भोपाल,हरप्रीत कौर रीन। मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष नरेन्द्र कुमार जैन ने दो मामलों में स्वसंज्ञान लेकर संबंधितों से जवाब मांगा है। पहला मामला स्वास्थ्य केंद्र में डाॅक्टर और एंबुलेन्स न उपलब्ध होने से बच्ची की मौत का है। दरअसल टीकमगढ़ जिले के बड़ागांव धसान थाना क्षेत्र के वार्ड नंबर 8 में रहने वाली डेढ़ वर्षीय बच्ची की बुधवार दोपहर 3 बजे खेलते-खेलते पानी में डूब जाने से मौत हो गई। बच्ची को समय पर इलाज और वाहन नहीं मिलने पर परिवार ने एक बेटी को खो दिया। परिजन बच्ची को लेकर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बडागांव धसान पंहुचे। यहां पर एक भी डाॅक्टर भी नहीं मिला। जिस पर परिजन डाॅक्टर अंकित जैन के रूम पर बच्ची को लेकर पंहुचे। यहां बच्ची को जिला अस्पताल ले जाने की बात कही गई। जब डाॅक्टर से अस्पताल द्वारा साधन उपलब्ध कराने के लिये बोला, तो एक घंटे इंतजार करने की बात कही गई। इस दौरान बच्ची की मौत हो गई। इस घटना पर मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने स्वसंज्ञान लेते हुये संचालक, स्वास्थ्य विभाग, भोपाल तथा मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, टीकमगढ़ से तीन सप्ताह में निम्न बिंदुओं पर तथ्यात्मक प्रतिवेदन मांगा है-किस चिकित्सक की ड्यूटी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र, बड़ागांव में घटना के समय थी,चिकित्सक के उपस्थित ना होने क्या कारण था ,इन बिंदुओं पर जांच कराकर प्रतिवेदन आयोग को प्रेषित करने के निर्देश दिये गये हैं।
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वही दूसरा मामला नाम परिवर्तन से नौ माह से परेशान किसान का है। इस मामलें में शासकीय दस्तावेजों में होने वाली छोटी-छोटी त्रुटियों को सुधरवाने के लिए किसान महीनों तक परेशान होते हैं। वे खेती-किसानी का काम छोड़कर शासकीय कार्यालयों के चक्कर लगाते हैं, लेकिन सुनवाई नहीं होती। ऐसा ही मामला सागर जिले की केसली तहसील में सामने आया है। जहां केवलारीकलां गांव निवासी किसान का नाम राजस्व रिकार्ड में चैनसींग कर दिया गया है। चैनसींग का कहना है कि वे इस त्रुटि को सुधरवाने के लिए नौ महीने से तहसील कार्याल के चक्कर काट रहे हैं। उसे हर बार 15 से 20 दिन में पेशी पर बुलाया जाता है और अगली पेशी दे दी जाती है। नौ माह से केसली तहसील में तीन तहसीलदार बदल चुके हैं, लेकिन उसके नाम की त्रुटि नहीं सुधर पाई है। चैनसींग का कहना है कि सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की टड़ा शाखा में उसके खाते में 19 सितम्बर 2020 को सोयाबीन फसल के नुकसान की बीमा राशि 66 हजार रूपये आयी थी। खसरा बी-1 में हुई गलती के कारण यह राशि आज तक नहीं निकल पाई है। बैंक जब भी जाओ, तो वह भू-राजस्व पुस्तिका व खसरा बी-1 में अलग-अलग नाम होने पर राशि देने से इन्कार कर देते हैं। मामले में स्वसंज्ञान लेकर मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने कलेक्टर सागर से तीन सप्ताह में तथ्यात्मक रिपोर्ट मांगी है।