भोपाल। सूबे में चुनावी बिसात बिछ चुकी है। सरदार किस खेमे का होगा, यह बात अभी भविष्य के गर्भ में है, लेकिन मोहरों के चयन के लिए गुणाभाग शुरु हो गया है। प्रत्याशियों की घोषणा और नामांकन के बाद एक तरफ गली-कूचों में योग्य और अयोग्य की चर्चा छिड़ गई है, वहीं पार्टियों में भी यह मंथन तेज हो गया है कि कौन सा बागी या निर्दलीय उम्मीदवार उनका खेल बिगाड़ सकता है। बुंदेलखंड में सपा और बसपा जैसे दलों ने भाजपा एवं कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ का पांसा फेंका है। रणनीतिक तौर पर इन दोनों ही दलों ने ऐसे प्रत्याशियों को मैदान में उतारा है, जो फतह नहीं तो ज्यादा से ज्यादा वोट तो कबाड़ सकें। इस अंचल में बसपा अनुसूचित जाति-जनजाति और सपा का लक्ष्य पिछड़े वर्ग के अधिक से अधिक वोट लेना है।
मप्र में बुन्देलखंड के आठ जिलों की सीमा उत्तर प्रदेश को छूती हैं। अर्से से तीसरी ताकत बनने के लिए सीटों का संग्रह करने के लिए दोनों ही दल हमेशा एड़ी चोट का जोर लगाते रहे हैं, लेकिन दोनों ही पार्टियों की ताकत मप्र में बढऩे की बजाय कम होती रही है। शुरूआती दौर में धमाकेदार प्रदर्शन करने वाली सपा का पहला विधायक भी बुन्देलखंड से ही चुना गया था। वर्तमान में बसपा के जरूर चार विधायक हों, लेकिन समाजवादी पार्टी पिछले पांच साल से सदन में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए संघर्ष कर रही है। इस बार दोनों ही दलों ने बुन्देलखंड में छतरपुर से लेकर टीकमगढ और पन्ना जिलों में दमदार उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। इनमें ज्यादातर दूसरे दलों से असंतुष्ट ब्राह्मण और पिछड़ा वर्ग के प्रभावी उम्मीदवारों को मौका दिया गया है।
एक प्रकार से बागियों के सहारे चुनावी वैतरणी पार करने की कवायदें की जा रही हैं। यदि बसपा की रणनीति पर गौर करें तो इस बार यूं तो समूचे मप्र में इस पार्टी ने उम्मीदवार मैदान में उतारे, लेकिन बुन्देलखंड में ज्यादातर बागियों को मौका दिया गया है। बसपा ने जतारा में डीपी अहिरवार, पृथ्वीपुर नंदराम कुशवाहा, खरगापुर अजय यादव, जबकि महाराजपुर में राजेश महतों, राजनगर से विनोद पटेल, बिजावर से अनुपमा यादव, छतरपुर से मो. शमीम, मलहरा से हरिकृष्ण द्विवेदी, दमोह कोमल अहिरवार, हटा श्रीमती चंद्रकला और पवई में एडवोकेट सीताराम पटेल को मैदान में उतारा है। जबकि सपा के पहलवानों पर गौर करें तो जगदीश यादव सागर, कुशवाहा चहकेलाल टीकमगढ़, अनीता प्रभुदयाल खटीक जतारा, शिशुपाल यादव पृथ्वीपुर, मीरादीपक यादव निवाड़ी, प्रीतम भुमन यादव महाराजपुर, नितिन चतुर्वेदी, राजश शुक्ला बिजावर, अनुराग वर्धन सिंह पथरिया, भुवन विक्रम पवई, पहलवान दशरथ सिंह पन्ना में ताल ठोक रहे हैं। यह सभी प्रत्याशी जहां जातिगत आधार पर वोट दिलाऊ हैं, वहीं भाजपा और कांग्रेस जैसे दलों के लिए समीकरण बिगाडऩे वाले भी हैं।
हर चुनावों में गूंजा सामंतवाद का मुद्दा
आजादी के बाद से ही बुन्देलखंड में खासकर चुनावों के समय सामंतवाद का मुद्दा गूंजता रहा है। उमाभारती ने जितने भी चुनाव लड़े। हर सभाओं में वह सामंतवाद के खिलाफ मुखर हुई। पूर्व सांसद स्वर्गीय विद्यावती चतुर्वेदी से लेकर उनके कांग्रेस से निष्कासित पुत्र सत्यव्रत चतुर्वेदी भी चुनावों के समय सामंदवाद पर बोलते रहे हैं, लेकिन यह समस्या आज तक खत्म नहीं हुई। बता दें कि बुंदेलखंड के जिन क्षेत्रों में जातियों की बाहुल्यता है। वहां सामंतवाद हावी रहा है। ऐसे क्षेत्रों में दबे-कुचले लोगों पर जुल्म ज्यादतियां होना, उनकी जमीनों पर जबरन कब्जा करना, बाहुबलियों द्वारा निर्धनों को झूठे केसों में फंसाना अवैध कारोबार जैसी गतिविधियों में इनकी लिप्तता रही है।