आईएएस अशोक शाह के बयान पर कंट्रोवर्सी: कुसुम मेहंदेले बोली “हर मां बच्चे को दूध पिलाती है”

भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। महिला बाल विकास विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव अशोक शाह के बयान पर मचा बवाल थमने का नाम नहीं ले रहा है। अब मध्य प्रदेश की वरिष्ठ भाजपा नेता और प्रदेश सरकार में महिला एवं बाल विकास मंत्री रही सुश्री कुसुम मेहंदेले का बयान सामने आया है। मेहंदेले का कहना है कि ऐसी कोई मां नहीं जो अपनी बच्ची को दूध नहीं पिलाती हो।

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अपने एक बयान को लेकर विवादों में घिरे आईएएस अधिकारी अशोक साहब बीजेपी के निशाने पर भी आ गए हैं। कल ही बीजेपी की शीर्ष नेता और पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती ने अशोक शाह के इस बयान को लेकर कड़ी आपत्ति जताई थी और खुद मुख्यमंत्री से इस विषय को लेकर बात की थी। दरअसल भोपाल में लाडली लक्ष्मी 2.0 कार्यक्रम के दौरान अशोक शाह ने मुख्यमंत्री की उपस्थिति में कहा था कि प्रदेशभर में पहले 15% महिलाएं ही अपनी नवजात बच्चियों को दूध पिलाती थी। अब ये आंकड़ा सरकारी योजनाओं के चलते 42 प्रतिशत हो गया है। उमा भारती ने इस बयान को बेहद असंवेदनशील और अपमानजनक बताया था। वहीं कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर अशोक शाह की जमकर क्लास ली थी और उन्हें बर्खास्त करने की मांग तक कर डाली थी। अब मध्यप्रदेश की महिला बाल विकास मंत्री रहे कुसुम मेहंदेले का बयान सामने आया है।कुसुम ने कहा है “यह हिंदुस्तान की परंपरा रही है कि किसी भी जाति या धर्म की महिला हो, वह हर हाल में अपने बच्चों को दूध पिलाती है चाहे वह बेटा हो या बेटी। एक फ़ीसदी महिलाएं अगर स्तनपान नहीं करातीं हैं तो इसके पीछे कोई शारीरिक असमर्थता या बीमारी होती है।”


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Gaurav Sharma

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।