भोपाल। शिवराज सरकार ने डेढ़ साल पहले रेत खदान संचालन का अधिकार ग्राम पंचायतों का सौंपा था। कमलनाथ सरकार नई रेत नीति में संशोधन करके रेत खदानों को ठेके पर देने की तैयारी कर रही है। बारिश के बाद प्रदेश में रेत खदानों की नीलामी की जाएगी। नई रेत नीति में यह मसौदा तैयार किया गया है। फिलहाल नई रेत नीति को मुख्यमंत्री कमलनाथ ने मंजूरी नहीं दी है। संभवत: लोकसभा चुनाव बाद नीति पर मुहर लग जाएगी।
खनिज विभाग के अनुसार ग्राम पंचायतों को रेत खदानें सौंपने से राज्य सरकार को वित्तीय वर्ष 2018-19 में 250 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है। इसकी भरपाई के लिए राज्य सरकार नई रेत नीति ला रही है। इसमें रेत खदानें एक बार फिर ठेकेदारों के आधिपत्य में चली जाएंगी। हालांकि नीति में ग्राम पंचायतों का भी ध्यान रखा गया है। सरकार ने राजस्थान मॉडल को आत्मसात करते हुए नई नीति तैयार की है। हालांकि कमलनाथ सरकार ने आते ही रेत नीति की रणनीति पर काम शुरू कर दिया था, लेकिन लोकसभा चुनाव की वजह से नीति में बदलाव नहीं किया गया था।
कमेटी ने तैयार की नीति
रेत नीति के लिए मंत्रिमंडल की पांच सदस्यीय कमेटी बनाई गई थी। कमेटी ने बैठकें कर रेत नीति के मसौदे को अंतिम रूप दिया है। कमेटी के सदस्यों का मानना है कि नई रेत नीति लागू होने पर रेत खनन से प्रदेश की वार्षिक आय पांच गुना (250 से 1250 करोड़ रुपए तक) बढ़ जाएगी। कमेटी ने खनिज विभाग के लिए यही लक्ष्य भी तय किया है। उल्लेखनीय है कि प्रदेश की पिछली भाजपा सरकार बीते वित्तीय वर्ष 2017-18 में ही रेत नीति लाई थी।
कमेटी में यह मंत्री
नई रेत नीति के लिए गठित की गई मंत्रिमंडल की पांच सदस्यीय कमेटी में खनिज मंत्री प्रदीप जायसवाल, वाणिज्यिक कर मंत्री बृजेंद्र सिंह राठौर, वित्त मंत्री तरुण भनोत, स्वास्थ्य मंत्री तुलसी सिलावट, नर्मदाघाटी विकास एवं पर्यटन मंत्री सुरेंद्र सिंह हनी बघेल और पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री कमलेश्वर पटेल को रखा गया है।
सात राज्यों की नीति का अध्ययन
मंत्रिमंडल सदस्यों की कमेटी ने गुजरात, तेलंगाना, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तमिलनाडु की रेत नीतियों का अध्ययन किया है। इनमें से राजस्थान की नीति से कमेटी सहमत है।