भोपाल| ई टेंडरिंग की साइट में हुई छेड़छाड़ को लेकर शिकंजा कस गया है, लेकिन गड़बड़ी सामने आने के बाद जांच में देरी और ई टेंडरिंग घोटाले में इतने महीनों बाद एफआईआर पर सवाल खड़े हो रहे हैं| रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी एनके त्रिपाठी ने इस मामले पर तंज कसते हुए ईओडब्ल्यू को दंतविहीन बताया है| उन्होंने कहा है कि ईओडब्ल्यू दंतविहीन है और बिना सत्ता परिवर्तन और मुख्यमंत्री के आदेश बिना कुछ नहीं कर पाता|
दरअसल, बुधवार को प्रदेश की सरकारी जांच एजेंसी आर्थिक अपराध अन्वेषण प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) ने ई-टेंडर घोटाले में एफआईआर दर्ज की है, प्रदेश सरकार के पांच विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों और आठ निजी कंपनियों के संचालकों-मार्केटिंग अधिकारियों सहित अज्ञात नौकरशाहों व राजनीतिज्ञों के खिलाफ धोखाधड़ी और आईटी व भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में कार्रवाई शुरू की है।
यह घोटाला पिछली सरकार में सामने आया था, गड़बड़ी पकड़ में आने के बाद भी इसे घोटाला नहीं माना गया| जिसके बाद ई टेंडरिंग घोटाले की जांच कछुए की गति चली और जब बुधवार को इसमें एफ आईआरदर्ज की गई तो साफ समझ में आया कि किस तरह अफसरों ने सिर्फ खानापूर्ति की है। जिसको लेकर सवाल उठ रहे हैं| अफसरशाही द्वारा ईओडब्ल्यू को सौपे गए दस्तावेजों में केवल जनवरी 2018 से जून 2018 तक की टेन्डरो की जांच के बारे में लिखा गया जबकि ई टेन्डरिन्ग घोटाला मध्यप्रदेश में 2006 से चल रहा है। इसी तरह घोटाले की रकम के बारे में 3000 करोड़ का अनुमान बताया गया जबकि यह घोटाला लगभग 80,000 करोड से भी ज्यादा का है। टेंडर प्रक्रिया में पारदर्शिता लाने के लिए ई-टेंडर व्यवस्था लागू कर मध्यप्रदेश ई-प्रोक्योरमेंट पोर्टल बनवाया गया था। इसके माध्यम से विभिन्न विभागों के कार्यों के लिए ई-टेंडर व्यवस्था शुरू हुई। टेंडर की पूरी प्रक्रिया ऑनलाइन थी, लेकिन चहेतों को फायदा पहुंचाने के लिए इसमें छेड़छाड़ की गई और बोली लगाने वाली कंपनियों को पहले ही सबसे कम बोली का पता चल जाता था।
बता दें कि शिवराज सिंह के मुख्यमंत्री रहते हुए ई-टेंडर के नाम पर फर्जीवाड़ा करके कंपनियों को फायदा पहुंचाया गया था। इसमें तत्कालीन शिवराज सरकार के कई अफसरों के शामिल होने की बात आई थी। जिसके बाद से इस मामले की जांच के लिए कांग्रेस ने भी प्रधानमंत्री को शिकायत की थी।