बॉलीवुड अभिनेता अभिषेक बच्चन (Abhishek Bachchan) हाल ही में अपनी फ़िल्म ‘बी हैप्पी’ के कारण चर्चा का विषय बने हुए हैं। यह फ़िल्म एक पिता और उसकी बेटी के बीच के ख़ूबसूरत रिश्ते को दर्शाती है। फ़िल्म के माध्यम से अभिषेक ने पेरेंटिंग के अलग-अलग पहलुओं को उजागर किया है। हर माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश को लेकर चिंता में रहते हैं, सभी कि यही ख़्वाहिश होती है, कि उनका बच्चा अच्छे से पढ़ाई-लिखाई करें और अच्छे अच्छे संस्कार सीखकर जीवन में ख़ूब आगे बढ़े।
अभिषेक बच्चन ने कहा कि पिता की भावनाएँ अक्सर समाज में अनदेखी कर दी जाती है, क्योंकि वे अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त नहीं करते हैं। उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि पिता का रोल भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है जितना कि माँ का, लेकिन कोई भी पिता के बारे में बात करता हुआ नज़र नहीं आता है, समाज में पिता की भूमिका को कम आंका जाता है।

Abhishek Bachchan ने पेरेंटिंग को लेकर कही ये बात
पिता की भावनाएँ भी मायने रखती हैं
अभिषेक बच्चन ने अपनी आगामी फ़िल्म ‘बी हैप्पी’ की रिलीज़ से पहले फीवर FM के साथ इंटरव्यू में पिता होने के अपने अनुभव और पेरेंटिंग से जुड़े विचारों को खुलकर शेयर किया। उन्होंने बताया कि पिता की भावनाओं और संघर्षों को नज़रअंदाज़ कर दिया जाता है। अभिषेक ने कहा कि बहुत बार हम बातचीत में भूल जाते हैं, कि पिता किस दौर से गुज़र रहा होगा। मुझे लगता है कि पुरुष अपनी भावनाओं को व्यक्त करने में बहुत अच्छे नहीं होते हैं। यह एक बहुत बड़ी कमज़ोरी है और हमें लगता है कि हमें बस चुपचाप अपनी जिम्मेदारियां या दबाव को स्वीकार कर लेना चाहिए और आगे बढ़ जाना चाहिए।
अभिषेक ने यह स्वीकार किया कि पिता कभी भी माँ की जगह नहीं ले सकते, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि पिता की भूमिका कम होती है या फिर पिता की भूमिका को कम आंका जाए। उन्होंने कहा कि महिलाएँ श्रेष्ठ जाती है, लेकिन उन्हें पिता के काम को कमतर नहीं आंकना चाहिए।
बच्चों के सही मार्गदर्शक बनें
अभिषेक बच्चन ने कहा कि आजकल माता-पिता और बच्चों के बीच का रिश्ता पूरी तरह से दोस्ताना हो चुका है। अभिषेक ने यह स्पष्ट किया कि माता-पिता का मुख्य उद्देश्य बच्चों को सही मार्गदर्शन दिखाना और उनकी रक्षा करना होता है, दोस्त बनना ग़लत बात नहीं है लेकिन दोस्ताना व्यवहार रखने से कहीं न कहीं माता-पिता अपनी असल ज़िम्मेदारियाँ भूल जाते हैं।
बच्चों का भरोसा जीतें
उन्होंने कहा कि आप अपने बच्चों के दोस्त नहीं हो सकते हैं। आप उनके माता-पिता है। आप उनकी रक्षा करने और उनका मार्गदर्शन करने के लिए हैं। लेकिन आपको अपने बच्चों के साथ बस इस तरह का दोस्ताना व्यवहार रखना चाहिए, की बच्चे खुलकर अपने माता-पिता से बातें शेयर कर सकें। आपको अपने बच्चों के साथ ऐसा व्यवहार रखना चाहिए, की वे अपनी बात कहने में सहज महसूस करें। अगर किसी भी तरह की परेशानी में फँसे, तो सबसे पहले वे आपको ही कॉल करें।