भोपाल, डेस्क रिपोर्ट। मध्यप्रदेश में एक बार फिर कोयले के संकट और अघोषित बिजली कटौती को लेकर कांग्रेस ने शिवराज सरकार पर हमला बोला है, पूर्व मंत्री जीतू पटवारी ने प्रदेश सरकार को इस बिजली संकट का जिम्मेदार बताया है, उन्होंने कहा कि जनता से हाथ जोड़ कर निवेदन है कि बीजेपी के रामराज्य में, ‘‘रात’’ में 08 घंटे की अघोषित बिजली कटौती का विरोध ना करें क्योंकि, भाजपा ने केवल ‘‘अच्छे दिन’’ का वादा किया था। प्रदेश में बिजली आपूर्ति की बदहाली पर व्यंग्य करते हुए यह बात पूर्व मंत्री एवं विधायक जीतू पटवारी ने आज जारी एक बयान में कही।
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पूर्व मंत्री जीतू पटवारी ने कहा कि मध्यप्रदेश गंभीर बिजली संकट की ओर बढ़ रहा है। मप्र पावर मैनेजमेंट कंपनी ने 22,000 मेगावाट बिजली का एग्रीमेंट किया है, लेकिन प्रदेश में जितनी खपत है, उतनी बिजली भी नहीं आ रही है।
श्री पटवारी ने कहा कि कांग्रेस पार्टी चार बार के अनुभवी मुख्यमंत्री से पूछना चाहती है यह बिजली संकट क्यों है? क्या मई तक बिजली संकट और गहराएगा? यदि हां, तो सरकार ने इसके लिए क्या तैयारी की है? यदि सरकारी सुस्ती जल्दी ही दूर नहीं हुई तो शहरों में भी अघोषित बिजली कटौती होने लगेगी, प्रधानमंत्री के दरबार में हाजिरी लगाने वाले मुख्यमंत्री ने आने वाले बिजली संकट के लिए देश के प्रधान सेवक से क्या मांग की है? जीतू पटवारी ने पूछा कि प्रधानमंत्री कि ‘‘दूरदर्शिता’’ का सबूत यह है कि तापीय बिजली घरों को चलाने के लिए 12 राज्यों में ‘कोयले के कम भंडार’ की स्थिति की वजह से बिजली संकट पैदा हो सकता है। चिंताजनक तथ्य है कि यह संकट पुराना नहीं है बल्कि अक्टूबर 2021 से ही देश के 12 राज्यों में कोयला आपूर्ति अनियमित हो रही है।
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प्रदेश में सिंचाई के साधन बढ़े हैं। जिससे गर्मी में बड़े पैमाने पर सब्जी और उड़द-मूंग की खेती होने लगी है। कोविड काल में दो साल उद्योग-धंधे बंद रहे। इस साल छोटे कुटीर-उद्योग धंधे तेजी से काम कर रहे हैं। प्रदेश तप भी बहुत रहा है। एसी-कूलर का यूज बढ़ गया है। शहर और कस्बों में बिजली की खपत बढ़ गई है। कोरोनाकाल में शहर-कस्बे में बिजनेस एक्टिविटीज बंद थीं। तब भी बिजली की डिमांड गर्मी में 10 हजार मेगावाट से 12 हजार मेगावाट तक पहुंच रही थी। अप्रैल 2021 की बात करें तो डिमांड 10437 मेगावाट थी। अप्रैल 2022 में डिमांड 12200 मेगावाट पहुंच चुकी है। अब कोविड से उबरने पर उद्योग-धंधे फिर शुरू हो चुके हैं। बिजली की डिमांड बढ़ना भी तय था, लेकिन शिवराज सिंह चौहान सरकार इसका अंदाजा ही नहीं लगा सकी। मप्र पावर जनरेटिंग कंपनी को थर्मल प्लांट्स चलाने के लिए रोजाना 12.5 रैक कोयला चाहिए। 8.6 रैक कोयला ही मिल रहा है। औसतन 1 रैक में 4 से 5 हजार मीट्रिक टन कोयला ढुलाई होती है। पूर्व मंत्री जीतू पटवारी ने कहा कि दानवीर भाजपा सरकार ने प्रदेश के हिस्से की 1005 मेगावाट बिजली तो गुजरात और महाराष्ट्र में बांट दी।
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जीतू पटवारी ने कहा कि मध्यप्रदेश में विद्युत ताप गृहों में तीन से चार दिन का कोयला बचा है, जिससे बिजली संकट की स्थिति बन सकती है। रोजाना 58 मीट्रिक टन कोयले की जरूरत है लेकिन अभी 50 हजार मीट्रिक टन की उपलब्धता हो रही है। इससे मध्य प्रदेश कभी भी अंधेरे में डूब सकता है जिसकी आहट का अहसास भी होने लगा है।
आंकड़ों के मुताबिक मध्यप्रदेश में फिलहाल 02 लाख 72 हज़ार टन कोयला बचा हुआ है। इस हिसाब से मध्यप्रदेश में सिर्फ 03 से 04 दिनों तक के लिए ही बिजली उत्पादन हो सकता है। गौरतलब है कि देशभर के लगभग सभी पावर हाउस में कोयले की 33 फीसदी उपलब्धता है जबकि मध्यप्रदेश के चार विद्युत ताप ग्रहों में सिर्फ 13 फीसदी कोयला ही उपलब्ध है।