International day of world indigenous people : आशा पारस फॉर पीस एंड हारमनी फाउंडेशन एवं वेद फाउंडेशन द्वारा “इंटरनेशनल डे ऑफ वर्ल्ड इंडिजीनियस पीपल” पर राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस दौरान ‘आदिवासी विकास” विषय पर वक्ताओं ने अपने विचार रखे। प्रो. रमेश मकवाना ने कहा कि सरकारी योजनाओं का लाभ लेने के बाद अपने देश की ही सेवा ही प्राथमिकता होनी चाहिए वहीं डॉ. लक्ष्मीनारायण पयोधि ने कहाकि आदिवासी विकास के लिए शिक्षा में उनकी भाषा और संस्कृति को जोड़कर कार्य किए जाने चाहिए। प्रो. आशा शुक्ला ने अपनी बात रखते हुए कहा कि हम सब भारतवासी भीतर से मूलतः आदिवासी ही हैं।
अंतर्राष्ट्रीय आदिवासी दिवस पर आदिवासी विकास की वैचारिक चर्चा एक मानवीय संवेदना और नैतिकता का परिचायक है। यह बात कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. रमेश मकवाना, प्रमुख समाजशास्त्र विभाग, सरदार पटेल विश्वविद्यालय, गुजरात द्वारा कही गई। उन्होंने कहा कि आज पंच से लेकर सरपंच, डॉक्टर, इंजीनियर, वकील आदिवासी बन रहे हैं और यहाँ तक कि देश के शीर्ष राष्ट्रपति के पद को भी सुशोभित कर रहे हैं। लेकिन फिर भी समुदाय के आगे कई चुनौतियाँ हैं जिनके कारण उनका सर्वांगीण विकास नहीं हो पा रहा है जिसमें माइग्रेट, ड्रॉप आउट दर जैसी कई बड़ी समस्या हैं। प्रो. मकवाना ने अपने वक्तव्य में आदिवासी भोगोलिक वर्गीकरण, जनसंख्या प्रतिशत, शैक्षणिक, आर्थिक दर पर विस्तार से जानकारी प्रदान करते हुए काका कालेलकर, एलविन कमेटी पर भी प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि हमें सरकार की योजनाओं का लाभ लेकर अपने देश और गांव की सेवा को प्राथमिकता देना चाहिए।
डॉ. लक्ष्मीनारायण पयोधि ने मुख्य वक्तव्य प्रदान करते हुए कहा कि किसी भी समाज के सम्पूर्ण विकास को उनके शैक्षणिक, सामाजिक, आर्थिक विकास से जोड़कर देखा जाता है। पहले और आज की स्थिति में आदिवासी विकास में बढ़ोत्तरी हुई है फिर भी हमे शिक्षा में उनकी भाषा और संस्कृति को जोड़कर कार्य किए जाना चाहिए। अतिरिक्त पुलिस उपायुक्त सीमा अलावा द्वारा अपने वक्तव्य में कहा कि आदिवासी समुदाय कि संस्कृति त्योहारों को गलत तरीके से प्रचारित किया जाता रहा है इसे सुधारने कि जरूरत है। उन्होंने डायन प्रथा पर अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि इस तरह की कुप्रथाओं को हम सभी के सामाजिक सहयोग से खत्म किया जा सकता है। डॉ. रामशंकर, चीफ एडिटर, द एशियन थिंकर (जर्नल) द्वारा अपने वक्तव्य में कहा कि हमे आदिवासी समाज कि संस्कृति और परंपराओं को संरक्षित करने की आवश्यकता है। भारत सरकार द्वारा आदिवासी विकास के लिए अनेक कल्याणकारी योजनाएं संचालित की जा रही हैं उन्हें जनजाति समाज के बीच में ले जाने की जरूरत है।
प्रो.आशा शुक्ला पूर्व कुलपति और निदेशक आशा पारस फॉर पीस एंड हारमनी फाउंडेशन द्वारा अध्यक्षीय उद्बोधन में फाउंडेशन के व्यापक कार्यों और उद्देश्यों से अवगत कराया और कहा कि हम सभी भारतवासी भीतर से मूलतः आदिवासी ही हैं। कार्यक्रम में स्वागत एवं प्रस्तावना वक्तव्य डॉ. जया फूकन, फैकल्टी, बरकतुल्ला यूनिवर्सिटी, भोपाल द्वारा प्रस्तुत किया गया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. मनोज कुमार गुप्ता, शोध अधिकारी, ब्राउस, महू द्वारा प्रदान किया और कार्यक्रम का संचालन लव चावड़ीकर, प्रबंधक आशा पारस फॉर पीस एंड हारमनी फाउंडेशन द्वारा किया गया। यहां 7 दिवसीय शार्ट टर्म प्रोग्राम ‘रिसर्च मेथोडोलॉजी एन्ड स्टैटिस्टिकल एनालिसिस’ में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले 5 प्रतिभागियों को आशा पारस रिसर्च एक्सीलेंस और वेद रिसर्च एक्ससिलेन्स अवार्ड का प्रमाणपत्र देकर सम्मनित भी किया गया। इस अवसर पर देश- विदेश के लोग कार्यक्रम से जुड़े रहे।