भीषण गर्मी से जूझ रहे प्रदेशवासी मानसून का इन्तजार कर रहे हैं| पिछले कुछ सालों से लगातार कम हो रही बारिश से परेशान किसान इस बार अच्छी बारिश के लिए प्रार्थना कर रहे हैं| वहीं तरह तरह के संकेतों से जोड़कर अच्छी बारिश का अनुमान भी लगा रहा है| सदियों से किसान प्रकृति के नियमों का संदेश मानकर अनुमान लगाते रहे हैं। ऐसे अनुमानों में टिटहरी (Sandpiper) के अंडे देखकर बारिश के सीजन का अनुमान लगाया जाता है। प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में यह मान्यता खास तौर पर मानी जाती है, इसके अलावा ग्वालियर चम्बल समेत कई इलाकों में भी इस तरह की मान्यताओं पर आस्था रखते हुए लोग बारिश का अनुमान लगाते हैं| इसके अलावा भी ग्रामीण क्षेत्रों में लोग कई तरह के टोटके भी अच्छी बारिश के लिए करते हुए क्यूंकि बिन पानी सब सून है, सबसे ज्यादा बारिश न होने का नुक्सान किसानों को ही झेलना होता है|
ऐसी मान्यता है कि जितने अंडे टिटहरी देती है, उतने माह बारिश होती है। प्रदेश के दमोह से जानकारी सामने आई है कि इस बार सेंट्रल स्कूल के ग्राउंड पर टिटहरी ने चार अंडे दिए हैं। इससे अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार चार माह तक बंपर बारिश होगी। इसके अलावा भी कई इलाकों से चार अंडे की जानकारी सामने आ रही है| सरकारी स्कूल के गार्ड ने बताया कि ग्राउंड में तीन जगह टिटहरी पक्षी ने अंडे दिए हैं, जिनमें एक जगह तो बच्चे हो गए हैं, बाकी दो जगह अभी अंडे रखे ���ुए हैं। गर्मी अधिक पड़ने की वजह से भी टिटहरी अंडों के आसपास ही रहती है। जैसे ही ठंडक होती है, ग्राउंड में घूमने लगती है। उसने बताया कि इस बार अच्छी बारिश की संभावना है। स्थानीय लोगों ने बताया कि यह परंपरा लंबे समय से चली आ रही है। खासकर किसान अंडों की संख्या के आधार पर बारिश होने का अंदाजा लगाते हैं।
ऊंचाई पर दिए अंडे तो अच्छी बारिश
अंडो की संख्या के साथ ही स्थान का भी इस मान्यता में महत्त्व दिया गया है| टिटहरी अगर ऊंचाई पर अंडे देती है तो उस साल अधिक बारिश होगी, समतल जमीन पर अंडे दिए तो औसत और किसी गड्ढे में टिटहरी के अंडे दिखे तो सूखा पड़ने की भविष्यवाणी कर दी जाती है। वहीं यदि तीन अंडे हों तो तीन माह और चार हों तो चार माह बारिश का अनुमान लगाया जाता है। अंडों का मुंह जमीन की ओर होने पर मूसलाधार बारिश, समतल स्थान पर रखे होने पर औसत बारिश और किसी गड्ढे में अंडे दिए जाने पर सूखा पड़ने का अनुमान लगाया जाता है। हालांकि मौसम विभाग ऐसे अनुमान को नहीं मानता है। उसके हिसाब से तकनीकी के आधार पर जो रिजल्ट आता है, वहीं सही होता है। लेकिन पुराने समय से जब तकनीकी साधन नहीं थे तब से ही ग्रामीण इलाकों में कई मान्यताओं से यह पता लगाया जाता रहा है कि साल में बारिश कैसी होगी| बताया जाता है कि पशु-पक्षी प्रकृति में परिवर्तन के प्रति संवेदनशील होते हैं। उनका आचरण-व्यवहार भी प्रकृति के अनुरूप ही होता है। टिटहरी के अंडों से वर्षा के भविष्यवाणी का यही आधार है।