Blind: नेत्रहीन लोग सपने में क्या देखते हैं? क्या आपके मन में भी आया है कभी यह सवाल? पढ़ें यह खबर

Blind: यह एक दिलचस्प प्रश्न है कि नेत्रहीन लोग सपने कैसे देखते होंगे, क्योंकि उन्हें न तो रंग दिखाई देते हैं और न ही किसी चीज का विजुअल अनुभव होता है। यदि आपके मन में भी कभी यह सवाल आया है तो चलिए इस खबर में जानते हैं आखिर नेत्रहीन लोग कैसे सपने देखते हैं।

Rishabh Namdev
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Blind: ऐसा माना जाता है कि हर व्यक्ति सपने देखता है, और कुछ लोगों का मानना है कि जो विचार या कार्य आप दिनभर में करते हैं, वही सपने भी देखने की सम्भावना होती है। लेकिन अब सवाल यह है कि क्या वे लोग भी सपने देखते हैं, जो जन्म से ही अंधे होते हैं, क्या उन्हें भी आम लोगों की तरह ही सपने आते हैं? दरअसल सपने देखना सामान्य और रूटीन घटना है, जो लगभग सभी लोगों को अनुभव होती है।

क्या होते है सपने?

दरअसल कुछ विशेषज्ञों के मुताबिक, दिनभर में हम जो जानकारी जुटाते हैं, रात्रि में हमारा मस्तिष्क उसे समझने का प्रयास करता है। लेकिन क्या आपने सोचा है कि नेत्रहीन व्यक्ति को कैसे सपने आते हैं? दरअसल नेत्रहीन व्यक्तियों के सपने उनकी दृष्टि के अनुरूप होते हैं। वहीं समय के साथ, इन सपनों का रंग और तारीक बदल सकती है, और इस प्रकार के सपने देखते हैं जिन्हे वे अधिकांशतः समझ पाते हैं। हालांकि बहुत से लोग यह जानना चाहते हैं कि नेत्रहीन व्यक्तियों के सपनों में क्या होता है? तो चलिए जानते हैं।

जानिए कैसे सपने देखते हैं नेत्रहीन व्यक्ति:

जानकारी के अनुसार नेत्रहीन व्यक्तियों के सपने उनकी विशेष स्थिति को ध्यान में रखते हुए होते हैं। यह एक दिलचस्प प्रश्न है कि वे सपने कैसे देखते होंगे, क्योंकि उन्हें न तो रंग दिखाई देते हैं और न ही किसी चीज का विजुअल अनुभव होता है। हालांकि सपने एक रूपांतरित स्थिति होते हैं जो इन व्यक्तियों के अन्तर्मन के प्रवाह को प्रकट करते हैं। जानकारी के अनुसार नेत्रहीन लोग अपने सपनों में आवाज, सेंसेज, और महसूस की ताकत को अनुभव कर सकते हैं, लेकिन उन्हें रंगों और चित्रों का अनुभव नहीं होता है। इसलिए, उनके सपने विशेष तरह के होते हैं, जो अपने अंदर की ऊर्जा और अद्वितीयता को दर्शाते हैं।

रिसर्च में हुआ यह खुलासा:

दरअसल नेत्रहीन लोगों के सपने समय के साथ धुंधले होते जाते हैं। एक डेनिश रिसर्च जो सन् 2014 में किया गया था, उसमें बताया गया कि जब आंखों की रोशनी को खोने के बाद पांच वर्ष बीत जाते हैं, तो सपनों में दिखाई देने वाले रंग और छवि की स्थिति में कमी आती है। यानी उन्हें सपने भी धीरे-धीरे धुंधले दिखने लगते हैं। इस अध्ययन में प्रमुख बात यह है कि पूर्ण रूप से अंधे लोगों में बुरे सपने की उत्पत्ति की संख्या कम होती है जब उनकी रोशनी खो जाती है, जो कि बाद में अंधे होने वालों में अधिक रहती है।

(Disclaimer- यहां दी गई सूचना सामान्य जानकारी के आधार पर बताई गई है। इनके सत्य और सटीक होने का दावा MP Breaking News नहीं करता।)


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मैंने श्री वैष्णव विद्यापीठ विश्वविद्यालय इंदौर से जनसंचार एवं पत्रकारिता में स्नातक की पढ़ाई पूरी की है। मैं पत्रकारिता में आने वाले समय में अच्छे प्रदर्शन और कार्य अनुभव की आशा कर रहा हूं। मैंने अपने जीवन में काम करते हुए देश के निचले स्तर को गहराई से जाना है। जिसके चलते मैं एक सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार बनने की इच्छा रखता हूं।

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