भोपाल।
एक तरफ देशभर मे कोरोना का संकट गहराया हुआ है, प्रदेश में भी लगातार हालात बिगड़ते जा रहे है वही दूसरी कोरोना से निपटने के बाद बीजेपी कांग्रेस के सामने उपचुनाव में जीतना बड़ी चुनौती होगी। जहां सिंधिया के सामने समर्थकों को बीजेपी की तरफ से जीताना बड़ा कठिन खेल होगा वही 15 महिनों में ही सत्ता से बाहर हुई कांग्रेस का भी उपचुनाव के सहारे कमबैक करना कांटो पर चलने से कम नही।हालांकि कांग्रेस का दावा है कि वो निश्चित ही कमबैक करेगी और कमलनाथ फिर से सीएम बनेंगे।
खबर है कि इस संकट की घड़ी में भी कांग्रेस उपचुनावों पर नजर जमाए हुए है।कांग्रेस हर हाल में इन सीटों पर जीत दर्ज कर सत्ता में वापसी की रणनीति बना रही है। हालांकि इसका दावा खुद पूर्व मुख्यमंत्री और कई पूर्व मंत्री कर चुके है कि कांग्रेस उपचुनाव में कम बैक करेगी।हाल ही दिल्ली दौरे के दौरान कमलनाथ पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी इसका आश्वासन देकर आए है।सुत्रों की माने तो 24 सीटों को जितने के लिए कांग्रेस पूर्व मंत्रियों और विधायकों को जिलों की कमान सौंपी सकती है।इसमें एक पूर्व मंत्री के साथ तीन से चार विधायक मैदान में मोर्चा संभालेंगे।विधायकों कार्यकर्ताओं की एक टोली बनाकर कांग्रेस के पक्ष में माहौल तैयार करेंगे। इस दौरान वे 15 महिनों में सरकार द्वारा किए गए कामों का बखान और भाजपा के षड़यंत्र का भी खुलासा करेंगे।इतना ही नही इन उप चुनावों का घोषणा पत्र इस तरह तैयार किया जा रहा है जिसमें जनता को बताया जाएगा कि उनके वोट को किस प्रकार कांग्रेस छोड़कर भाजपा में गए जनप्रतिनिधियों ने बेचा हैं। इसमें भौगोलिक और जातीय समीकरणों का ध्यान रखा गया है।
वही बीजेपी भी बड़े नेताओं का भरपूर इस्तेमाल कर सीटों पर धाक जमाने की कोशिश करेगी। महाराज के सामने भी इन 22 को जिताना चुनौती पूर्ण रहेगा। कांग्रेस छोड़ने के बाद उनके समर्थन में पार्टी और विधायकी छोड़ने वाले नेताओं के लिए आने वाला उपचुनाव कड़े संघर्ष वाला होगा, क्योंकि ये तय है कि भाजपा उन्हें टिकट अवश्य देगी लेकिन उन्हें कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों भिड़ना होगा। उन्हें मतदाता को विश्वास दिलाना होगा कि उन्होंने जो किया वो जनता के लिए ही किया। वहीं इससे भी बड़ी चुनौती भाजपा के लिए ये होगी कि वो इन सभी सीटों पर अपने पूर्व प्रत्याशियों को कैसे मनायेगी और कैसे इस बात के लिए राजी करेगी कि कांग्रेस से आने वाले नेताओं के लिए जनता के लिए वोट मांगे। ग्वालियर चंबल की सीटों के लिए खास करके महाराज और केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर पर बीजेपी की जीत का जिम्मा होगा। वही कमलनाथ , दिग्विजय और ग्वालियर चंबल के गोविंद सिंह जैसे दिग्गज नेताओं के लिए भी ये जंग आसान नही होगी।आगे पार्टी क्या रणनीतियां बनाती है ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा। लेकिन कहा जा रहा है कोरोना के संकट से उभरने के बाद दोनों ही दल तेजी से चुनाव की तैयारियों में जुट जाएंगे।
बता दे कि एक कांग्रेस बनवारी लाल जौरा विधानसभा और एक बीजेपी मनोहर सिंह ऊंटवाल आगर विधानसभा सीट निधन के बाद सीट खाली हुई है। वही 22 सिंधिया समर्थक दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य के साथ बीजेपी में शामिल हो गए है।सरकार गिराने में इन 22 की भूमिका अहम रही थी।वर्तमान में ग्वालियर-चंबल अंचल की 16 सीटें और 5 मालवा-निमाड़ तथा एक सागर, भोपाल, शहडोल संभाग की हैं। पार्टी का जोर ऐसी सीटों पर ज्यादा है जहां से पूर्व मंत्री लड़े थे और अब वे भाजपा में है।
22 में से 10 ऐसे जो पहली बार विधानसभा पहुंचे थे
2018 के विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने वाले सिंधिया समर्थकों 22 पूर्व विधायकों में से 10 ऐसे हैं जो पहली बार विधानसभा पहुंचे थे इनमें रघुराज कंसाना, कमलेश जतव्, मुन्नालाल गोयल, रक्षा सरोनिया, मनोज चौधरी, जजपाल जज्जी, सुरेश धाकड़, ओपीइस भदौरिया, गिरिराज दंडोटिया और जसवंत जाटव शामिल हैं । जबकि बिसाहू लाल साहू पांचवी बार विधायक चुने गए थे। इसे अलावा महेंद्र सिंह सिसोदिया, रणवीर जाटव, हरदीप सिंह डंग, ब्रजेंद्र सिंह, प्रद्युम्न सिंह तोमर, इमरती देवी, प्रभुराम चौधरी, गोविंद सिंह राजपूत, राजवर्धन सिंह, तुलसी सिलावट और एन्दल सिंह कंसाना में से कोई दो बार, कोई तीन बार और कोई चार बार का विधायक है। लेकिन इन सभी ने सिंधिया के समर्थन में कांग्रेस छोड़ दी और उनके ही हाथों में अपना राजनैतिक भविष्य सौंप दिया है।