भोपाल। कमलनाथ कैबिनेट द्वारा अधिसूचित क्षेत्रों में डायवर्सन को लेकर लिए गए फैसले का भाजपा ने विरोध कियाहै। आदिवासी क्षेत्रों में डायवर्सन बंधन को खत्म कर गैर आदिवासियों को अधिकार देने के कमलनाथ सरकार के फैसले से आदिवासियों के अधिकारों का हनन होगा और प्रदेश के आदिवासी बहुल क्षेत्र बर्बाद हो जाएंगे। जल, जंगल और जमीन आदिवासियों की पहचान है, लेकिन कमलनाथ सरकार के इस निर्णय से आदिवासियों की यह पहचान खतरे में पड़ जाएगी।
केन्द्रीय मंत्री फग्गनसिंह कुलस्ते, पार्टी के प्रदेश उपाध्यक्ष रामलाल रौतेल, अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष व सांसद गजेन्द्र सिंह पटेल एवं सांसद जीएस डामोर ने कमलनाथ कैबिनेट द्वारा भू-राजस्व संहिता 1959 की धारा 165 और 172 के भाग विलोपित कर आदिवासी क्षेत्रों में गैर आदिवासियों को जमीन के डायवर्सन का अधिकार दिये जाने पर खुलकर विरोध किया है।
आदिवासी नेताओं ने कहा कि मध्यप्रदेश में 11 जिले आदिवासी बहुल हैं। आदिवासियों की संस्कृति और पर्यावरण की रक्षा करना हम सबकी जिम्मेदारी है। पर्यावरण पर बढ़ रहे खतरे के मद्देनजर हमें सचेत होकर वन संपदा से भरे आदिवासी बहुल क्षेत्रों का संरक्षण और संवर्धन करना चाहिए। लेकिन आधुनिकता के नाम पर वनों की जगह सीमेंट-कॉक्रीट के जंगल खड़े हो रहे हैं। ऐसे में सरकार की पहली प्राथमिकता इन क्षेत्रों के संरक्षण की होनी चाहिए, लेकिन कमलनाथ सरकार इन क्षेत्रों को बर्बाद करने वाले निर्णय ले रही है। उन्होंने कहा कि आदिवासी क्षेत्रों में गैर आदिवासियों को जमीन के डायवर्सन का अधिकार देकर सरकार आदिवासी क्षेत्रों के विकास के नाम पर उनके का कुचक्र रच रही है, जो निंदनीय है। उन्होंने कहा कि सरकार को अपने इस निर्णय पर तत्काल रोक लगानी चाहिए।