झमाझम बारिश हो रई है, अच्छे मियां का मन मोर बनके नाच रिया है…

article-by-Shruty-Kushwaha

अब बारिश का तो मज़ा ही है गरमागरम पकोड़ो में, हींग की सौंधी कचौड़ी में, अरबी के पतोड़े में, बेसन के चीले में, लौंग के सेव में। बारिश आते ही एक तरफ तो अच्छे मियां का मन लहलहा उठता, दूसरी तरफ ज़बान अलग-अलग ज़ायके मांगने लगती। यूं बेगम साहिबा कमाल की रसोई बनाती हैं, जब-तब कुछ न कुछ नया बनाके खिलाती भी रहती हैं, उनके हाथ के स्वाद की लज़्ज़त तो दूर-दूर तक मशहूर है, खाने-खिलाने में उनका दिल दरिया है..लेकिन है वो अपनी मनमर्ज़ी की मालकिन। जो मन हुआ तो सेर भर सेव तल के रख दें, नमकपारे का पहाड़ बना दे, बारह तरह के पकोड़े परोस दे..लेकिन जो मन न हो तो फिर कोई कुछ कह लें, वो रसोई में नहीं जाएंगी तो नहीं जाएंगी…

तो इस बार जब जुम्मन मियां के दालान में महफ़िल जमी तब बादल सरकार जमकर बरस रहे थे। इतने के सबको दालान से उठकर बड़े वाले कमरे में जाना पड़ा। वहीं चाय की चुस्कियों के बीच किसी ने अच्छे मियां से फरमाईश कर दी कि ख़ां इस हफ्ते तो भाभी साहिबा के हाथों के पकवान हो जाएं, यूं भी अच्छे मियां के सारे जानने वाले उनके घर खाने का मौक़ा तलाशते रहते हैं, ऐसे में इस एक फरमाईश पर सबने अपनी-अपनी पसंद के पकवानों के फेहरिस्त ही रख दी सामने। अच्छे मियां की भी इज़्ज़त का मामला हुआ ये, सो परसों पे वादा जा ठहरा। सभी को दावत का न्योता देकर अच्छे मियां घर की तरफ निकल पड़े…

जोश-जोश में न्योता तो दे दिया, लेकिन ज्यों-ज्यों घर नज़दीक आता गया, दिल की धड़कन बढ़ती गई। कैसे बताएंगे बेगम को कि अठारह लोगों को न्योत आए हैं, और अठारह लोगों ने बीस तरह के खानों की फरमाईश रख दी है। रास्ते से बेगम की पसंद की मलाई बर्फी ली, मीठा पान बंधवाया और जी कड़ा कर पहुंच गए सीधे रसोई में। बेगम आखिरी रोटी ही उतार रही थी तवे से, अच्छे मियां ने जैसे ही बर्फी और पान रखा सामने बेगम साहिबा बोल उठी “अब क्या मुसीबत मोल ले आए हो जो ये रिश्वत दी जा रही है।” अच्छे मियां चाहे जितनी कोशिश कर लें, बेगम से पार पाना मुमक़िन नहीं…

जैसे ही बेगम साहिबा को सारा किस्सा पता चला वो भड़क उठी  “तुमने मुझे क्या खाना बनाने की मशीन समझ रखा है, सुबह उठते जो रसोई में घुसती हूं तो रात तक बस वही एक काम। नाश्ते-खाने पका-पकाकर कम हलकान हूं कि दिन भर तुम्हारे दोस्तों के लिये चाय की पतीली भी चढ़ी रहती है। उसपर अब ये नई मुसीबत मोल ले ली, आखिर तुम्हें कहा किसने थे ये चोंचलेबाज़ी करने के लिये, एक बार मुझसे पूछना भी मुनासिब न समझा”…अच्छे मियां इन सारे तानों के लिए तो पहले से ही तैयार थे, लेकिन इम्तिहान का नतीजा तो आखिर में आना था जो बेगम ने कुछ यूं कहकर सुनाया “जाओ मैं न पकाने वाली कुछ भी खाना-वाना, कर लो जो करना है”…

बस अच्छे मियां फेल हो गए इम्तिहान में, फेल ही नहीं हुए बल्कि दोस्तों के सामने अच्छी खासी फ़ज़ीहत होनी भी तय हो गई। अच्छे मियां जानते हैं कि बेगम की ना का मतलब ना है, और जो अबके उन्होने चिढ़कर ना बोली है तो कोई फरिश्ता भी उन्हें मना नहीं सकता। समझ नहीं आ रहा अच्छे मियां को कि क्या करें, आखिर कैसे मना करें सबको, क्या बहाना बनाएं…

कयामत का दिन आ ही गया है, आज पूरे मोहल्ले में अच्छे मियां का मज़ाक बनना तय है। कुछ न सूझ रहा उन्हें, बेगम के सामने आवाज़ नहीं निकल रही और दोस्तों का सामना करने की हिम्मत नहीं हो रही। दोपहर का खाना किसी तरह हलक़ से नीचे उतारा और बेगम साहिबा को ‘आता हूं’ कहकर निकल लिये। तय किया कि ग़ायब ही हो जाते हैं घर से, जब वो घर पर ही नहीं होंगे तो दोस्त लोग उन्हें न पाकर खुद-बखुद लौट जाएंगे। अब कोई बेगम से तो दरयाफ़्त करेगा नहीं दावत की। बाद में मिलेंगे तो कोई न कोई बहाना बना देंगे तगड़ा सा…

अच्छे मियां निकल पड़े शहर के दूसरे छोर पर रहने वाली दूर की खाला के घर। कितना तो बुला-बुलाकर थक जाती हैं खाला, लेकिन उस तरफ जाना ही न हो पाता। बस आज का दिन वहीं गुज़ारने का तय कर पहुंच गए उनके घर। खाला भी उन्हें देख खुशी से फूली न समाई। दोपहर से शाम हो गई, शाम ढलने भी लगी, उधर घर पर दोस्त लोग आकर निकल भी गए होंगे। अब वक्त हो चला, अच्छे मियां निकल पड़े घर की ओर…

पहुंचे तो देखा कि कहकहो से गूंज रहा है घर, बड़े कमरे में महफ़िल सजी हुई है, सारे दोस्त बैठकर चाय की चुस्कियां ले रहे हैं, घर खाने की खुशबुओं से महक रहा है। अच्छे मियां ताज्जुब में पड़ गए, उन्हें देख सभी लोग उनपर पिल पड़े, “कहां हो मियां, कबसे तुम्हारा इंतज़ार हो रिया है, इधर भाभी साहिबा चार बार पकोड़े और दो बार चाय दे चुकी हैं, बाकी कितने पकवान हमारे सब्र का इंतज़ार कर रहे हैं, अब जो न आते तो हम सब आपके बिना ही दावत उड़ा लेते”..अच्छे मियां किसी तरह सबसे पीछा छुड़ाकर रसोई में झांकने आये तो देखा कि पड़ोस की तीन लड़कियों के साथ बेगम जुटी है तश्तरी सजाने में। पकोड़े, कचौड़ी, सेव, नमकपारे, मुठियां, कबाब, बिरयानी और जाने क्या-क्या पकवान सजे हुए हैं। उन्हें देख बेगम ने ज़रा आंखें तरेरी..फिर मौक़े की नज़ाकत भांपते हुए बोलीं “जल्द हाथ मुंह धो आओ, तब तक मैं मेज़ पे खाना परोस रही हूं”…

दावत ज़ोरों पर है, खाने के स्वाद का तो ख़ैर कहना ही क्या, लेकिन जो लज़्ज़त आज की शाम में है उसने अच्छे मियां को भीतर तक सराबोर कर दिया है। बेगम साहिबा ने न सिर्फ उनकी बात रख ली, बल्कि दोस्तों के सामने उनकी इज़्ज़त भी चार गुना बढ़ा दी है…अच्छे मियां को अब दावत ख़त्म होने का इंतज़ार है, वो बेगम का हाथ पकड़कर उन्हें शुक्रिया कहना चाहते हैं, हाथ पकड़कर नहीं बल्कि हाथ चूमकर….


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