भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। साबुन (Soap) हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा है। इसके बिना हम सफाई की कल्पना भी नहीं कर सकते। आज बाजार में नहाने, कपड़े या बर्तन धोने के लिए हजारों वैरायटी के साबुन मौजूद है। लेकिन क्या कभी आपने सोचा है कि साबुन का अविष्कार कब और कैसे हुआ।
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माना जाता है कि साबुन का आविष्कार 2800 BC में बबीलोनियंस ने किया था। इस बात का सबूत उस समय साबुन के लिए इस्तेमाल किए गए मिट्टी के बर्तन से मिलता है। उसपर साबुन को बनाने का तरीका भी लिखा गया था जिसके अनुसार जानवरों की चर्बी, राख और पानी को मिलकर साबुन बनाया जाता था। हालांकि तब इसका इस्तेमाल शरीर की सफाई के लिए नहीं बल्कि ऊन और कॉटन को साफ करने के लिए किया जाता था। इसके अलावा ये भी पता चला है कि प्राचीन मिस्रवासी नियमित रूप से नहाते थे।करीब 1500 ईसा पूर्व के एक चिकित्सा दस्तावेज एबर्स पेपिरस में रोचक उल्लेख मिलता है। यहां त्वचा रोगों के इलाज के साथ कुछ और उपयोग के लिए क्षारीय नमक के साथ पशु और वनस्पति तेलों के संयोजन से साबुन जैसी वस्तु बनाने का उल्लेख मिला है। कई अन्य प्राचीन सभ्यताओं में भी साबुन के उपयोग के प्रमाण मिले हैं। प्राचीन रोमन किंवदंती में साबुन को माउंट सपो के नाम से जाना जाता था। 7वीं शताब्दी तक स्पेन, फ्रांस और इटली में साबुन बनाना एक स्थापित कला थी। शुरुआत में जैतून के पेड़ों से तेल सहित कुछ और सामग्री मिलाकर साबुन बनाए जाते हैं।
भारत की बात करें तो ये जानना दिलचस्प है कि यहां साबुन बनाने वाली पहली भारतीय कंपनी मैसूर रियासत के रजवाड़ों से जुड़ी है। मैसूर सैंडल सोप भारत का पहला साबुन माना जाता है। इंग्लैंड से साबुन बनाने की तकनीक सीखकर एक युवा कैमिस्ट गरलपुरी शास्त्री ने इतना शानदार साबुन बनाया कि तब ब्रिटेन के शाही घरानों में भी उसी का इस्तेमाल होने लगा। इस कंपनी के साबुन आज भी दक्षिण भारत में मिल जाएंगे। आज साबुन के विज्ञापनों में एक से एक सुपरस्टार, मॉडल और एक्टर्स काम करते दिख जाते हैं। लेकिन इसकी शुरुआत 1941 से हुई। उस समय मशहूर अदाकारा लीला चिटनिस (Leela Chitnis) ने सबसे पहले लक्स साबुन का विज्ञापन किया था। वो पहली भारतीय महिला थीं जिन्होने साबुन के लिए विज्ञापन किया, जिसके बाद लक्स की बिक्री में बेतहाशा वृद्धि हुई थी।