भोपाल। बीजेपी और शिवराज सिंह के 15 साल के शासन के प्रति उपजी एंटी इनकंबेंसी और कांग्रेस के इस नारे कि ‘वक्त है बदलाव का’ ने मध्य प्रदेश में सत्ता परिवर्तन तो कर दिया लेकिन हकीकत में ऐसा लग ही नहीं रहा कि कुछ बदल गया हो। शिवराज सिंह चौहान के शासन से वल्लभ भवन की अधिकांशत ब्यूरोक्रेसी भी इसलिए नाराज थी कि सत्ता के इर्द-गिर्द पिछले 13 सालों से जिन चंद आईएएस अधिकारियो ने शिवराज सिंह चौहान को घेर रखा था वही प्रदेश में शक्ति का केंद्र बन गया था। उम्मीद इस बात की थी कि सत्ता परिवर्तन होने के साथ ही इन अधिकारियों के स्थान पर लंबे समय से लूप लाइन में पड़े कुछ ईमानदार अधिकारियों की नियुक्ति की जाएगी। लेकिन इतिहास में शायद ही पहली बार हुआ कि मुख्यमंत्री का प्रमुख सचिव वही अधिकारी रहा जो पूर्व मुख्यमंत्री का था।
इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री के दो अन्य प्रमुख सचिवों को अच्छे विभाग देकर एक बार फिर कमलनाथ ने यह जता दिया कि वास्तव में कुछ नहीं बदला है। मुख्यमंत्री सचिवालय में भी एक बार फिर शिवराज बिग्रेड का स्थान छिंदवाड़ा बिग्रेड ने ले लिया और शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री काल में मुख्य सचिव रह चुके रिटायर अधिकारी के इशारे पर सारी पदस्थापनाये होने लगी। शिवराज सरकार पर भ्रष्टाचार के तमाम आरोप लगाकर सत्ता में आई कमलनाथ सरकार ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद जन आयोग बना कर तमाम भ्रष्टाचारो की जांच करेगी लेकिन जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप हैं यदि वही मुख्य पदों पर आसीन रहेंगे तो फिर यह वचन भी कैसे अंजाम चढ पाएगा
यह सोचने वाली बात है। दरअसल बमुश्किल बहुमत हासिल कर पाई कमलनाथ सरकार के सामने संकट यह है कि कैसे कांग्रेस के ही विभिन्न गुटों में वह संतुलन साध पाये और इसीलिए मुख्यमंत्री होने के बावजूद कमलनाथ को मंत्रियों के विभाग बांटने में 4 दिन लग गए जो यह बताता है कि प्रदेश में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा।