भोपाल।
कमलनाथ भले ही प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनाने में कामयाब हो गए हो लेकिन मुश्किलें कम होने का नाम नही ले रही है। टिकट बंटवारा, मंत्रिमंडल विस्तार, विभागों का बंटवारा औऱ बंगलों के वितरण के बाद अब प्रभार वाले जिलों को लेकर मंत्रियों में खींचतान शुरु हो गई है। अधिकतर मंत्री अपने विधानसभा क्षेत्र वाले जिलों का प्रभार मांग रहे हैं। हालांकि पिछली सरकार में मंत्रियों को उनके विधानसभा क्षेत्र वाले जिले नहीं दिए गए थे, लेकिन कांग्रेस सरकार में मंत्रियों ने अपने प्रभार वाले जिलों को लेकर अड़े गए है।
सबसे ज्यादा दिक्कत उन इलाकों की है, जहां एक से ज्यादा मंत्री बने हैं। ऐसे में अब नेताओं के गुटों के बीच टकराव की स्थिति पनपने लगी है। इसे लेकर मुख्यमंत्री कमलनाथ भी संकट में आ गए हैं। यही वजह है कि प्रभार वाले जिले तय होने के बावजूद इसकी सूची जारी नहीं की जा सकी। संभावना जताई जा रही है कि मुख्यमंत्री के भोपाल लौटने के बाद यह सूची जारी होगी।
इन मंत्रियों में मची जिलों को लेकर खींचतान
ग्वालियर– जिले से तीन मंत्री बने हैं। इनमें प्रद्युम्न सिंह तोमर, इमरती देवी और लाखन सिंह यादव हैं। तीनों ही सिंधिया गुट के हैं। इनमें तोमर अपने जिले का प्रभार चाहते हैं।
गुना-जिले से दो मंत्री महेंद्र सिंह सिसौदिया व जयवद्र्धन सिंह हैं। इनमें सिसौदिया सिंधिया गुट से हैं, जबकि जयवद्र्धन पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के बेटे हैं। यहां दोनों ओर से एक-दूसरे पर रजामंदी नहीं होना है।
सागर- में दो मंत्री गोविंद सिंह राजपूत और हर्ष यादव हैं। इनमें गोविंद सिंह राजपूत सागर जिले का प्रभार चाहते हैं। वे सिंधिया गुट से हैं, जबकि हर्ष यादव पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय खेमे से हैं, इसलिए दोनों में तकरार होना है।
जबलपुर– जिले से दो मंत्री तरुण भनोत और लखन घनघोरिया हैं। दोनों ही कमलनाथ खेमे से हैं, इसलिए यहां संतुलन बन सकता है। यदि क्षेत्रीय नेता को प्रभार दिया जाता है, तो तरुण की प्राथमिकता रहेगी।
भोपाल- जिले से आरिफ अकील और पीसी शर्मा मंत्री बने हैं। इन दोनों ही दिग्विजय व कमलनाथ गुट के हैं। दोनों में से अभी किसी ने प्रभारी जिला नहीं मांगा है।
खरगौन– जिले से विजय लक्ष्मी साधौ और सचिन यादव मंत्री बने हैं। साधौ अपने जिले का प्रभार चाहती हैं। यदि क्षेत्रीय नेता को प्रभार देने का फॉर्मूला आता है, तो उनकी ही प्राथमिकता रहेगी।
इंदौर- जिले से जीतू पटवारी और तुलसी सिलावट मंत्री बने हैं। दोनों अलग-अलग गुटों से हैं। जीतू दिग्विजय खेमे के माने जाते हैं, जबकि तुलसी सिंधिया खेमे से हैं। दोनों ही एक-दूसरे पर राजी नहीं होते हैं।