हाई कोर्ट का अहम फैसला, रिटायर्ड कर्मचारी को दी बड़ी राहत, पेंशन और एरियर्स भुगतान के आदेश

Pooja Khodani
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Madhya Pradesh High Court : मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने एक बार फिर कर्मचारी के हित में फैसला सुनाया है। जबलपुर हाई कोर्ट की न्यायमूर्ति नंदिता दुबे ने एक पूर्व बैंक मैनेजर को पेंशन एवं एरियर्स का भुगतान करने के आदेश दिए हैं। उन्होंने कहा कि जिस तारीख को मूल दंड दिया गया, संशोधित दंड भी उसी तारीख से माना जाएगा। जबलपुर की यूनियन बैंक से अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त सीनियर मैनेजर अनिंद कुमार सेन की ओर से अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा ने पक्ष रखा।

न्यायमूर्ति नन्दिता दुबे की एकलपीठ ने एक मामले में यूनियन बैंक के अनिवार्य सेवानिवृत्ति प्राप्त सीनियर मैनेजर को मूल दंडादेश की तिथि से पेंशन का भुगतान करने के निर्देश दिए और कहा कि याचिकाकर्ता को पेंशन के एरियर्स का भी ब्याज सहित भुगतान किया जाए। इस बैंक मैनेजर को लोन के एक मामले में अनियमितता के चलते बर्खास्त कर दिया गया था। बाद में दया करते हुए उसे अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त कर दिया गया था।

याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि जब वे ब्रांच मैनेजर थे, तब एक लोन के प्रकरण में अनियमितता के आरोप लगाते हुए विभागीय जांच संस्थित की गई और दिसम्बर 2009 को बर्खास्त कर दिया गया। इसके बाद अपील खारिज होने के बाद उन्होने वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष दया की अपील प्रस्तुत की, जिसके बाद दिसम्बर 2018 को बर्खास्तगी की सजा संशोधित कर अनिवार्य सेवानिवृत्ति में बदल दी गई।

VRS के बाद भी नहीं मिला लाभ

वकील ने अदालत को बताया कि वीआरएस मिलने के बाद याचिकाकर्ता ने जैसे ही पेंशन के लिए आवेदन किया तो उसे निरस्त कर दिया गया। इसके बाद 2020 मे राज्य सरकार द्वारा 1995 से 2010 के बीच अनिवार्य सेवानिवृत्त कर्मचारियों के लिए पेंशन के लिए नया विकल्प लाया, तो कर्मचारी ने इसके तहत आवेदन दिया और यह कह कर खारिज कर दिया गया कि योजना की अवधि के बाद सेवानिवृत्ति हुई।

ब्याज सहित मिलेगी पेंशन

अधिवक्ता मिश्रा ने तर्क दिया कि मूल रूप से बर्खास्तगी का दंड दिसम्बर 2009 को दिया गया, इसे ही संशोधित कर 2018 में अनिवार्य सेवानिवृत्ति किया गया, ऐसे में अनिवार्य सेवानिवृत्ति 2009 से मानी जाएगी। इस पर हाई कोर्ट ने सहमति जताते हुए याचिकाकर्ता को राहत देते हुए उसके हक में फैसला सुनाया और पेंशन और एरियर्स भुगतान के आदेश दिए।


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खबर वह होती है जिसे कोई दबाना चाहता है। बाकी सब विज्ञापन है। मकसद तय करना दम की बात है। मायने यह रखता है कि हम क्या छापते हैं और क्या नहीं छापते। "कलम भी हूँ और कलमकार भी हूँ। खबरों के छपने का आधार भी हूँ।। मैं इस व्यवस्था की भागीदार भी हूँ। इसे बदलने की एक तलबगार भी हूँ।। दिवानी ही नहीं हूँ, दिमागदार भी हूँ। झूठे पर प्रहार, सच्चे की यार भी हूं।।" (पत्रकारिता में 8 वर्षों से सक्रिय, इलेक्ट्रानिक से लेकर डिजिटल मीडिया तक का अनुभव, सीखने की लालसा के साथ राजनैतिक खबरों पर पैनी नजर)

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