भोपाल। प्रदेश में एक ओर जहां भ्रष्टों के ठिकानों पर छापामार कार्रवाई हो रही है। वहीं दूसरे ओर राज्य सरकार भ्रष्ट नौकरशाहों पर मेहरबान है। करीब ढाई सैकड़ा से अधिक अधिकारियों के खिलाफ राज्य सरकार ने अभियोजन की स्वीकृति नहीं दी है। इस संबंध में हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है।
प्रदेश के 248 भ्रष्ट आईएएस, आईपीएस और राज्य सेवा के अफसरों पर केस चलाने के लिए अभियोजन स्वीकृति नहीं दिए जाने के मामले में दायर जनहित याचिका पर हाई कोर्ट में सुनवाई हुई। याचिकाकर्ता की दलील थी कि जब प्रशासकीय अफसर ही भ्रष्टाचार के मामलों में फंसा होगा तो वह खुद कैसे अनुमति दे सकेगा। सरकार ढीलपोल कर रही है। कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए सामान्य प्रशासन विभाग के प्रमुख सचिव को 19 सितंबर को उपस्थित होने का अंतिम अवसर दिया है। कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी भी कि इतने केस अभियोजन स्वीकृति न मिलने से अटके हैं। गंभीर मामलों में भी लापरवाही बरती जा रही है।
कई साल पुराने मामले लंबित
पिछले 10-15 साल से कई मामले अभियोजन स्वीकृति नहीं मिलने के कारण अटके हैं। इनमें आय से अधिक संपत्ति, सरकारी धन का दुरुपयोग, सरकारी धन का गबन भी शामिल है। भ्रष्ट अफसरों की सूची में कई आईएएस और आईपीएस अफसर भी शामिल हैं। राज्य सेवा के अफसरों के खिलाफ शिकायत दर्ज होने के बावजूद उन्हें आईएएस अवॉर्ड हो गया और वे कलेक्टर भी बन गए, लेकिन सरकार ने उनके मामलों में स्वीकृति नहीं दी। ज्यादातर मामले लोकायुक्त पुलिस से संबंधित हैं। लोकायुक्त पुलिस ने 10 साल पहले जिन पर कार्रवाई की थी, उनमें भी अब तक अनुमति नहीं मिली है।