भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। भोपाल का मिंटो हॉल अब कुशाभाऊ ठाकरे हॉल के नाम से जाना जाएगा। पांच सितारा कन्वेंशन हॉल को कुशाभाऊ ठाकरे के नाम पर करने की घोषणा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बीजेपी कार्यसमिति की बैठक के दौरान की। मुख्यमंत्री ने कहा हम यहाँ बैठे हैं इसका नाम है मिंटो हॉल। अब आप बताओ ये धरती अपनी, ये मिट्टी अपनी, ये पत्थर अपने, ये गिट्टी अपनी, ये चूना अपना, ये गारा अपना, ये भवन अपना, बनाने वाले मजदूर अपने, ये पसीना अपना और नाम मिंटो का। इस विधानसभा भवन में कई लोग बैठे थे,उन्हें यहां तक और लोकसभा तक पहुंचाने वाले कुशाभाऊ ठाकरे हैं, जिनने ये नेता गढ़े, जिनने ये कार्यकर्ता बनाये, जिनने पूरे मध्यप्रदेश में वट वृक्ष के रूप में भारतीय जनता पार्टी को खड़ा किया इसलिए मिंटो हाल का नाम कुशाभाऊ ठाकरे जी के नाम पर रखा जाएगा।
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मध्यप्रदेश में इन दिनों नाम बदलने की कवायद चल रही है। सबसे पहले हबीबगंज रेलवे स्टेशन का नाम रानी कमलापति स्टेशन रखा गया। फिर मेट्रो स्टेशन का नाम रानी कमलापति के नाम पर रखने की घोषणा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने की। इंदौर के दो स्थानों के नाम टंट्या भील के नाम रखने की घोषणा हो गयी और अब पांच सितारा सुविधाओं वाला मिंटो हॉल इस श्रेणी में शामिल हो गया है।
पितृ पुरूष कुशाभाऊ ठाकरे
भाजपा के पितृ पुरूष कुशाभाऊ ठाकरे का जन्म 15 अगस्त 1922 को मध्य प्रदेश स्थित धार में हुआ था। इनके पिता का नाम सुंदर राव श्रीपति राव ठाकरे और माता का नाम शांता भाई सुंदर राव ठाकरे था। इनकी शिक्षा धार और ग्वालियर में हुई थी। 1942 में संघ का प्रचारक बनने के बाद उन्होंने मध्यप्रदेश के कोने-कोने में निष्ठावान स्वयंसेवकों की सेना खड़ी की। वे कुशल संगठनकर्ता थे।ठाकरे 1956 में मध्य प्रदेश सचिव (संगठन) बने। वे 1967 में भारतीय जन संघ के अखिल भारतीय सचिव बने। आपातकाल के दौरान वे 19 महीने जेल में रहे। 1980 में भाजपा के अखिल भारतीय सचिव बनाए गए। 1986 से 1991 तक वे अखिल भारतीय महासचिव व मध्य प्रदेश के प्रभारी रहे। 1998 में वे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने और इस पद वे 2000 तक रहे। 28 दिसंबर 2003 को उनका देहांत हो गया।
मिंटो हॉल का इतिहास
मिंटो हॉल की नींव 12 नवंबर 1909 को रखी गई थी। साल 1909 में भारत के तात्कालीन वायसराय लॉर्ड मिंटो भोपाल आए। उन्हें उस समय राजभवन में रुकवाया गया था लेकिन वायसराय वहां की व्यवस्था देखकर काफी नाराज हुए। इसे देखते हुए तत्कालीन नवाब सुल्तानजहां बेगम ने आनन फानन में एक हॉल बनवाने का निर्णय लिया और इसकी नींव वायसराय लॉर्ड मिंटो से रखवाई। उन्हीं के नाम पर इस हॉल का नाम मिंटो हॉल रखा गया। इस इमारत को बनने में करीब पच्चीस साल लगे और इस इमारत की संरचना शाहजहां बेगम के बेटे नवाब हमीदुल्ला खान ने पूरी की। इतनी भव्य औऱ सुंदर इमारत के निर्माण में उस समय कुल तीन लाख रूपये लगे थे। जिसके मुख्य आर्किटेक्ट एसी रोवन थे, जिनके द्वारा इस इमारत को आलीशान बनवाया गया।