नक्सली मुठभेड़ में न्यायिक जांच नहीं होने पर आदिवासी समाज करेगा उग्र आंदोलन

बालाघाट,सुनील कोरे। 6 सितंबर को कथित नक्सली मुठभेड़ में मारे गये छत्तीसगढ़ कबिरधाम जिले के बालसमुंद निवासी झामसिंह मौत को लेकर आदिवासियों द्वारा की जा रही मांग पर भले ही राज्य शासन ने सीआईडी जांच और जिला प्रशासन द्वारा अपर कलेक्टर बैहर के माध्यम से प्रशासनिक जांच कराई जा रही हो, लेकिन आदिवासी समाज इससे संतुष्ट नहीं है। झामसिंह की मौत मामले में अब भी आदिवासी समाज कथित नक्सली मुठभेड़ के नाम से सर्चिंग पार्टी पर हत्या, हत्या का प्रयास, मामले की नैतिक जिम्मेदारी के तहत एसपी को हटाने और मामले की हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज से न्यायिक जांच कराये जाने की मांग पर अड़ा है। आदिवासी सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने कहा कि यदि इस मांग पर सरकार 15 सितंबर को किये गये आंदोलन के 15 दिनों की अवधि में कोई निर्णय नहीं लेती है तो आगामी अक्टूबर माह में जिला मुख्यालय में आदिवासी समाज, आदिवासी झामसिंह की कथित नक्सली मुठभेड़ में हत्या किये जाने की घटना को लेकर सड़क पर उतरकर आंदोलन बड़ा आंदोलन करेगा। जिसमें न केवल मध्यप्रदेश अपितु छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के आदिवासी साथी भी साथ रहेंगे।

जांच के नाम पर आदिवासी समाज को थमा दिया झुनझुना


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Gaurav Sharma

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।