इन सीटों पर सबसे ज्यादा हावी रहा एट्रोसिटी एक्ट और आरक्षण का मुद्दा, BJP को हुआ नुकसान

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भोपाल

मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में भितरघातियों और एंटी इनकमबेंसी के साथ भाजपा का सबसे बड़ा हार का कारण एट्रोसिटी एक्ट और आरक्षण रहा। इन दोनों मुद्दों की वजह से ग्वालियर-चंबल संभाग में कांग्रेस अपनी धाक जमाने में कामयाब हुई और सर्वणों की नाराजगी के चलते भाजपा को करीब 13 सीटों का नुकसान झेलना पड़ा। चुनाव के शुरुआती दिनों से ही इन संभाग में प्रदेश के बाकी हिस्सों की तुलना में ये मुद्दे ज्यादा हावी रहे।जो कही ना कही बीजेपी की पराजय का कारण बने। हालांकि इस बात को भाजपा मंत्रियों ने भी सहज रुप से स्वीकार किया है।

दरअसल, बीते दो चुनाव में इस इलाके पर भाजपा का दबदबा रहा है। पिछले चुनाव में ग्वालियर-चंबल संभाग के आठ जिलों की 34 विधानसभा सीटों से 20 पर भाजपा का कब्जा रहा था। लेकिन इस बार केवल सात ही सीटे हिस्से में आई। वही कांग्रेस ने 12 से बढ़ाकर 26 सीटों पर अपना दबदबा बनाने में कामयाब रही।2013 में भाजपा ने मुरैना की चार सीटों पर कब्जा किया था, जो इस बार पार्टी से छिन गईं। जिले की सभी छह सीटें कांग्रेस के खाते में गई हैं। जबकि भिंड जिले की पांच में से तीन सीटें कांग्रेस ने जीती हैं। बंद का सबसे ज्यादा असर ग्वालियर जिले में देखा गया था। यहां की छह सीटों में से पांच सीट कांग्रेस ने हासिल की। जबकि भाजपा सिर्फ एक सीट बचाने में सफल रही है। शिवपुरी की पांच में से तीन सीटें कांग्रेस को मिली हैं।इसके साथ ही। गुना की चार में से तीन सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशी जीते हैं। जबकि अशोक नगर की तीनों सीटें कांग्रेस के खाते में गई हैं।हालांकि श्योपुर की दोनों सीटों पर पार्टियों किसी को नुकसान नही हुआ।यहां दोनों ने ही एक एक सीटे जीते लेकिन अदला-बदली कर। जो सीट पिछली बार भाजपा के पास थी। इस बार कांग्रेस ने जीती हैं। जबकि दतिया की तीनों सीटों में से भाजपा सिर्फ एक सीट बचा पाई है। वही मालवा में किसान आंदोलन होने के बावजूद सीटों पर कोई असर नही पड़ा।

इन सीटों पर ज्यादा नुकसान

मुरैना जिला

पिछले चुनाव में मुरैना जिले की छह में से चार सीटों पर भाजपा और दो पर बसपा थी। लेकिन इस बार सभी छह सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया है। अंबाह और दिमनी सीट बसपा के कब्जे में थी लेकिन इस बार इन दोनों सीटों पर कांग्रेस आगे रही। अंबाह सीट से सपाक्स से चुनाव लड़ रहीं नेहा किन्नर दूसरे नंबर पर और भाजपा के गब्बर सिंह तीसरे नंबर पर रहे। मुरैना से मंत्री रुस्तम सिंह चुनाव हार गए हैं। 

भिंड जिला

जिले की पांच में से मेहगांव और भिंड सीट पर भाजपा काबिज थी, लेकिन यह सीटें उससे छिन गई हैं। भिंड सीट पर पहली बार बसपा ने जीत दर्ज की है। लहार में डॉ. गोविंद सिंह ने जीत के करीब है। अटेर सीट पर कांग्रेस और भाजपा में कड़ी टक्कर है। गोहद में मंत्री लाल सिंह आर्य को कांग्रेस के रणवीर जाटव ने बड़े अंतर से शिकस्त दी है। 


शिवपुरी जिला

यहां पर पांच में से शिवपुरी और पोहरी छोड़कर शेष तीन (कोलारस, करैरा और पिछोर) पर कांग्रेस काबिज थी। इस बार शिवपुरी सीट पर यशोधरा राजे सिंधिया ने बड़ी जीत दर्ज की है। कोलारस में भी भाजपा 720 वोट से जीत गई है। यह सीट कांग्रेस के पास थी। करैरा में कांग्रेस के नए चेहरे जसवंत जाटव जीत गए हैं। पोहरी में कांग्रेस के सुरेश राठखेड़ा ने दस साल से काबिज भाजपा से सीट छीन ली है। पिछोर में कांग्रेस के केपी सिंह ने अंतत: अपना किला बचा लिया। 


दतिया जिला

जिले की तीनों सीटों पर भाजपा काबिज थी। लेकिन सेंवढ़ा और भांडेर में कांग्रेस ने बड़े अंतर से हराकर भाजपा से यह सीटें छीन ली हैं। दतिया विस सीट को डॉ. नरोत्तम मिश्रा ने बड़ी मुश्किल से बचाया। आखिरी राउंड में मिश्रा करीब ढाई हजार वोटों से जीत सके। 

श्योपुर जिला

यहां की दो सीटों में से श्योपुर में भाजपा और विजयपुर में कांग्रेस काबिज थी। यहां पर अदला-बदली हो गई है। श्योपुर में भाजपा को बड़े अंतर से हार का सामना करना पड़ा। विजयपुर में भाजपा के सीताराम आदिवासी ने कांग्रेस के रामनिवास रावत से सीट छीन ली है।


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