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Sun, Dec 21, 2025

दुनिया का सबसे ऊंचा कृष्ण मंदिर, जहां धुल जाते हैं सारे पाप!

Written by:Sanjucta Pandit
Published:
हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में स्थित यूला कांडा मंदिर विश्व का सबसे ऊंचा कृष्ण मंदिर है, जो समुद्र तल से 12000 फीट पर स्थित है। मान्यता है कि पांडवों ने अज्ञातवास के दौरान झील के बीच इसे बनाया।
दुनिया का सबसे ऊंचा कृष्ण मंदिर, जहां धुल जाते हैं सारे पाप!

सनातन धर्म में भगवान कृष्ण को अलग ही महत्व दिया जाता है। उन्हें माखन चोर, गोपाल, लड्डू गोपाल, कान्हा सहित अन्य कई नामों से जाना जाता है। द्वापर युग में अवतार लेकर उन्होंने सृष्टि का कल्याण किया था। आज भी लोग उनकी विधि-विधान पूर्वक पूजा-अर्चना करते हैं। देश में कई ऐसे मंदिर हैं, जो केवल भगवान कृष्ण को ही समर्पित हैं। इन सभी का अलग-अलग महत्व और खासियत है, जिनके बारे में अमूमन हर कोई नहीं जानता। कुछ मंदिर विश्व प्रसिद्ध हैं, तो कुछ के बारे में बहुत कम लोगों को जानकारी है।

आज हम आपको विश्व का सबसे ऊंचा कृष्ण मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जो अपनी पौराणिक मान्यताओं के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है। यहां हर साल लाखों पर्यटक पहुंचते हैं।

यूला कांडा

दरअसल, इस मंदिर का नाम यूला कांडा है, जो हिमाचल प्रदेश में स्थित है। कहा जाता है कि अज्ञातवास के दौरान पांडवों ने झील के बीचो-बीच इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसकी खासियत कृष्ण भक्तों को अपनी ओर खींचती है। वैसे भी हिमाचल प्रदेश को देवभूमि कहा जाता है। यहां अमूमन सभी देवी-देवताओं की विधि-विधान पूर्वक पूजा-अर्चना होती है। यहीं से माता गंगोत्री भी निकलती है। इस मंदिर की बात करें तो यहां टोपी भक्तों का भाग्य तय करती है। यह मंदिर किन्नौर जिले में स्थित है।

सफर कठिन

जन्माष्टमी के खास अवसर पर यहां दूर-दराज़ से लोग पहुंचते हैं। मंदिर कमेटी की तरफ से श्रद्धालुओं के रहने और खाने-पीने की व्यवस्था की जाती है। यह मंदिर समुद्र तल से 12,000 फीट की ऊंचाई पर मौजूद है। मंदिर तक पहुंचने के लिए भक्तों को 14 किलोमीटर पैदल चलकर जाना पड़ता है। हालांकि, यह सफर कठिन है, लेकिन श्रद्धा से भरे लोग इसे सहज मानते हैं। जन्माष्टमी जैसे खास उत्सव पर मंदिर को फूलों और रंग-बिरंगी लाइटों से सजाया जाता है, जिससे नज़ारा अद्भुत हो जाता है।

मेले का आयोजन

जन्माष्टमी से यहां मेले का आयोजन किया जाता है, जहां गांव के साथ-साथ दूर-दराज से भी लोग आते हैं। यह मेला कई दिनों तक चलता है और मंदिर में भारी भीड़ उमड़ती है। मान्यता है कि इस झील में टोपी उल्टी करके डालने पर यदि वह बिना डूबे तैरते हुए दूसरे छोर तक पहुंच जाए, तो आपकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और भाग्य का साथ मिलता है। यदि टोपी डूब जाए, तो आने वाला साल कठिनाइयों से भरा हो सकता है।

मान्यता

स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, इस झील की परिक्रमा करने से इंसान के सभी पाप धुल जाते हैं। कहा जाता है कि हिमालय के कुछ रहस्य सिर्फ देवताओं के लिए थे और उन्हीं में से एक यह मंदिर है। पांडवों ने अपने वनवास के दौरान इसे बनाया, जब जीवन अग्नि परीक्षा बन चुका था। यही वह धरती है जहां उन्होंने शक्ति और आस्था का सहारा लेकर भगवान कृष्ण को समर्पित यह मंदिर बनाया। तब से लेकर आज तक यह केवल मंदिर नहीं, बल्कि जीता-जागता इतिहास है। एक ऐसा द्वार जहां मनुष्य और देवताओं की सीमाएं धुंधली हो जाती हैं।

(Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है। MP Breaking News किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है।)