क्या हर विषय पर मजाक किया जा सकता है ? खासकर तब जब विषय देश की सुरक्षा, सम्प्रभुता, आतंकवाद जैसे गंभीर मुद्दों से संबंधित हो। पिछले दिनों पहलगाम आतंकी हमले की जवाबी कार्रवाई में भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को अंजाम दिया। ये हमारी सेना के शौर्य, पराक्रम का एक और उदाहरण है जहां आतंकी ठिकानों को ढेर किया गया। लेकिन इसके बाद ‘सिंदूर’ शब्द को लेकर जिस तरह से कुछ लोगों ने मज़ाक का सिलसिला शुरु किया..वो किसी सूरत हास्य नहीं है बल्कि इस ऑपरेशन को लेकर सस्ता खिलवाड़ है। अफसोस की बात कि इस फेहरिस्त में अब मध्यप्रदेश के एक पूर्व आईपीएस का नाम भी जुड़ गया है।
बेहद ज़िम्मेदार पद से रिटायर हुए संजय कुमार झा लिखते हैं ‘मेरा ऑपरेशन सिंदूर – और 36 सालों से चल रहा छद्म युद्ध’। इस विषय के साथ उन्होंने फेसबुक पर एक पोस्ट लिखी है..जो संभवतः उनके हिसाब से एक व्यंग्य है। लेकिन सवाल ये कि क्या हमारे देश के एक महत्वपूर्ण सैन्य कार्रवाई को दिए गए नाम के साथ ये खिलवाड़ उचित है। क्या हास्य-व्यंग्य की कोई मर्यादा नहीं होती। और क्या एक भूतपूर्व आईपीएस अधिकारी को ये भान नहीं कि किस विषय पर व्यंग्य लिखा जाना चाहिए और किसपर संजीदा रहना चाहिए।

क्या हर बात पर मजाक उचित है?
मध्यप्रदेश पिछले कुछ दिनों से राष्ट्रीय पटल पर चर्चाओं में है। यहां के मंत्रियों की बदज़ुबानी का सिलसिला खत्म ही नहीं हो रहा। एक तरफ विजय शाह कर्नल सोफिया को ‘आतंकियों की बहन’ कहकर संबोधित कर रहे हैं तो दूसरी तरफ उपमुख्यमंत्री जगदीश देवड़ा का कहना है कि पूरा देश और देश की सेना पीएम मोदी के चरणों में नतमस्तक है। लग रहा है जैसे अनर्गल बयानों और बातों की कोई कॉम्पिटिशन चल रही है और इसमें अब एक पूर्व आईपीएस भी शामिल हो गए हैं।
रिटा. आईपीएस ने ऑपरेशन सिंदूर के नाम पर लिखी व्यंग्यात्मक पोस्ट
संजय कुमार झा की फेसबुक वॉल पर आप इसका नमूना देख सकते हैं। भारतीय सेना द्वारा किए गए ‘ऑपरेशन सिंदूर’ को लेकर वे एक व्यंग्य लिखते हैं। और इसमें जिस तरह सिंदूर और शादी को लेकर वर्णन किया गया है..वो कहीं न कहीं आपरेशन सिंदूर की अवमानना करता प्रतीत होता है। क्या ऐसे समय जब देश में इस तरह की कार्रवाई को लेकर एकजुटता और गंभीरता की आवश्यकता है..इस तरह की बातें स्वीकार्य हैं ? क्या सैन्य कार्रवाई को दिए गए नाम की गरिमा के साथ ऐसा खिलवाड़ उचित है ? क्या देश की सेना द्वारा किए गए ऑपरेशन और उसके नाम की मर्यादा का ध्यान रखना हर नागरिक का कर्तव्य नहीं है ? इस व्यंग्य को पढ़कर ऐसे कई सवाल खड़े होते हैं। आइए एक नज़र डालते हैं संजय कुमा झा द्वारा लिखी गई पोस्ट पर।
पढ़िए उनकी पोस्ट
मेरा ऑपरेशन सिंदूर – और 36 सालों से चल रहा छद्म युद्ध
लगभग छतीस साल पहले जैसे ही मैंने सिविल सर्विस की परीक्षा पास की, और मेरी एक नई पहचान बनी , कश्मीर की तरह मैं अचानक अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया
कश्मीर के बारे में जो कहा गया है ‘
गर फिरदौस बर रुए ज़मीं अस्त; हमीं अस्तो, हमीं अस्तो, हमीं अस्त
अर्थात् अगर जमीं पर कहीं स्वर्ग है तो यहीं है यही है
मेरी भी फीलिंग या यों कहें आस पास के लोगों की मेरे प्रति धारणा कुछ ऐसे ही हो गई थी, और मैं virgin कश्मीर की तरह शादी के लिए लड़कीवालों के insurgent स्ट्राइक का शिकार होने लगा l
मैंने अंततः इसे पूर्ण विराम देने के लिए एक ही बार ऑपरेशन सिंदूर प्लान किया और मांग में सिंदूर भरकर इसे सफलता पूर्वक अंजाम भी दे दिया l पराक्रम भाव से मुझे विजयी होने का अहसास हुआ
बस यहीं से नई दिक्कते प्रारंभ हो गई । बाह्य आक्रमण से निपटना तो आसान था, आंतरिक फ्रंट पर प्रतिदिन विरोध शुरू हो गया l मांग भरने के एवज़ में माँगों की लंबी फेहरिस्त मिलने लगी l पूरा ना होने पर कभी हड़ताल, तो कभी बोलचाल बंद तो कभी 370 (498A) की धमकी मिलने लगी l वहाँ तो शिमला समझौता भर हुआ, यहाँ तो शिमला, लेह, गोवा, मुंबई और यूरोप समझौता भी temporary Truce साबित हुआ l अपनी इच्छाओं के राफ़ेल को उड़ान देने के लिए कई बार महँगे पाँच सितारे होटलों के डिनर रनवेका सहारा लेना मज़बूरी हो गई l वाक् मिसाइल तो ज़िंदगी का अहम हिस्सा बन ही चुका है, शब्द ड्रोन भी यदा कदा चलते ही रहते हैं l इस लंबे समय तक चलने वाले छद्म युद्ध का तोड़ एक ही है- स्वामी अनिरुद्धाचार्य द्वारा बताया गया एयर डिफेंस सिस्टम- अपने होठों पर उँगली रखकर निष्णात चुप्पी- सर्वेषा शांति भावतुः l
ऑपरेशन सिंदूर तो एक प्रारम्भ था , अब तो यह निर्बाध अनवरत चल रहा छद्म युद्द जीवन का अहम हिस्सा बन गया है , शांति होने पर असहज अशांति का अहसास होने लगता है l शायद हमारा अस्तित्व ही इससे आच्छादित है l स्थाई हल की तलाश क्यों करें ?
यही तो हमारा जीवन है । साथ जीने की कला सीखें l