शिमला की ठंडी हवाओं में टहलते हुए या मनाली की मॉल रोड पर गर्म कॉफी की चुस्की लेते हुए, हर हिल स्टेशन की मॉल रोड का अपना जादू है। लेकिन क्या आपने सोचा कि ये नाम हर जगह क्यों? ये सड़कें सिर्फ दुकानों और भीड़ का ठिकाना नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक परंपरा की निशानी हैं। अंग्रेजों ने इन्हें अपने ग्रीष्मकालीन ठिकानों में बनाया था, जो आज पर्यटकों के लिए खास आकर्षण हैं।
ये मॉल रोड्स अंग्रेजों के समय की देन हैं। 19वीं सदी में, जब गर्मियां आती थीं, तो ब्रिटिश अधिकारी पहाड़ों की ठंडक में चले जाते थे। शिमला को तो 1864 में ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया गया। मॉल रोड उस समय की खुली, पक्की सड़क थी, जहां लोग टहलते, बातें करते और सामाजिक मेलजोल बढ़ाते थे। ‘मॉल’ शब्द पुराने अंग्रेजी शब्द ‘माल’ से आया, जिसका मतलब था खुली जगह या सैरगाह। मसूरी, नैनीताल और दार्जिलिंग में भी ऐसी सड़कें बनीं, जो आज भी हिल स्टेशनों की शान हैं।
अंग्रेजों के जमाने से शुरू हुई मॉल रोड की कहानी
अंग्रेजों के शासनकाल में हिल स्टेशन्स उनके लिए गर्मियों में राहत की जगह थे। शिमला को तो ब्रिटिश राज की ग्रीष्मकालीन राजधानी बनाया गया था। उस दौर में मॉल रोड का मतलब था एक खुली, साफ-सुथरी सड़क, जहां लोग टहलते थे, मिलते-जुलते थे और सामाजिक गतिविधियां होती थीं। ‘मॉल’ शब्द पुराने अंग्रेजी शब्द ‘माल’ से आया, जिसका मतलब था खुला मैदान या सैर करने की जगह। शिमला की मॉल रोड पर ब्रिटिश अफसर और उनके परिवार टहलते थे, चाय की चुस्कियां लेते थे और दुकानों से सामान खरीदते थे। मनाली और मसूरी में भी यही परंपरा बनी, जो आज भी कायम है।
आज की मॉल रोड बने पर्यटन, संस्कृति और लोकल इकोनॉमी का केंद्र
मॉल रोड पर आप रिज के पास खूबसूरत नजारे देख सकते हैं, तो मनाली में ब्यास नदी के किनारे की सैर का मजा ले सकते हैं। ये सड़कें सिर्फ दुकानों और रेस्तरां तक सीमित नहीं हैं। यहां गर्म कपड़े और स्वादिष्ट खाना पर्यटकों को लुभाता है। मसूरी की मॉल रोड पर लाइब्रेरी चौक से लेकर पिक्चर पैलेस तक का रास्ता हर उम्र के लोगों को आकर्षित करता है। नैनीताल में झील के किनारे की मॉल रोड का नजारा तो जन्नत जैसा है। ये जगहें पर्यटकों को हिल स्टेशन की संस्कृति और इतिहास से जोड़ती हैं, साथ ही स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी मजबूती देती हैं।





