MP News : आदिवासी जननायक को नमन, टंट्या मामा के बलिदान दिवस पर पातालपानी जाएंगे शिवराज

भोपाल डेस्क रिपोर्ट। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 4 दिसंबर को पातालपानी जाएंगे। स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के जननायक क्रांतिकारी बलिदानी टंट्या मामा के बलिदान दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में मुख्यमंत्री भाग लेंगे। सीएम ने खुद ट्वीट कर यह जानकारी दी है।

बिरसा मुंडा की गौरव गाथा को देशभर में फैलाने के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान एक और आदिवासी जननायक टंट्या मामा के बलिदान दिवस पर पातालपानी जा रहे हैं। जनजाति गौरव स्वतंत्रता आंदोलन के महानायक क्रांतिकारी बलिदानी टंट्या मामा भील का 4 दिसंबर को बलिदान दिवस है। मुख्यमंत्री ने खुद ट्वीट करके यह जानकारी दी है।

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स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में अमिट अध्याय बन चुके आदि विद्रोही टंट्या भील को आदिवासी भगवान मानते हैं। टंट्या भील ने ब्रिटिश हुकूमत द्वारा ग्रामीण आदिवासी जनता के साथ शोषण और उनके मौलिक अधिकारों के साथ हो रहे अन्याय अत्याचार की खिलाफत की थी।

टंट्या भील का जन्म 1840 में खंडवा में हुआ था और पातालपानी में उनकी समाधि है। टंट्या भील की लोकप्रियता का यह आलम था कि वह अंग्रेजों को लूटते थे और गरीब आदिवासियों में सामान बांट दिया करते थे। इस कारण अंग्रेजों ने इंडियन रोबिन हुड कहते थे। आदिवासी मानते हैं कि टंट्या भील को एक अलौकिक शक्ति प्राप्त थी और इसके कारण वे एक साथ कई जगह पर उपस्थित भी पाए जाते थे। उन्हें जानवरों की भाषा भी आती थी। उन्हें तात्या टोपे ने गुरिल्ला युद्ध में पारंगत बनाया था। अंग्रेजों की शोषण नीति के खिलाफ आवाज उठाने के कारण भी गरीब आदिवासियों में मसीहा के रूप में पूजे जाते थे । आदिवासी समुदाय के बीच में मामा के रूप में लोकप्रिय थे।


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Gaurav Sharma

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पत्रकारिता पेशा नहीं ज़िम्मेदारी है और जब बात ज़िम्मेदारी की होती है तब ईमानदारी और जवाबदारी से दूरी बनाना असंभव हो जाता है। एक पत्रकार की जवाबदारी समाज के लिए उतनी ही आवश्यक होती है जितनी परिवार के लिए क्यूंकि समाज का हर वर्ग हर शख्स पत्रकार पर आंख बंद कर उस तरह ही भरोसा करता है जितना एक परिवार का सदस्य करता है। पत्रकारिता मनुष्य को समाज के हर परिवेश हर घटनाक्रम से अवगत कराती है, यह इतनी व्यापक है कि जीवन का कोई भी पक्ष इससे अछूता नहीं है। यह समाज की विकृतियों का पर्दाफाश कर उन्हे नष्ट करने में हर वर्ग की मदद करती है। इसलिए पं. कमलापति त्रिपाठी ने लिखा है कि," ज्ञान और विज्ञान, दर्शन और साहित्य, कला और कारीगरी, राजनीति और अर्थनीति, समाजशास्त्र और इतिहास, संघर्ष तथा क्रांति, उत्थान और पतन, निर्माण और विनाश, प्रगति और दुर्गति के छोटे-बड़े प्रवाहों को प्रतिबिंबित करने में पत्रकारिता के समान दूसरा कौन सफल हो सकता है।