुबह नंगे पांव चलने से तनाव से जुड़े शारीरिक लक्षण जैसे सिरदर्द और अनिद्रा में कमी आती है। एक अन्य अध्ययन में पाया गया कि प्रकृति के साथ समय बिताने और माइंडफुल प्रैक्टिसेज से सेरोटोनिन और डोपामाइन (खुशी के हार्मोन) का स्तर बढ़ता है।

(डिस्क्लेमर : ये लेख विभिन्न स्त्रोतों से प्राप्त जानकारियों पर आधारित है। हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।)