‘किस्साए अच्छे ख़ां, उर्फ़ इंदौरी नमकीन का कारनामा’

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एक है अच्छे ख़ां..यूं हम बचपन से उन्हें अच्छे मियां बोलते आए हैं। ये गजब कैरेक्टर हैं, मन हुआ तो पांच वक़्त के नमाज़ी हो जाएंगे, न हुआ तो पांडेजी के साथ बैठ पूरा दिन बतकही में निकाल दें। यूं अल्लाह मियां पर यक़ीन बहुत है, लेकिन डरते नहीं उनसे। कहते हैं ख़ुदा को महबूब मान लिया है, अब या तो महबूब से इश्क़ कर लें या डर लें..तो हमने इश्क़ चुन लिया। गोया इस इश्क़ के नाम पर ये ख़ूब मनमर्ज़ियां करते हैं…

तो हुआ यूं कि एक दफ़ा किसी बात पर अच्छे मियां की बेग़म हो गई खफ़ा, बड़ा रोना धोना मचा, खूब चिल्लपों हुई और बेग़म ने अपना बिस्तरा बांध लिया मायके जाने को। पहले तो अच्छे मियां हल्के में लेते रहे, लेकिन जब बेग़म ने पड़ोस के गुड्डन को स्कूटर से बस स्टैंड छोड़ आने को कहा तो अच्छे मियां के पसीने छूट गए। बाक़ी सब तो मियां जी संभाल लेते लेकिन बीवी दो दिन को मैके चली जाए तो उनके खाने पीने की बड़ी दिक़्क़त हो जाती। पड़ोसी कुछ दे भी जाए तो ज़बान को ज़ायका नहीं मिलता। और यहां तो बेग़म नाराज़ होकर जा रही है, मतलब महीने दु महीने की छुट्टी। अच्छे मियां को दिन में तारे नज़र आने लगे…


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