Marxist Communist Party alleges on fertilizer crisis : ‘रबी की फसलों की बुआई का जब सबसे महत्वपूर्ण समय निकल चुका है, तब भी प्रदेश में 63 लाख हेक्टेयर भूमि पर बोवनी होना अभी बाकी है। मगर देर से हो रही इस बोवनी के लिए किसान नहीं बल्कि सरकार की कृषि और किसान विरोधी नीतियां व प्रशासन और कालाबाजारियो का गठजोड़ ही जिम्मेदार है।’ ये कहना है मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी के राज्य सचिव जसविंदर सिंह का।
सरकार पर कृषि और किसान विरोधी होने का आरोप
माकपा का ये बयान जारी करते हुए उन्होने कहा कि इस साल रबी की फसल की बोवनी का 139.9 हेक्टेयर का लक्ष्य तय किया था, जबकि अभी तक सिर्फ 77 लाख हेक्टेयर की ही बोवनी हो पाई है, 63 लाख हेक्टेयर भूमि पर खाद उपलब्ध न होने के कारण बोवनी नहीं हो पाई है। यह कुल भूमि का 48 फीसद है। बता दें कि सिंचित क्षेत्रों में गेहूं की बोवनी का समय 25 नवंबर तक होता है, इसके बाद बोए गए गेहूं की पैदावार 2 से 8 क्विंटल प्रति एकड़ गिर जाती है।
कालाबाजारी पर रोक लगाने की मांग
जसविंदर सिंह ने कहा है कि डीएपी खाद के बदले किसानों को अब एनपीके खाद उठाने के लिए कहा जा रहा है। इसके पीछे भी मोदी सरकार की गहरी साजिश है। एक तो डीएपी का खाद का बोरा 1350 रुपए का आता है जबकि एनपीके का बोरा 1600 रुपए का आता है। दूसरा डीएपी खाद पर सरकार को सबसे अधिक सब्सिडी देनी पड़ती है। इसकी खपत को खत्म कर सरकार सब्सिडी को खत्म करना चाहती है। उन्होने कहा कि सरकार ने इसी साल सुपर फास्फेट सहित फास्फेट की सारी किस्मों पर 150 रुपए प्रति बैग की वृद्धि की है। पोटेशियम खाद का बोरा तो 1800 रुपए तक का हो गया है। महंगाई के साथ ही किसानों के सामने यह संकट भी है कि भूमि का संतुलन बनाए रखने के लिए उन्हें यह जानकारी ही नहीं है कि उन्हें इसके लिए कौन सा खाद डालना है। प्रधानमंत्री सोयल हेल्थ कार्ड एक और जुमला बन कर रह गया है, या तो भूमि की जांच नहीं होती है और हो भी जाती है तो सालों तक उसकी रिपोर्ट नहीं मिलती है। माकपा नेता ने कहा है कि यह दोनों ही साजिशें कृषि संकट को बढ़ाने और उनकी जमीनें कॉरपोरट कंपनियों को सौंपने की साजिश का हिस्सा हैं। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी ने किसानों को तुरंत खाद उपलब्ध कराने की मांग करते हुए कहा है कि प्रशासन को खाद की उपलब्धता सुनिश्चित करने के साथ ही कालाबाजारी पर रोक लगाने की भी मांग की है।